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Hindi Section ( 9 Aug 2022, NewAgeIslam.Com)

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The Series of Trials Started With Hazrat Ibrahim and Ended With Imam Husain आज़माइश का सिलसिला जो हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से शुरू हुआ था, इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु पर आकर ख़त्म हुआ

डॉक्टर मोहम्मद ताहिरुल कादरी

उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम

5 अगस्त 2022

और (वह समय याद करो) जब इब्राहीम अलैहिस्सलाम को उनके रब ने कई बातों में अजमाया तो उन्होंने वह पूरी कर दी, (इस पर) अल्लाह ने फरमाया: मैं तुम्हें लोगों का पेशवा बनाऊंगा, उन्होंने अर्ज़ किया: (क्या) मेरी औलाद में से भी? इरशाद हुआ (हाँ मगर) मेरा वादा जालिमों को नहीं पहुँचता। (अल बकरा: 124)

अल्लाह पाक ने इस आयत में अपने उलुल अज्म और बुज़ुर्ग पैगम्बर हज़रत सैयदना इब्राहीम अलैहिस्सलाम को अलग अलग आजमाइशों में मुब्तिला करने, उनसे कामयाबी से गुजरने और फिर इस पर इनाम का तज़किरा फरमाया है।

जो लोग आज़माइश से भाग जाते हैं वह पस्त रहते हैं और जो लोग आज़माइश को सीने से लगाते हैं वह अज़ीम हो जाते हैं। आज़माइश हर एक को नसीब नहीं होती, आज़माइश में डाला भी उसी को जाता है जिससे अल्लाह को प्यार होता है। उसने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से प्यार किया और इस प्यार के नतीजे में उन्हें आज़माइश में डाला और वह हर आज़माइश में सुर्खरू रहे। सिलिसला आज़माइश जो हज़रत इब्राहीम से शुरू हुआ था हज़रत इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु पर आकर ख़त्म हुआ।

अल्लाह पाक ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को आजमाया और जब वह हर बात में और हर आज़माइश में कामयाब हो गए तो उनसे इनाम के तौर पर फरमाया:

ऐ इब्राहीम! तुम मेयार पर पूरा उतरे हो, मेरी आजमाइशों में कामयाब हुए हो इसलिए बेशक मैं तुम्हें इंसानियत का इमाम बनाऊंगा।

नबियों के बहुत से सिलसिले हुए मगर वह सारे सिलसिले अल्लाह पाक ने जद्दुल अंबिया हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम से शुरू फरमा कर उनको मम्बा व सरचश्मा बना दिया। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने अर्ज़ किया: अल्लाह पाक मेरी औलाद को भी इमामत देगा? अल्लाह पाक ने फरमाया: इब्राहीम तुम्हारी ज़ुर्रियत (औलाद) को भी इमामत दूंगा मगर इमामत उनको मिलेगी जो ज़ालिम नहीं होंगे। पस मालुम हुआ कि ज़ालिम कभी इमाम नहीं होता। इमामत हक़ से मिलती है। जो इमाम होता है वह हक़ पर होता है। जो लोग सीधी राह पर हों वह भी हक़ पर हैं।

अल्लाह पाक ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के हवाले से दो नेमतों का ज़िक्र फरमाया:

नेमते नबूवत और नेमते इमामत

आपने दुआ की बारी ताला तूने दो नेमतों नबूवत और इमामत का ज़िक्र किया है, इमामत की बात समझ में आ गई कि मेरी औलाद में होगी, बाहर नहीं जा सकती। अब नबूवत का भी करम कर दे कि वह आखरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिन पर नबूवत ख़त्म होगी वह भी मेरी औलाद को अता फरमा दे, फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने दुआ की।

ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से (वह आखरी और बरगाजीदा) रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मबउस फरमा जो उन पर तेरी आयतें तिलावत फरमाए और उन्हें किताब और हिकमत की तालीम दे और उन (के नुफूस व कुलूब) को खूब पाक साफ़ कर दे। (अल बकरा: 129)

अल्लाह पाक ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की इस दुआ को भी शरफ ए कुबूलियत अता फरमाया और नबी आखिर हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप ही की ज़ुर्रियत में से तशरीफ लाए। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने यह दुआ जिस पत्थर पर खड़े हो कर मांगी, अल्लाह पाक के हुक्म से उस पत्थर ने उस वक्त हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों के निशाँ को महफूज़ कर लिया। वह पत्थर मकामे इब्राहीम अलैहिस्सलाम के नाम से आज भी हरम ए काबा में महफूज़ है।

चाहते मुस्तफा को दवाम है

इस बात को चार हज़ार साल गुज़र गए, सब पत्थरों पर अगर निशाँ पड़े भी थे तो मिट गए। मगर हर चार हज़ार साल में इस पत्थर पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के क़दमों का निशाँ आज तक न मिट सका न मिटाया जा सका। हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चाहा था और इस चाहने की यह अलामत सामने आई कि मकामे इब्राहीम का निशाँ न मिट सका और इधर जब खुद मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आए और मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रत इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु को चाहा था। इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु को कंधों पर बिठाया। आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सजदा अक्र्ते तो इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु कंधों पर होते। जब हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु को चाह रहे हैं तो फिर आप रज़ीअल्लाहु अन्हु का ज़िक्र कौन मिटा सकता है। एक बदबख्त यजीद क्या, करोड़ों बदबख्त यज़ीद भी हो जाएं तो ज़िक्रे इमामे हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु ने मिटा है और न मिटेगा।

हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु की विलायत का एलान

एक समुंद्र विलायत व मारफत का है और एक समुंद्र इस्मत व तहारत का है। मारफत व विलायत का समुंद्र हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु और इस्मत व तहारत का समुंद्र हज़रत फातमा रज़ीअल्लाहु अन्हा हैं।

हज़रत बरा बिन आज़िब से रिवायत है कि हम रसूल अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ सफर पर थे (रास्ते में) हमने ग़दीरे खुम में कयाम किया। वहाँ निदा दी गई कि नमाज़ कड़ी हो गई है और रसूल अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए दरख्तों के नीचे सफाई की गई, पस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़े जुहर अदा की और हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु का हाथ पकड़ कर फरमाया: जिसका मैं मौला हूँ उसका अली मौला है। ऐ अल्लाह! उसे तू दोस्त रख जो इसे (अली को) दोस्त रखे और उससे अदावत रख जो इससे अदावत रखे। (अहमद बिन हंबल, अल मुसनद)

इस एलाने गदीर के बाद आज तक जिसका अली, वली है उसी का नबी वली है। उसी का वली मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं और उसका वली खुदा है...और जो अली रज़ीअल्लाहु अन्हु को वली नहीं जानता न मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसके वली हैं और न खुदा उसका वली है।

विलायत और शहादत

और जो लोग अल्लाह की राह में मारे जाएं उन्हें मत कहा करो कि यह मुर्दा हैं, (वह मुर्दा नहीं) बल्कि जिंदा हैं लेकिन तुम्हें (उनकी ज़िन्दगी का) शुउर नहीं। (अल बकरा: 154)

ज़िक्रे रिसालत के बाद अल्लाह पाक ने ज़िक्रे शहादत किया है इशारा इस अम्र की तरफ था कि खूने शाहदत के जरिये हमेशा कायनात में इमामत का फैज़ जारी व साड़ी रहेगा और इमामत का फैज़ खूने शहादत के जरिये ही फरोग पाएगा। यही वजह है शहादतें तो बहुत हुईं और तबई आमवात भी बहुत हुईं मगर बाबे विलायत का फातेह यानी हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु भी शहीद हुए। वली सानी इमाम सानी हसन मुजतबा भी शहीद हुए.. इमाम हुसैन रज़ीअल्लाहु अन्हु भी शहीद हुए। इमामत के सिलसिले में अक्सर पाक इमामों ने भी शहादत का जाम नोश किया है। कुरआन पाक की आयत से इमामत व शहादत के ताल्लुक की तफसीरी ताईद हासिल हुई कि शहादत व इमामत का आपस में एक ताल्लुक है इसलिए कि इमामत कभी बातिल से समझौता नहीं करती और नतीजतन शहादत उसका मुकद्दर बनती है।

नामे हुसैन, अता ए इलाही

हदीसे मुबारका है कि हज़रत अली रज़ीअल्लाहु अन्हु बयान फरमाते हैं कि जब हसन पैदा हुए तो उनका नाम हमज़ा रखा और जब हुसैन की विलादत हुई तो उनका नाम उनके चाचा के नाम पर जाफर रखा। मुझे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बुला कर फरमाया: मुझे उनके यह नाम बदलने का हुक्म दिया गया है। मैंने अर्ज़ किया: अल्लाह और उसका रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बेहतर जानते हैं। पस आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके नाम हसन व हुसैन रखे।इमरान बिन सुलेमान से रिवायत है कि हसन और हुसैन अहले जन्नत के नामों में से दो नाम हैं जो कि दौरे जाहिलियत में पहले कभी नहीं रखे गए थे।

ताजदारे कायनात सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हसनैन करीमैन की महबूबियत

हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमाते हैं कि मैंने हसन व हुसैन अलैहिमुस्सलाम को हुजूर नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कंधों पर सवार देखा तो हसरत भरे लहजे में कहा कि आप के नीचे कितनी अच्छी सवारी है! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाबन इरशाद फरमाया: ज़रा यह भी तो देखो कि सवार कितने अच्छे हैं।

पस हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत का तकाज़ा यह है कि हम भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मोहब्बत और चाहत से मोहब्बत करें। अल्लाह पाक हमें हुब्बे अहले बैत व हसनैन करीमैंन रज़ीअल्लाहु अन्हुमा की मुहब्बत पर इस्तिकामत अता फरमाए। आमीन

Urdu Article: The Series of Trials Started With Hazrat Ibrahim and Ended With Imam Hussain سلسلۂ آزمائش جو حضرت ابراہیم ؑ سے شروع ہوا تھا، امام حسین ؓ پر آکر ختم ہوا

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/hazrat-ibrahim-imam-hussain/d/127676

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