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Humans Are Violent Because Of Their Beliefs मनुष्य अपने अकीदों के कारण हिंसक है

सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम

30 जून 2022

क्या चीज इंसानों को इतना हिंसक और खतरनाक बनाती है? जवाब है: उनके अकीदे, ख़ास तौर पर तमाम गैर माकूल चीजों और मज़ाहिर में मज़हबी अकीदे की वजह से इंसान हिंसक हो जाता है।

प्रमुख बिंदु:

1. उदयपुर (राजस्थान) में जो कुछ हुआ उसने पुरी सभ्यदुनिया को चौंका दिया है।

2. खुदा और मज़हब पर इस इज्तिमाई अकीदे की वजह से, इंसान अज़ल से एक दुसरे को क़त्ल करते चले आ रहे हैं।

3. इंसान कभी भी अपने तमाम अकीदों से मुकम्मल तौर पर आज़ाद नहीं हो सकता।

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So long as our meaningless beliefs remain

All efforts to get rid of them will go in vain”

अर्थात जब तक हमारे बेकार अकीदे बाकी हैं।

उनसे जान छुड़ाने की तमाम कोशिशें रायगाँ जाएंगी।

वीलियम बटलर येट्स, आयरश शाएर और नोबल इनाम याफ्ता

उदयपुर (राजस्थान) में जो कुछ हुआ उसने पूरी सभ्य दुनिया को चौंका दिया है। अब थोड़ी सूझ बूझ रखने वाले लोग पूछ रहे हैं: क्या चीज इंसानों को इतना हिंसक और निर्दयी बना देती है? जवाब है: उनके अकीदे, ख़ास तौर पर तमाम गैर माकूल चीजों और मुजाहेरों में मज़हबी अकीदे की वजह से इंसान हिंसक हो जाता है। एक दिलचस्प कहानी को अकीदों के इस पुरे कारोबार को समझने में मददगार होगी।

एक मज़हबी सोच रखने वाली बूढी औरत मौजूदा तमाम मजहबों से मुतमईन नहीं थी, इसलिए उसने अपना एक अलग मज़हब कायम कर लिया। एक रिपोर्ट, जो वाकई उसके दृष्टिकोण को समझना चाहता था, उसने उससे पूछा, “क्या तुम वाकई इस बात पर यकीन रखती हो, जैसा कि लोग कहते हैं, कि तुम्हारे और तुम्हारी घरेलू मुलाज़्मा के सिवा कोई जन्नत में नहीं जाएगी?” बूढी औरत ने सवाल पर थोड़ा गौर किया। और कहा, “ठीक है, मुझे मरियम के बारे में इतना यकीन नहीं है।

कोई कितना ही विकसित, आज़ाद ख्याल और भविष्य का नजरिया रखने वाला क्यों न हो, पक्षपातपूर्ण मानसिकता उसे हमेशा पीछे की तरफ धक्का देती रहेगी। जब भी हम कोई बिलकुल नै और अलग चीज इजाद करते हैं तो इसमें भी हमारे अतीत के अकीदों के अलग अलग तत्व मौजूद होते हैं। अकीदे से कोई रस्तगारी नहीं है। न्यूरोलॉजिस्ट का ख्याल है कि अगर कोई शख्स 25 साल की उम्र में अपने तमाम अकीदों को छोड़ना चाहे तो उसे उन अकीदों से पूरी तरह छुटकारा हासिल करने में लगभग 200 साल लगेंगे जिनसे वह अलग होना चाहता था, हालांकि इसमें कुछ लोगों का अपवाद हो सकता है। इसका मतलब है कि हम में से अक्सर लोग अपनी ज़िन्दगी में कभी भी अपने नापसंदीदा अकीदे से छुटकारा हासिल नहीं कर पाएंगे क्योंकि किसी की उम्र इतनी लम्बी नहीं है। और यह न्यूरोलौजिकल प्रेक्षण काफी तेज़ है।

हम समानता, बराबरी, सरमायादारी विरोधी और मार्क्सिज्म की बात करते हैं लेकिन हममें से कितने हैं जो अपनी नौकरानियों और घरेलू नौकरों को अपने शौचालय का इस्तेमाल करने या अपने करीब बैठने की इजाज़त देंगे? यह हमारे अंदर का पक्षपात है कि वह नौकर हैं और कभी हमारी सतह और हैसियत तक नहीं पहुंच सकते और यह बात हमारी सामूहिक मानसिकता के किसी न किसी कोने में हमेशा मौजूद रहेगी। अपनी ज़िन्दगी में, मैंने तथाकथित गैर मोमिनों और मुल्हिदों से मुलाक़ात की है और देखा है कि जब उनके पिछलेअकीदे के बारे में कोई नागवार बात पूछी जाती है तो वह बरहम हो उठते हैं। मैं उन्हें शौकिया मुल्हिद कहता हूँ।

बज़ाहिर तमाम अकीदों को छोड़ देना, और इसके बावजूद उनमें से कुछ पर हर सख्ती के साथ कायम रहना मानवता की विडंबना है। अकीदे दकियानूसी अवधारणा को जन्म देते हैं और हम सब इंसानों, चीजों, नस्लों, देशों और बिरादरियों के बारे में दकियानूसी तसव्वुरात के हामिल बन जाते हैं। सुकरात जैसे लोग जो खुद को वैश्विक नागरिककहते हैं वह भी नस्ली, इलाकाई, लिसानी और कौमी तास्सुब का शिकार हैं।

इंसान खुला में सफर कर सकता है। वह चाँद, मिर्रीख और दुसरे दूर दराज़ सय्यारों तक पहुँच सकता है लेकिन वह अपने तमाम अकीदों से कभी भी पूरी तरह आज़ाद नहीं हो सकता। और जब अकीदे उनके लिए एक मज़हबी हल्का रखते हैं, तो किसी के लिए भी उन्हें पुरी तरह छोड़ना असंभव है। वह आप के चेतना में मौजूद रहते हैं और किसी भी वक्त अपना रंग दिखा सकते हैं। कम से कम इतना जरुर होगा कि इसके आसार रह जाएंगे जो उसे उसकी हद याद दिलाएंगे।

खुदा और मज़हब पर इस सामूहिक अकीदे की वजह से प्राचीन काल से इंसान एक दुसरे को क़त्ल करते रहे हैं। मुझे आज भी याद है कि मैंने कहीं पढ़ा था, “ अकीदे सख्त ईंट की तरह हैं, जिससे इंसानी फितरत की इमारत निर्माण होती है।मुझे इस कथन की गहराई पर कोई शक नहीं है। एक दर्जी का सर कलम किये जाने के इस जांनकाह हादसे ने अकीदों पर मेरे यकीन को और भी मजबूत कर दिया है! आज, मैं बहुत उदास हूँ और अब मुझे कोई उम्मीद नज़र नहीं आती कि मानवता होशपूर्वक विकास कर सकती है।

English Article: Humans Are Violent Because Of Their Beliefs

Urdu Article: Humans Are Violent Because Of Their Beliefs انسان اپنے عقائد کی وجہ سے متشدد ہے

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/humans-beliefs-udaipur-atheists/d/127495

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