आईएसआईएस का हमला उसकी मायूसी को ज़ाहिर करता है।
प्रमुख बिंदु:
1. इस हमले में 2 अफराद हालाक हुए, जिसमें एक सिख और एक तालिबान का सदस्य है।
2. गुरुद्वारा में मासूम ज्यारत करने वालों पर हमला करना
एक आतंकवादी कार्य है।
3. आईएसआईएस अपराधियों का एक समूह है।
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न्यू एज इस्लाम स्टाफ राइटर
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
21 जून 2022
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Two
people were killed and at least seven others injured in the attack.
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एक गुरुद्वारा पर आतंकवादी हमला
काबुल अफगानिस्तान के कारते परवान में एक बार फिर आईएसआईएस ने अपनी मायूसी का प्रदर्शन किया है। 19 जून 2022 को इस हमले के नतीजे में दो लोग हालाक हुए, जिसमें एक सिख और एक तालिबान सदस्य है। आईएसआईएस ने इन हमलों की ज़िम्मेदारी कुबूल की है और यह कह कर इसे सहीह साबित करने की कोशिश भी की है कि यह हमले इस्लाम के पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के जवाब में किये गए हैं।
हालाँकि, अफगानिस्तान में सिखों और हिंदुओं पर आईएसआईएस या तालिबान के हमले कोई नई बात नहीं है। मार्च 2020 में, आईएसआईएस-हक्कानी नेटवर्क से जुड़े एक आत्मघाती हमलावर ने काबुल में गुरुद्वारा हर राय साहिब पर हमला किया। जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई और 8 अन्य घायल हो गए।
2018 में, आईएसआईएस ने जलालाबाद में सिखों की एक सभा पर हमला किया था और इसकी जिम्मेदारी कुबूल की थी। उन्होंने तब कहा था कि हमले कश्मीर में भारत सरकार के ऑपरेशन के जवाब में किए गए हैं।
मार्च 2020 में आईएसआईएस ने अशरफ गनी के शपथ ग्रहण समारोह पर हमला किया था। हमले के बाद गिरफ्तार किए गए आतंकियों में से एक पाकिस्तान की आईएसआई का था।
Sikh
Group Marks One Year Of Attack On Gurudwara In Kabul, Pays Tribute To Lost
Lives/ Photo: Outlook
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इसलिए हाल के गुरुद्वारा हमले में पाकिस्तान की आईएसआई की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। अफगानिस्तान में रणनीतिक गहराई की पाकिस्तानी की नीति को झटका लगा है क्योंकि तालिबान ने पाकिस्तान और संयुक्त राज्य अमेरिका की मदद से सत्ता में आने के बाद पाकिस्तान के सामने झुकने से इनकार कर दिया है और भारत की ओर रुख कर लिया है।
हमले के पक्ष में आईएसआईएस का तर्क था कि यह पैगंबर के खिलाफ की गई टिप्पणियों के जवाब में था, लेकिन उनका तर्क निराधार लगता है क्योंकि 2018 में, उसी आईएसआईएस ने कहा कि हमने सिखों पर हमला किया क्योंकि भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में कश्मीरियों पर अत्याचार किया है। दोनों ही मामलों में, अफगान सिख और हिंदू शामिल नहीं थे। इस्लाम दूसरों की गलती पर बेगुनाहों की हत्या की इजाजत नहीं देता है।
दो भारतीय राजनेताओं ने इस्लाम के पैगंबर के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की है और उन पर भारत के बलासफेमी कानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। भारत में मुसलमानों ने इस टिप्पणी की निंदा की है और कानूनी कार्रवाई की मांग करते हुए शांतिपूर्वक विरोध किया है। इस मुद्दे पर इस्लामिक देशों ने कूटनीतिक कदम उठाए हैं। अफगानिस्तान में गुरुद्वारों और सिख समुदाय के सदस्यों पर इस हमले को इस्लामी कानून के तहत किसी भी कोण से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। यह एक आतंकवादी कृत्य है और मानवता के खिलाफ अपराध है। कुरआन स्पष्ट रूप से कहता है कि एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या पूरी मानवता को मारने के समान है और एक निर्दोष व्यक्ति को बचाना पूरी मानवता को बचाने के समान है। आईएसआईएस एक गुरुद्वारे पर हमले में मारे गए एक मुसलमान की हत्या को कैसे जायज ठहरा सकता है?
कुरआन यह भी कहता है कि कोई भी दूसरे के (पाप या अपराध) का बोझ नहीं उठाएगा। भारत में कश्मीरियों के उत्पीड़न की सजा अफगानिस्तान या किसी अन्य देश के निर्दोष सिखों या हिंदुओं को कैसे दी जा सकती है? यह भारत में कुछ हिंदुत्ववादी दलों की सोच है जो सदियों पहले मुस्लिम राजाओं द्वारा हिंदुओं के कथित उत्पीड़न के लिए भारत के मुसलमानों को 'दंड' देते हैं। आईएसआईएस उनसे अलग होने का दावा कैसे कर सकता है?
मुस्लिम बहुल देश में मासूम अल्पसंख्यकों को मारकर आईएसआईएस ने पैगंबर के सम्मान का अपमान किया है। एक इस्लामी देश में रहने वाले अल्पसंख्यकों की रक्षा करना और उन्हें सुरक्षा प्रदान करना इस्लामी सरकार की धार्मिक जिम्मेदारी है और कुरआन के अनुसार, आईएसआईएस भ्रष्टाचारियों का एक समूह है क्योंकि वे सरकार का हिस्सा नहीं हैं और पृथ्वी पर अराजकता कर के देश के कानून और कुरआन के सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं। कुरआन के कानून के अनुसार, उन्हें या तो सार्वजनिक रूप से फांसी दी जानी चाहिए या उनके हाथ और पैर विपरीत दिशा में काट दिए जाने चाहिए। क्या शरीयत का पालन करने का दावा करने वाला तालिबान इस तरह से आईएसआईएस के आतंकियों को सजा देगा?
यह हमले अफगानिस्तान में भारत के बढ़ते प्रभाव के मुकाबले में पाकिस्तान की राजनीतिक और राजनयिक अशांति का परिणाम प्रतीत होते हैं। पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान में अफगान सरकार के सत्ता में आने के बाद से अफगान तालिबान के साथ पाकिस्तान के संबंध खराब हुए हैं। तालिबान की विचारधारा वाले आतंकवादी संगठन टीटीपी ने पिछले दस महीनों में पाकिस्तान में अपने आतंकवादी अभियान तेज कर दिए हैं। सितंबर 2021 से मई 2022 तक टीटीपी आतंकियों ने पाकिस्तान में 170 हमले किए हैं। करीब 10,000 टीटीपी आतंकवादियों ने पाकिस्तान की सीमा से लगे अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों में शरण ली है। पाकिस्तान तालिबान से अपने क्षेत्र से टीटीपी आतंकवादियों को खदेड़ने और उनके खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह कर रहा है, लेकिन तालिबान उनके साथ नरम रहा है। तालिबान अपने और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित करने में अधिक रुचि रखते हैं।
दूसरी ओर, तालिबान व्यापार और सुरक्षा के क्षेत्रों में भारत के साथ काम करने के लिए सहमत हो गया है। 2 जून को, एक भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधिमंडल ने काबुल में अफगान मंत्री मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब के साथ मुलाकात की और द्विपक्षीय व्यापार सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की। भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने देश में मानवीय सहायता के वितरण की निगरानी के लिए अफगानिस्तान का दौरा किया था। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान, अफगान मंत्री से पूछा गया कि क्या उनकी सरकार सैन्य प्रशिक्षण के लिए अफगान सैनिकों को भारत भेजने में दिलचस्पी रखती है, जिस पर उन्होंने कहा कि उनकी सरकार प्रशिक्षण के लिए अपने सैनिकों को भारत भेजेगी।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने से पहले, भारत ने आतंकवाद, युद्ध, संकेत, खुफिया जानकारी एकत्र करने और सूचना प्रौद्योगिकी में अफगान सुरक्षा कर्मियों को प्रशिक्षित किया था।
MOI,
Afghanistan shared a video in which the Taliban officials can be seen meeting
Afghan Sikhs at Gurudwara and holding a discussion (Screenshot)
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4 फरवरी, 2022 को, अफगान दूतावास ने कहा कि 80 युवा अफगान सैन्य कर्मियों, जिन्होंने हाल ही में भारतीय सैन्य अकादमियों से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी, को व्यापार और आर्थिक सहयोग कार्यक्रम के लिए प्रभावी अंग्रेजी संचार में 12 महीने के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है। अफगान सरकार ने भारत के प्रस्ताव की सराहना की।
भारत ने पिछली सरकार में सेवा करने वाले अफगान अधिकारियों और सुरक्षा कर्मियों के पुनर्वास की भी मांग की है, जो पिछली सरकार के प्रति अपनी वफादारी के कारण वर्तमान तालिबान सरकार द्वारा उत्पीड़न के डर से अफगानिस्तान लौटने से डरते हैं। तालिबान सरकार ने उन्हें आश्वासन दिया है कि हम अपनी नई सरकार में उनका स्वागत करेंगे।
यह भी उल्लेखनीय है कि इस्लाम के पैगंबर का अपमान करने के मुद्दे पर तालिबान सरकार ने भारत के खिलाफ कड़ा रुख नहीं अपनाया। यह एक संकेत था कि तालिबान ऐसे समय में भारत का विरोध नहीं करना चाहता था जब वह कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों से घिरा हुआ था।
यह पाकिस्तान के लिए अशांति का कारण है। भारतीय प्रतिनिधिमंडल के अफगानिस्तान दौरे के दो सप्ताह बाद काबुल में एक गुरुद्वारे पर हमला उस बेचैनी का प्रमाण है।
आईएसआईएस, जिसे कभी लापरवाह इस्लामिक संगठनों और उलमा के एक वर्ग द्वारा खिलाफत का अलमबरदार माना जाता था, वह अब किराए के टट्टू बन गए हैं जो कभी अजरबैजान में तुर्की के एर्दोगन के लिए लड़ता है, कभी यूक्रेन में रूस के पुतिन के लिए तो कभी अफगानिस्तान में पाकिस्तान के लिए लड़ते हैं। मुसलमान इस्लाम के नाम पर आईएसआईएस के आतंकवादी कृत्यों की कड़ी निंदा करते हैं।
English Article: Attack on Gurudwara in Kabul Is An Act of Terrorism,
Not Approved by the Quran or the Prophet
URL:
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