हफीज नोमानी
19 अप्रैल, 2017
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड एक ऐसा विश्वासपात्र संस्थान था कि साल में कहीं एक अधिवेशन हो जाया करता था जिसमें उस साल में पेश आने वाले महत्वपूर्ण घटनाओं या भविष्य में किसी जोखिम पर विचार होकर आगे की योजना बना लिया जाता था और फिर एक जनसभा करके सभी मुसलमानों को धर्म और शरीअत का पालन करने की हिदायत की जाती थी। यह मुसलमानों का दुर्भाग्य कहा जाएगा कि अब साल में राज्यों-राज्यों और शहर-शहर बोर्ड के व्यस्त और धार्मिक कार्य करने वालों को सब काम छोड़ कर सभा करने पड़ रहे हैं। इसका कारण केवल यह है कि मुसलमानों का एक वर्ग जिसमें शिक्षित पुरुष भी हैं और अज्ञानी, मनमानी और अपनी राय चलने वाली फैशन एबल औरतें और लड़कियां भी वे दूसरों के नक्शेकदम पर चल पड़ी हैं।
दो तीन महीने पहले की बात है कि एक मंदिर में पुरुषों को हर जगह जाने की अनुमति थी लेकिन महिलाओं को एक सीमा तक रहने का प्रतिबंध था l नाम तो पता नहीं है लेकिन एक महिला जो बूढ़ी नहीं जवान थी जिसके बाल लड़कों जैसे थे और जींस और उसके ऊपर टॉप पहने रहती थी उसने हिंदू महिलाओं को साथ लिया और अदालत जाकर गुहार लगाई कि जब बाबा के पास पुरुष जा सकते हैं तो महिलाएं क्यों नहीं? और वह हाईकोर्ट से यह आदेश ले आई कि जहां पुरुष जा सकते हैं वहाँ औरतें भी जाएँगी। फिर उसने ऐसा जश्न मनाया और महिलाओं को लेकर ऐसी उछल कूद मचाई कि सभी सिर पकड़कर बैठ गए।
मुंबई की कुछ मुस्लिम महिलाओं ने उसे ही अपना नेता बना लिया और समुद्र के अंदर हाजी अली के मज़ार पर जो प्रतिबंध थी कि महिलाएं बस यहाँ तक आ सकती है इसके खिलाफ अदालत चली गईं और इसी मंदिर के मुकदमा को मिसाल बनाकर यह आदेश ले आईं कि औरतें वह मुसलमान हों या हिंदू मज़ार के हर भाग में जा सकती हैं। और इसके बाद उसके नेतृत्व में मुस्लिम महिलाओं का एक जत्था दरगाह गया और हर वह काम किया जो पुरुष करते हैं।
कई साल से तीन तलाक बराबर एक तलाक की मांग की जा रही है अच्छे अच्छे दीनदार शिक्षित यह मांग पर्सनल लॉ बोर्ड से कर रहे हैं कि वह तीन तलाक को एक तलाक के बराबर करार दें। उनके विचार में यह पर्सनल लॉ के विद्वानों को अधिकार है कि वह तीन को एक दें। साल पर साल बीत गए। बोर्ड द्वारा कहा जा रहा है कि यह मानव के इख़तियार की चीज़ नहीं है। पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में भी एक मुसलमान ने एक ही समय में तीन तलाक दे दी थी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के संज्ञान में यह बात आई तो चेहरा मुबारक क्रोध से लाल हो गया और कहा कि अभी तो दुनिया में मैं मौजूद हूँ इसके बावजूद इतनी गलत हरकत करने की हिम्मत कर ली? लेकिन पवित्र सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह नहीं कहा कि तलाक नहीं हुई यही बात बोर्ड द्वारा कही जा रही है कि यह अल्लाह और पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सख्त नागवार है और सहाबा ने भी यही किया है लेकिन अगर कोई बदनसीब एक समय में तीन तलाक दे तो तलाक हो जाएगी। यह किसी के बस में नहीं है कि उसे एक करार दे।
मुस्लिम पुरुषों और स्त्रियों में एक वर्ग हमेशा वे भी रहा है जिसको नमाज़ रोज़ा या इबादत से कोई संबंध नहीं होता लेकिन वे साबित यह करता है कि बस वही मुसलमान है। इसी वर्ग ने तीन तलाक के मामले को ऐसे उठाया है जैसे हर मुसलमान के घर में केवल तलाक एक समस्या है। इसके अलावा सब कुछ ठीक है। जबकि हर धर्म की तुलना में सबसे कम तलाक की घटनाएं मुसलमानों में होती हैं। हद यह है कि मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड भी ऐसी ही महिलाओं ने बना लिया। जबकि इसका संबंध कानून से है जिसे इस्लाम में फिकह कहते हैं और हर पुरुष को तो क्या हर आलिम को भी यह अधिकार नहीं है कि वह फ़तवा दे। यह ऐसी ही बात है जैसे एक क्लाइंट होता है जो मुकदमा द्वारा अपना अधिकार लेता है एक वकील है जो जज को समझाता है कि मुकदमा क्या है? और एक न्यायाधीश है जो तय करता है कि सही क्या है। आम मुसलमान की स्थिति मुवक्किल है और आलिम वकील की जबकि निर्णय मुफ्ती को करना है क्योंकि वह न्यायाधीश है हम बदनसीब मुसलमानों में वे औरतें न्यायाधीश बन गईं जो वकील भी नहीं हैं। लेकिन जब हाईकोर्ट यह कहने के लिए तैयार बैठे हैं कि धार्मिक मामलों में भी वही निर्णय करेंगे और पुरूष स्त्री को बराबर का स्थान देंगे तो देखिए और क्या क्या होता है?
कुछ अज्ञानी आवारा बदचलन औरतों ने पेशा बना लिया है कि वह पूरा देश मेकप करके काले बुर्के में चेहरे को प्रदर्शित करने के लिए हर समय कैमरे के द्वारा अपनें हुस्न की नुमाइश करती हैं या सज बनकर बाल खोलकर टीवी चैनल में बैठकर कहती हैं कि कुरआन शरीफ में तीन तलाक कहीं नहीं है,और जाहिलों से पता करने वाले अगर पता करेंगे कि क्या कुरान में यह है कि किस नमाज़ कितनें कितने फ़र्ज़, कितने वाजिब कितनी सुन्नते मुअक्केदा कितनी सुन्नते गैर मुअक्केदा और कितने नफिल हैं वह दिखा देंगी। कुरआन में निकाह भी है तलाक भी है लेकिन वलीमा कहां है?खतना और अक़ीक़ा कहां है और क्या कुरआन भी ऐसी किताब है जिसे केवल तिलावत करने और अनुवाद पढ़ने वाली समझ लें कि कुरआन ने क्या कहा?सैकड़ों साल हो गए उसकी तफसीर उलेमा लिख रहे हैं और अब तक दर्जनों आलिमों ने ताफ्सीरें लिखीं मगर आज भी सिलसिला जारी हैl जिस महान कुरआन की यह फैशन की बेटियाँ बार बार संदर्भ दे रही हैं इसमें कहा गया है कि अगर यह कुरआन पहाड़ों पर उतारा जाता तो आप देखते कि वे रूई के गालों की तरह उड़ रहे हैं। उसकी महानता उसकी सुन्दरता व महिमा क्या ऐसा है जिससे पूरी तरह जाहिल लड़कियाँ खिलवाड़ करें?
आज सैकड़ों औरतें मोदी जी के पास और अब योगी जी के पास जा रही हैं कि हमारी शरीअत को ठीक कर दीजिए और तीन तलाक के खिलाफ कानून बना दीजिए। वह मूर्ख यह समझती हैं कि सरकार या सुप्रीम कोर्ट का बनाया हुआ कानून शरीअत में सुधार कर देगा। उनका लक्ष्य तीन तलाक को एक तलाक बनवाना नहीं है बल्कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को हराना है। वह जाहिल समझ रही हैं कि कोई चुनाव हो रहा है।
अगर वह इस्लाम की बेटियां हैं तो जरा इस्लाम का इतिहास पढ़ें वह चाहे हिंदी में हो इसमें उन्हें मिलेगा कि हमारे आक़ा ने कितने ईसाई यहूदी और बुतपरस्त और खुद परस्त शासकों को पत्र लिखे थे कि वे केवल अल्लाह को पूजनीय मानें मुझे उसका नबी और इस्लाम को सच्चा धर्म lऔर इसके जवाब में कोई पहले इस्लाम लाया और कोई बाद में। यहाँ तक कि आधी से अधिक दुनिया इस्लाम को मानने लगी। आज भारत के प्रधानमंत्री मोदी जी कह रहे हैं कि ''तीन तलाक से मुस्लिम बहनें संकट में हैं ''उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार और पार्टी उनके साथ हैं। अब अगर वे बहनें वाकई मुस्लिम हैं तो मोदी जी भाई से कहें कि हमें इसकी तकलीफ है कि मरने के बाद स्वर्ग में आपका साथ नहीं होगा। आप इस्लाम स्वीकार करके तीन तलाक की समस्या का समाधान करें और हमारे साथ स्वर्ग में रहें। और उन मुसलमान बहनों को अगर तलाक और हलाला से शर्म आ रही है तो उनके सामने दूसरे धर्म भी हैं वह उनमें से किसी को स्वीकार कर लें।
इस्लाम विरोधी तत्व और मीडिया ने हलाला को मज़ाक बना लिया है lयह क्यों नहीं सोचते कि जब किसी ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया तो अब वह कौन है यह फैसला करने वाला है कि वे किस से शादी करे या शादी न करने का फैसला करे?जो लोग हलाला द्वारा बिस्तर बदलते हैं वे इसके लायक हैं कि उनकी गर्दन मारी जाए l रही यह बात कि फिर से शादी हो तो दस बार अगर ऐसा हो जाने के बाद और सौ में शायद दो चार भी ऐसे नहीं होते। इसलिए यह विषय बात करने का है ही नहीं। अब बोर्ड ने अपील की है कि जो तीन तलाक एक समय में दे उसका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए। इस पर अमल करने के लिए मस्जिदों के मेम्बरों को माध्यम बनाना चाहिए और सामाजिक बहिष्कार ऐसा हो कि कहीं भी इसे सहारा न मिले और जिस द्वार पर जाए उसका दर न खुले lलेकिन तीन तलाक हर हाल में तीन तलाक ही रहेंगी और सरकार की दखल अंदाजी का कोई असर न लिया जाए इसलिए कि मुसलमान शरीअत का पाबंद है।
19 अप्रैल, 2017 स्रोत: रोज़नामा जदीद खबर, नई दिल्ली
URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/triple-talaq-be-counted-talaq/d/110857
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