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Iman and Yaqin: Faith In The Unseen And Certainty ईमान और यकीन: गैब और आलमे आखिरत पर ईमान

नसीर अहमद, न्यू एज इस्लाम

उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम

30 दिसंबर 2022

ईमान, पोशीदा या अल गैब पर यकीन का नाम है। इल्मे गईं के स्रोत की सच्चाई की जांच हो सकती है लेकिन खुद अल गैब के मुनदरजात की सदाकत पर कोई सवाल नहीं है। हम गैब पर यकीन रखते हैं क्योंकि इल्मे गैब का सरचश्मा कुरआन मजीद है जो एक अलीम व खबीर खुदा के कलाम से तवक्को किये जाने वाले तमाम सिफात पर तस्दीक की मुहर सबत करता है।

यकीन उसका नाम है जिसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है। क्या हम गैब का यकीन कर सकते हैं? गैब की इस तारीफ़ से यह संभव नहीं है। इसलिए हम अपने ईमान को मजबूत करने के लिए आमाल तो कर सकते हैं लेकिन हमारा ईमान चाहे कितना हीई मजबूत क्यों न हो जाए, वह इल्मुल यकीन का दर्जा नहीं पा सकता।

तो फिर इल्मुल यकीन, ऐनुल यकीन (मुशाहेदे या तजुर्बात पर मबनी इल्म) और हक्कुल यकीन (मुतलक सच्चाई) जिसका ज़िक्र कुरआन में आया है इसका क्या मतलब है? इन्हें आम तौर पर यकीन के तीन दरजात से ताबीर किया जाता है जिन पर इंसान कादिर होता है और एक बंदा पहले दर्जे से दुसरे दर्जे तक तरक्की करता है यहाँ तक कि वह गैब के बारे में हक्कुल यकीन हासिल कर लेता है। यह केवल एक फरेब है। जहां तक गैब का संबंध है तो इसके हवाले से केवल ईमान ही संभव है इससे अधिक कुछ नहीं। असल में जहां तक गैब का संबंध है कुरआन केवल हमारे ईमान की बात करता है न कि यकीन की।

हम आखिरत पर यकीन रखते हैं।

हम कयामत पर यकीन रखते हैं।

हमें यकीन है कि गुनाहगारों को जहन्नम की आग में डाला जाएगा और नेक लोगों को जन्नत में दाखिल किया जाएगा।

हम अपनी काबिले मुशाहेदा कायनात के बारे में इल्मुल यकीन, ऐनुल यकीन या हक्कुल यकीन रख सकते हैं लेकिन आलमे गैब के बारे में नहीं।

कुरआन मजीद की तीन इस्तिलाहात

आइए देखते हैं कि कुरआन इन इस्तिलाहात को किस तरह और किस अर्थ में इस्तेमाल करता है और आया इनका हमारे इल्म के साथ यकीन से कोई संबंध है।

हक्कुल यकीन कुरआन में दो बार आया है।

وَأَمَّا إِن كَانَ مِنَ الْمُكَذِّبِينَ الضَّالِّينَ

और अगर झुठलाने वाले गुमराहों में से है (56:92)

فَنُزُلٌ مِّنْ حَمِيمٍ

तो (उसकी) मेहमानी खौलता हुआ पानी है (93)

وَتَصْلِيَةُ جَحِيمٍ

और जहन्नुम में दाखिल कर देना (94)

إِنَّ هَٰذَا لَهُوَ حَقُّ الْيَقِينِ

बेशक ये (ख़बर) यक़ीनन सही है (95)

فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ

तो (ऐ रसूल) तुम अपने बुज़ुर्ग परवरदिगार की तस्बीह करो (96)

यहाँ अल्लाह ही इस बात की तस्दीक कर रहा है कि गुनाहगारों का जहन्नम की आग में जलना ही असल हकीकत (हक्कुल यकीन) है। हम सिर्फ ईमान ही रख सकते हैं कि यह हक्कुल यकीन है लेकिन खुद हमें इसका यकीन नहीं है।

तो मुझे उन चीज़ों की क़सम है (37) जो तुम्हें दिखाई देती हैं (38) (69:37-38)

और उन चीजों की जिन्हें तुम नहीं देखते (39)

एक मोअज़िज़ फरिश्ते का लाया हुआ पैग़ाम है (40)

और ये किसी शायर की तुक बन्दी नहीं तुम लोग तो बहुत कम ईमान लाते हो (41)

और न किसी काहिन की (ख्याली) बात है तुम लोग तो बहुत कम ग़ौर करते हो (42)

सारे जहाँन के परवरदिगार का नाज़िल किया हुआ (क़लाम) है (43)

अगर रसूल हमारी निस्बत कोई झूठ बात बना लाते (44)

तो हम उनका दाहिना हाथ पकड़ लेते (45)

फिर हम ज़रूर उनकी गर्दन उड़ा देते (46)

तो तुममें से कोई उनसे (मुझे रोक न सकता) (47)

ये तो परहेज़गारों के लिए नसीहत है (48)

और हम ख़ूब जानते हैं कि तुम में से कुछ लोग (इसके) झुठलाने वाले हैं (49)

और इसमें शक़ नहीं कि ये काफ़िरों की हसरत का बाएस है (50)

وَإِنَّهُ لَحَقُّ الْيَقِينِ

और इसमें शक़ नहीं कि ये यक़ीनन बरहक़ है (51)

तो तुम अपने परवरदिगार की तसबीह करो (52)

एक बार फिर इन आयात की रौशनी में अल्लाह पाक इस बात की तस्दीक कर रहा है कि कुरआन हक्कुल यकीन की किताब है और हम केवल ईमान ही रख सकते हैं कि वाकई यह हक्कुल यकीन की किताब है लेकिन इसका यकीन नहीं कर सकते।

इल्मुल यकीन कुरआन में केवल एक बार सुरह 102 में आता है

कुल व माल की बहुतायत ने तुम लोगों को ग़ाफ़िल रखा (102:1)

यहाँ तक कि तुम लोगों ने कब्रें देखी (मर गए) (2)

देखो तुमको अनक़रीब ही मालुम हो जाएगा (3)

फिर देखो तुम्हें अनक़रीब ही मालूम हो जाएगा (4)

देखो अगर तुमको यक़ीनी तौर पर मालूम होता (तो हरगिज़ ग़ाफिल न होते) (5)

तुम लोग ज़रूर दोज़ख़ को देखोगे (6)

फिर तुम लोग यक़ीनी देखना देखोगे (7)

फिर तुमसे नेअमतों के बारें ज़रूर बाज़ पुर्स की जाएगी (8)

जहन्नम की आग ऐनुल यकीन बन जाएगी मगर केवल आखिरत में वह भी उस समय जब गुनहगारों को जहन्नम की आग नज़र आएगी। उस समय तक हम इस पर ईमान ही रख सकते हैं यकीन नहीं।

इल्मुल यकीन, ऐनुल यकीन और हक्कुल यकीन केवल उसी चीज के लिए संभव है जो हम देख सकते हैं, मुशाहेदा कर सकते हैं और जिनका तजुर्बा कर सकते हैं। और यह भी कि उनका संबंध इस दुनिया की हकीकत से हो आलमे गैब की दुनिया से नहीं। हम उन चीजों पर विश्वास कर सकते हैं जिनका ज़िक्र कुरआन मजीद में उस दुनिया के हवाले से है। मिसाल के तौर पर, अब हमारे पास हमारे जी उठने के लिए संभव होने का इल्मुल यकीन है जो हमारे जिस्म और रूह दोनों के बिना और रूह के बिना संभव है और इस पर भी कि यह कायनात एक दिन फना हो जाएगी और एक नई कायनात तखलीक की जाएगी जिसका अल्लाह ने वादा किया है। मजकुरा बाला लेख में उन्हीं मसाइल पर बहस की गई है।

मोमिन और काफिर में फर्क

एक मोमिन का अकीदा है कि कुरआन की बयान की हुई हर चीज हक्कुल यकीन है जबकि एक काफिर का अकीदा है कि गैब की बातें बेकारहैं, लेकिन उनके अपने अकीदों के बारे में उन्हें यकीन नहीं होता क्योंकि उनका ताल्लुक गैब से है।

यह सवाल कि क्या कुरआन हकीम खुदा का कलाम होने की हैसियत से मुतवक्को मेयारात पर पूरा उतरता है, बहर हाल इस पर कलाम हो सकता है, और अगर इसका खता से पाक होना साबित हो जाता है, तो एक मोमिन की अक्लमंदी है कि वह अपने अकाइद को मजबूत कर ले, और एक काफिर मुनकिर बन जाता है क्योंकि वह ज़मीन से ताल्लुक रखता है और एक अखलाकी जिंदगी गुज़ारने के लिए किताबुल्लाह के जो मुतालबात हैं उनकी खिलाफ वर्जी करता है।

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English Article: Iman and Yaqin: Faith In The Unseen And Certainty

Urdu Article:  Iman and Yaqin: Faith In The Unseen And Certainty ایمان اور یقین: غیب اور عالم اخرت پر ایمان

URL: https://newageislam.com/hindi-section/iman-yaqin-faith-unseen-certainty/d/129309

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