सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद, न्यू एज इस्लाम
30 सितंबर, 2021
अल्लाह ने पवित्र कुरआन को पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर उतारा। इसमें उन्होंने अपने नियमों को स्पष्ट रूप से बताया। नेक व बद, कुफ्र और ईमान, हलाल और हराम के बीच का अंतर सिखाया और मुसलमानों को कुरआन के नियमों और निर्देशों के अनुसार जीने और लोगों के साथ मामले करने की आज्ञा दी।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरआन के नियमों की व्याख्या की और दीनी और सांसारिक मामलों में मोमिनों का मार्गदर्शन किया। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरआन के नियमों के अनुसार रहते थे और मुसलमानों को भी ऐसा करने का निर्देश देते थे। उनका पूरा जीवन कुरआन की व्यावहारिक व्याख्या था। इसलिए, पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उसवा ए हसना भी मुसलमानों के लिए एक आदर्श बन गई। इसलिए कुरआन भी मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानने का आदेश देता है। पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम धर्म के हर मुद्दे में कुरआन के अनुसार कार्य करते थे और यदि कोई ऐसा मुद्दा था जिस पर वही न उतरी होती, तो वह वही की प्रतीक्षा करते। अपनी राय या अनुमान के आधार पर कुछ न कहते। कुरआन में कई जगहों पर यहूदियों और काफिरों के सवाल के जवाब में वही नाज़िल किया गया है, जैसे कि कयामत कब आएगा या आत्मा क्या है। अधिकांश मुसलमान भी पवित्र पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किसी भी मुद्दे पर सवाल करते, वही आने पर ही आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सवालों का जवाब देते थे, अपने राय कयास पर कुछ नहीं कहते थे। इस मसले पर एक हदीस इस प्रकार है।
उन्होंने अबूल-असवद मुहम्मद इब्न अब्द अल-रहमान से उन्होंने उरवाह से कहा कि हज़रत अब्दुल्ला इब्न उमर व इब्न अल-आस हज के लिए आए थे। जब मैं उनसे मिला, तो मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना, "मैंने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह कहते हुए सुना, 'अल्लाह कयामत के करीब यह नहीं करेगा कि इल्म तुमको देकर फिर तुमसे छीन ले बल्कि इल्म इस तरह उठाएगा कि आलिम लोग मर जाएंगे, उनके साथ इल्म भी चला जाएगा और कुछ अज्ञानी रह जायेंगे। यदि आप उनसे कोई मसला पूछे गा, तो वे अपनी राय से बयान करेंगे, खुद भी गुमराह होंगे और दूसरों को भी गुमराह करेंगे। इस हदीस को मैंने हज़रत आयशा से बयान की। इतने में अब्दुल्ला बिन उमर फिर से हज के लिए आए।हज़रत आयशा ने कहा, "मेरे भांजे, यह कर और फिर अब्दुल्ला के पास जा और हदीस को सुनो जो आपने मुझे सुनाई है और इसे मजबूत करें। मैं उनके पास गया और उन्होंने इस हदीस को फिर से उसी तरह सुनाया जैसे उन्होंने पहली बार सुनाया था। मैंने आकर हजरत आयशा को खबर की। वे हैरान रह गईं। उन्होंने कहा, "अब्दुल्ला इब्न उमर ने खुदा की कसम बहुत अच्छी तरह से याद किया है।" (किताबुल एतिसाम जिल्द तीनI 2150)
एक और हदीस है जो साबित करती है कि पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरआन के आदेश के अनुसार मामलों का फैसला करते थे।
हजरत जाबिर बिन अब्दुल्ला ने रिवायत किया कि मैं बीमार पड़ गया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अबू बकर रज़ीअल्लाहु अन्हु मुझे पैदल देखने आए। मैं बेहोश पड़ा था। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वजू किया और मुझ पर वजू का पानी डाला, मुझे होश आया मैंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बार सुफियान ने इस प्रकार कहा "या रसूलुल्लाह! मैंने अपने माल का क्या फैसला करूँ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कोई उत्तर नहीं दिया। यहाँ तक विरासत की आयत उतरी। (किताबुल एतिसाम बाब: 29- 2153 बुखारी)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने राय या अनुमान के साथ कोई मसला नहीं बताया। जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किसी ऐसी चीज़ के बारे में पूछा गया जिसमें कोई वही नहीं उतरी, तो आप फरमाते: मैं नहीं जानता या वही उतरने तक खामोश रहते। कुछ जवाब न देते क्योंकि अल्लाह पाक ने सूरह अन-निसा में कहा '... "ताकि अल्लाह तुम्हें बतलाए उसके अनुसार आज्ञा दे।"
उपरोक्त हदीसों से स्पष्ट है कि इस्लाम में किसी भी दीनी मुद्दे पर राय थोपने या नाफ़िज़ करने की मनाही है। किसी भी दीनी मुद्दे या विवाद में कुरआन और हदीस के अनुसार कार्य करना अनिवार्य है। कुरआन स्पष्ट रूप से कहता है कि किसी भी समस्या या विवाद के मामले में, कुरआन और सुन्नत के अनुसार कार्य करें।
ऐ ईमान वालों! अल्लाह के रसूल का हुक्म मानो और हाकिमों का जो तुममें से हों। फिर यदि किसी बात को लेकर तुम्हारा कोई विवाद हो तो उसे अल्लाह और उसके रसूल की तरफ रुजूअ करो।" (अल-निसा ': 59)
एक और हदीस में बाद के जमाने में उलमा के बीच मतभेद का इशारा है। हुजैफा बिन यमान कहते थे कि लोग आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अच्छी बातों को पूछा करते थे और मैं आप से बुराइयों को (जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद होने वाली हैं) पूछा करता। इस डर से कि कहीं मैं उनमें न फंस जाऊं। मैंने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह! हम जिहालत और बुराई में थे अल्लाह ने आपको भेज कर खैर व बरकत हमको दी। अब इसके बाद क्या फिर बुराई होगी? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया, हाँ। मैंने पूछा “फिर इसके बाद भलाई होगी? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया हाँ मगर उसमें धुवां होगा। मैंने पूछा धुवां क्या” आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया “ऐसे लोग पैदा होंगे जो मेरे तरीके पर नहीं चलेंगे। उनकी कोई बात अच्छी होगी, कोई बुरी। मैंने पूछा “फिर इसके बाद बुराई होगी? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया। ‘हाँ’ ऐसे लोग पैदा होंगे जो दोज़ख के दरवाजों पर खड़े होंगे। जिसने उनकी बात सुनी उन्होंने उसको दोज़ख में झोंक दिया। मैंने अर्ज़ किया। “या रसूलुल्लाह! उनका हाल तो बयान फरमाएं। “आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया। “वह ज़ाहिर हमारी कौम में होंगे, हमारी जुबान बोलेंगे” मैंने अर्ज़ किया। “आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अगर मैं वह जमाना पाऊं क्या हुक्म देते हैं।“ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया। “मुसलमानों की जमात और बरहक इमाम के ताबे रहो। मैंने कहा “अगर उस वक्त जमात या इमाम ही न हो।“ आपने फरमाया “तो सब फिरकों से अलग रहो। अगर तू जंगली दरख्त की जड़ चाटता रहे और तेरे पास खाने को कुछ न हो और मर जाए तो वह तेरे हक़ में बेहतर है।“ (किताबुल मनाकिब बाब 14-812 सहीह बुखारी)
मौजूदा माहौल से पता चलता है कि यह वह माहौल है जिसमें धुआं है। दीनी मामलों में भ्रम की स्थिति है विभिन्न मुद्दों पर उलमा में मतभेद है। इतना ही नहीं, मुसलमानों पर अपनी राय थोपने और नाफ़िज़ करने का भी प्रयास किया जा रहा है। हदीस के अनुसार, निकट भविष्य में, कुछ लोग मुसलमान बन जाएंगे और मुसलमानों की भाषा बोलेंगे, वे वास्तव में लोगों को नरक में ले जाएंगे। कुरआन और हदीस के स्पष्ट निर्देशों को छोड़ देंगे और मुसलमानों पर अपनी व्यक्तिगत राय थोपेंगे और वे खुद भी गुमराह होंगे और मुसलमानों को भी गुमराह करेंगे। आज चरमपंथी समूह और उनके सहयोगी वही रवैया अपना रहे हैं जिससे इस्लामी दुनिया में भ्रम और अराजकता फैल गई है। यह प्रथा कुरआन और सुन्नत के विपरीत है।
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