हिना रिजवी
31 अक्टूबर 2016
कहा जाता है कि जब शब्द 'तलाक' कहा जाता है तो पहाड़ों में भी भूकंप पैदा हो जाता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो अल्लाह की दृष्टि में बहुत घृणित है, हालांकि, अगर पति-पत्नी के बीच जब स्थिति असहनीय हो जाते हैं तो उनके बीच यही एक रास्ता बचता है।
वास्तव में पति-पत्नी को कोई भी फैसला लेने से पहले परिवार के सभी लोगों को इसमें शामिल कर लेना चाहिए। इस्लाम तलाक के अंतिम निर्णय तक पहुंचने से पहले पति-पत्नी के बीच सुलह के लिए एक मध्यस्थता स्थापित करने की शिक्षा देता है। जब तलाक देने का अंतिम निर्णय ले लिया जाता है तो यह सकारात्मक या नकारात्मक रूप से परिवार के हर व्यक्ति को प्रभावित करता है जिससे वह समाज प्रभावित होता है जिसमें हम रहते हैं।
इस फैसले में बच्चों को प्राथमिकता दी जाए
तलाक का फैसला लेने से पहले जिन प्रमुख प्राथमिकताओं को दिल और दिमाग में रखना चाहिए उनमें से एक उनके बच्चे हैं। कभी कभी माता पिता एक दूसरे के साथ समस्याओं में इस तरह उलझ जाते हैं कि वे बच्चों की जरूरतों को भूल जाते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे कितने बड़े हो चुके हैं, उनकी सबसे बड़ी जरूरत अपने माता पिता हैं। हम अक्सर देखते हैं कि माता-पिता अपने बच्चों पर झगड़ा करते हैं, जबकि वास्तव में उन्हें अपनी समस्याओं को भूलने और एक साथ अच्छे ढंग के साथ जीवन जीने के लिए संघर्ष करना चाहिए।
तलाक को एक युद्ध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। माता पिता को इस कठिन चरण को बच्चों के लिए यथासंभव सरल बनाने की कोशिश करनी चाहिए जो कि वास्तव में कहना ज्यादा आसान है और करना मुश्किल। कभी कभी तो हम यह भी देखते हैं कि पति-पत्नी बच्चों की खातिर एक दूसरे को तलाक देते हैं क्योंकि वे अपने बीच रिश्ते की इस कड़वाहट को अपने बच्चों पर प्रदर्शित नहीं करना चाहते। हालांकि तलाक के दौरान और तलाक के बाद उनका यह फैसला उनके बच्चों के लिये अधिक हानिकारक होता है।
चरित्र हनन
बच्चों को प्रभावित करने वाली एक और समस्या माता-पिता का चरित्र हनन है। दोनों में से एक दूसरे के खिलाफ अपने बच्चे को भड़काते हैं। वे एक दूसरे को अपनी आलोचना का निशाना बनाते हैं जबकि वह उसके नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव से अनजान होते हैं। यह कई कारणों से गलत है, यह माता पिता से बच्चों को दूर कर देता है, इससे उनके अंदर अपने माता पिता के प्रति नकारात्मक भावनाएं जन्म लेती हैं, इससे उनके रिश्ते की मजबूती बर्बाद हो जाती है और इन सब के अलावा यह चुगली का एक रूप है जो कि इस्लाम में निषिद्ध और अवांछित है। माता पिता को एक दूसरे के बारे में नकारात्मक बातें कर अपने बच्चों को यह चिंता का निमंत्रण देते हैं कि अन्य लोगों के बारे में ऐसी बात करना स्वीकार्य है और यह उनकी आदत बन सकती हैl
जब छोटे बच्चों के सामने इस तरह की बातें की जाती हैं तो हो सकता है कि उनके मन में नकारात्मक भावनाएं पैदा हो जाएं जिनसे वे उभर भी सकते हैं और नहीं भी जो कि उनके जीवन में कभी भी प्रकट हो सकते हैं । अपने छोटे बच्चों को ध्यान में रखते हुए माता-पिता को यह याद रखने की जरूरत है कि उनका मन एक स्पंज की तरह है। वे अपने आसपास के सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करेंगे। नकारात्मक शब्द और कर्म उनके दिमाग में एक रूपरेखा के रूप में सुरक्षित हो जाएंगे। किसी भी नकारात्मक या हानिकारक व्यवहार का दिखावट उनकी भूमिका और उनके व्यक्तित्व में हो सकता है। इसी तरह उन्होंने माता पिता को एक दूसरे के खिलाफ उन्हें इस्तेमाल करते हुए देखा है इसलिए यह सरीखे उनके अंदर भी उत्पन्न हो सकती है जिसके कारण उनके भाई बहन और दूसरों के साथ भविष्य में उनके रिश्ते प्रभावित हो सकते हैं।
आपसी सम्मान का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है
पति-पत्नी को हमेशा और विशेष रूप से अपने बच्चों के सामने एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। हो सकता है कि यह मुश्किल हो लेकिन इसके बदले में उनके बच्चे अपने परिवार के दूसरे लोगों का भी सम्मान करना सीखेंगे। सिर्फ इसलिए कि वैवाहिक रिश्ते अब खत्म होने के कगार पर है इसका मतलब यह नहीं है कि अब एक दूसरे का सम्मान करने की जरूरत नहीं है। बल्कि इसकी जरूरत अब विशेष रूप से बच्चों के लिये और भी अधिक हो जाती है। जब माता पिता एक साथ ठीक से व्यवहार करने में असमर्थ होते हैं तो अहंकार की समस्या पैदा हो जाती है। बच्चों को हानिकारक प्रभाव से बचाने के लिए इस पर काबू पाने की जरूरत है। उन्हें अपने माता पिता के बारे में नकारात्मक बातें बताए जाने की जरूरत नहीं, उन्हें किसी एक की तरफ दारी पर मजबूर महसूस करने की जरूरत नहीं है और न ही उन्हें कोई बोझ महसूस करने की जरूरत है। अपने माता पिता को धोखा देने वाले बच्चों और युवाओं की संख्या में वृद्धि हुई है इसलिए कि वह चर्चा के अंतराल से अच्छी तरह परिचित हैं। अगर माता पिता अब भी एक दूसरे के साथ अच्छी तरह बातचीत करने में सक्षम हैं और दोनों अपने बच्चों की परवरिश में अच्छी तरह सक्रिय हैं तो तलाक से बचा जा सकता है।
स्वतंत्र इच्छा बनाम तय किस्मत
जब ऐसे माता पिता के बीच तलाक होती है जिनके बच्चे हैं उस समय सबसे आम सवाल जो हमेशा पूछा जाता है वह यह है कि वह इतने बच्चों के बाद क्यों तलाक दे रहे हैं? ' या 'उन्हें बच्चे पैदा करने से पहले इस बात का एहसास क्यों नहीं हुआ कि उनका रिश्ता सफल नहीं हो सकता?
पहली बात यह है कि हर बच्चा अल्लाह की ओर से एक उपहार है। दूसरी बात यह है कि हर बच्चे के जन्म का एक लक्ष्य होता है। हो सकता है कि वह तलाक के समय या बाद के जीवन में माता पिता के लिए उस समय सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी बन जाएँ जब उन्हें उनकी जरूरत हो। हमारा उपरोक्त सवाल उठाना अल्लाह के हिकमते इलाहिया पर सवाल उठाने के बराबर है।
इस में अपनी स्वतंत्र इच्छा हो सकती है और यह पहले से उनका भाग्य भी हो सकता है। हो सकता है कि तलाक पहले से ही पति-पत्नी की परीक्षण के लिए उनके भाग्य में लिख दिया गया हो। उनकी अपनी स्वतंत्र इच्छा का क्या? यह निर्भर इस बात पर होता है कि वह कैसे अपने फैसले लेते हैं और एक दूसरे के साथ या अपने आसपास अन्य लोगों के साथ कैसा व्यवहार करते हैं।
स्रोत:
themuslimvibe.com/muslim-lifestyle-matters/overcoming-the-battleground-of-divorce#sthash.w4Ooqunb.dpuf
URL for English article: https://newageislam.com/islam-women-feminism/overcoming-battleground-divorce/d/108964
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/overcoming-battleground-divorce-/d/108990
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