नास्तिक दुर्रानी , न्यु एज इस्लाम
28 दिसम्बर, 2013
नमाज़ के समय के निर्धारण में आसानी और लोगों को समय पर इसे अदा करने को बुलाने के लिए मज़हब ने नमाज़ की दावत देने के विभिन्न तरीके अपनाए ताकि मोमिनों को पता चल जाए कि नमाज़ का वक्त हो गया है। इनमें नाक़ूस फूँकना, बिगुल बजाना या आग आदि जलाना शामिल है या जो भी ऐलान और चेतावनी देने के विभिन्न माध्यम हो सकते हैं।
अज़ान मक्का में फर्ज़ (अनिवार्य) नहीं हुई थी क्योंकि मुस्लिम अल्पसंख्यक थे और क़ुरैश के डर से छिप कर रहते थे इसलिए वहाँ किसी भी नमाज़ के वक्त होने का खुले तौर पर एलान नहीं किया जा सकता था, लेकिन जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम मदीना हिजरत (पलायन) कर गए और वहां मुसलमानों की संख्या में इज़ाफा हुआ तो अज़ान की ज़रूरत शिद्दत से महसूस की जाने लगी तो लोगों को नमाज़ के वक्त के बारे में बताया जा सके क्योंकि उन्हें इसका पता नहीं हो पाता था। या वो कामकाज में व्यस्त हो जाते थे और नमाज़ का वक्त निकल जाने का उन्हें पता ही नहीं चल पाता था और इस तरह वो अपने रब के एक महत्वपूर्ण कर्तव्य को पूरा करने में कोताही बरतने के दोषी हो जाते थे।
सही मुस्लिम में आया है कि जब मुसलमान (पलायन कर) मदीना पहुंचे तो समय निर्धारित करके नमाज़ के लिए आते थे। इसके लिए अज़ान नहीं दी जाती थी। एक दिन इस बारे में मशविरा हुआ। किसी ने कहा ईसाईयों की तरह एक घंटा ले लिया जाए और किसी ने कहा कि यहूदियों की तरह तुरही (बिगुल बना लो, उसको फूंक दिया करो) लेकिन हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हा ने कहा कि किसी व्यक्ति को क्यों न भेज दिया जाए जो नमाज़ के लिए पुकार दिया करे। इस पर आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने (इसी राय को पसंद फरमाया और बिलाल से) फरमाया कि बिलाल! उठ और नमाज़ के लिए अज़ान दे,1
एक और रवायत में है कि जब अज़ान की ज़रूरत महसूस की गई तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा से इस मसले पर सलाह किया तो उन्हें कहा गया कि "नमाज़ का वक्त होने पर झंडा स्थापित कर दिया जाए जब वो इसे देखेंगे तो एक दूसरे को बता देंगे, लेकिन रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को ये तरीका पसंद नहीं आया, इसलिए यहूदियों के बिगुल का ज़िक्र हुआ जिसे अलशबूर या अलक़बा कहा जाता था ये एक सींग है जिससे वो लोगों को नमाज़ की ओर बुलाते हैं लेकिन नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया ये तो यहूदियों का तरीका है, इसलिए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सामने नाक़ूस का ज़िक्र हुआ जिससे ईसाई लोगों को नमाज़ की तरफ बुलाते थे, तो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ये तो ईसाइयों का तरीका है, तो लोगों ने कहा: अगर हम आग जला लें तो जब लोग इसे देखेंगे, नमाज़ के लिए आ जाऐंगे, तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ये मजूसियों का तरीका है, 2
"मोहम्मद बिन साद" ने अज़ान की शुरुआत के किस्से को कुछ इस तरह बयान किया है कि, अज़ान का हुक्म होने से नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के ज़माने में आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का मुनादी लोगों को आवाज़ देता था कि "अस्सलातल जामेआ" नमाज़ जुमा होने वाली है, तो लोग इकट्ठा हो जाते थे, जब क़िबला काबे की तरफ फेर दिया गया तो अज़ान का हुक्म दिया गया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को अज़ान के मामले की भी बड़ी चिंता थी। लोगों ने आपसे इन कुछ बातों का उल्लेख किया, जिनसे लोग नमाज़ के लिए एकत्र हो जाएं, कुछ ने कहा कि सूर और कुछ ने कहा कि नाक़ूस बजा दिया जाए, लोग इसी हालत में थे कि अब्दुल्ला बिन ज़ैद अलखरजी को नींद आ गई, उन्हें सपने में दिखाया गया कि एक व्यक्ति इस स्थिति से गुज़रा कि उसके शरीर पर दो हरी चादरें हैं, हाथ में नाक़ूस है, अब्दुल्ला बिन ज़ैद ने कहा कि मैंने (इस व्यक्ति से) कहा: क्या तुम ये नाक़ूस बेचते हो, उन्होंने कहा: तुम इसे क्या करोगे? मैंने कहा खरीदना चाहता हूँ कि नमाज़ में हाज़िरी के लिए इसको बजाऊँ, उसने कहा: मैं आप लोगों के लिए इससे बेहतर बयान करता हूँ कि: अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर, अश्हदो अन लाइलाहा इल्लल्लाह, अश्होद अन् मोहम्मदर् रसूलुल्लाह, हैय्या लस्सलाह, हय्या ललफलाह, अल्लाहो अकबर, अल्लाहो अकबर, लाइलाहा इल्लल्लाह। अब्दुल्ला बिन ज़ैद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास आए और आपको खबर दी तो आपने कहा कि तुम बिलाल के साथ खड़े हो और जो कुछ तुमसे कहा गया है उन्हें सिखा दो, वो यही अज़ान कहें। उन्होंने ऐसा ही किया। उमर रज़ियल्लाहू अन्हा आए उन्होंने कहा कि मैंने भी ऐसा ही सपना देखा है जैसा उन्होंने देखा। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि प्रशंसा अल्लाह के लिए ही है, और यही सबसे ज़्यादा सही है, विद्वानों ने कहा कि यही अज़ान कही जाने लगी और "अस्सलातल जामेअतः" की पुकार सिर्फ किसी घटना के लिए रह गई, इसकी वजह से लोग हाज़िर होते थे और उन्हें इस बात की खबर दी जाती थी जैसे जीत की खबर पढ़कर सुनाई जाती थी या और किसी बात का उन्हें हुक्म दिया था तो "अस्सलातल जामेअतः" की पुकार दी जाती थी, अगर वो नमाज़ के वक्त में न हो 3
इब्ने साद ने अज़ान की शुरुआत की रवायत और स्रोतों से भी नकल की है, जो उपरोक्त खबर के लेख बाहर नहीं जातीं, ये रवायत भी अज़ान के ख्वाब को हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रजियल्लाहू अन्हा से सम्बंधित बताती हैं और हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहू अन्हा के ख्वाब को पुष्टि के रूप में पेश करती हैं यानी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद रज़ियल्लाहू ने पहले अपना सपना पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को सुनाया और फिर उनके बाद हज़रत उमर रज़ियल्लाहू अन्हा ने अपना सपना पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को सुनाया 4
इब्न हिशाम और दूसरों ने भी इस क़िस्से को नक़ल किया है जिससे पता चलता है कि विद्वानों के यहां इस विषय के बारे में यही किस्सा प्रचलित है 5
इस्लाम में अज़ान का यही क़िस्सा है, अज़ान से पहले मुसलमान नमाज़ की पुकार "अस्सलात अस्सलात” 6 का वाक्य बोलकर किया करते थे। एक आवाज़ लगाने वाला इस वाक्य को ज़ोर ज़ोर से बोलता ताकि दूसरे सुन लें और नमाज़ के वक्त की तरफ ध्यान दें और नमाज़ वक्त पर अदा कर सकें। विद्वानों ने एक दूसरा वाक्य भी उल्लिखित किया है कि "अस्सलातल जामिअतः" है जिसे नमाज़ के वक्त पर आवाज़ देने वाला बोला करता था 7, कुछ दूसरे वाक्यों का ज़िक्र हैं जैसे "अलस्सलात" या "हिलमल अलस्सलात”8
रवायत लिखने वालों में नमाज़ के इतिहास पर मतभेद है, कुछ का मानना है कि इसका हुक्म हिजरत के पहले साल में दिया गया था जबकि कुछ दूसरों का मानना है कि इसका हुक्म हिजरत के दूसरे साल में दिया गया था 9
मशहूर है कि हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहू अन्हा इस्लाम के पहले मुअज़्ज़िन हैं, वो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के भी मुअज़्ज़िन हैं बल्कि वो "अबुल मुअज़्ज़िनीन" यानी मुअज़्ज़िनों के पितामह हैं, एक और मुअज़्ज़िन भी जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के लिए अज़ान दिया करते थे, ये हज़रत "इब्ने उम्म मकतूम" रज़ियल्लाहू अन्हा हैं और ये नेत्रहीन थे 10, इन दोनों में से जो भी पहले मौजूद होता अज़ान देता। ये भी ज़िक्र किया गया है कि हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहू अन्हा जब अज़ान देते तो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के दरवाज़े पर खड़े हो जाते और कहते: नमाज़ ऐ रसूलुल्लाह, हैय्या लस्सला, हैय्या ललफलाह 11
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के मुअज़्ज़िनीन में अबा महज़ूरा सुमरा बिन मईर, औस और साद अलक़र्ज़ के नाम भी ज़िक्र हुए हैं जो हज़रत अम्मार बिन यासिर के मौली थे और कर्ज़ 12 देने का काम किया करते थे, इसीलिए इस नाम से मशहूर हुए। वो अहले क़बा के लिए अज़ान दिया करते थे 13
संदर्भ:
1- सही मुस्लिम 2 / 2, किताबुस्सलात: अध्याय बदअल अज़ान
2- अलसीरत अलहलबिया 482 / 1
3- तब्क़ात इब्ने साद 246/1 और उससे आगे, "सादर"इब्ने सैय्यद अलनास, अयून अलअसर 203/1, मसनद अलइमाम अबी हनीफा पेज 49 और उससे आगे।
4- तब्क़ात इब्ने साद 247/1 और उससे आगे "सादिर"
5- सीरत इब्ने हिशाम 306 / 1 "फी बाब खबरल अज़ान" अल सीरत अलहलीबा 480/ 1, अलरोज़ अलअनफ़ 19 / 2 और उससे आगे
6- कनज़ुल अमाल 265 / 4, Mittwoch, S., 25.
7- तब्क़ात इब्ने साद 246 / 1 और उससे आगे
8- Mittwoch, C., 25
9- अलमकरेज़ी, इमताउल अस्मा 50 / 1
10- सही मुस्लिम 3 / 2 "मोहम्मद अली सबीह"
11- अलीयाक़ूबी 32 / 2 "नजफ़"
12- केकर की तरह का एक पेड़ जिसके पत्तों को खाल की दबागत के लिए इस्तेमाल किया जाता था
13- इब्ने सैय्यद अलनास, अयून अलअसर 205 / 1
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