बासिल हेजाज़ी, न्यु एज इस्लाम
22 अप्रैल, 2014
कुरान कहता है किः इन्नल्लाहा योदाफेओ अनिल- लज़ीना आमनू- अल्लाह उन लोगों की रक्षा करता है जो ईमान लाये हैं- सूरे अल-हज आयत 38
हालांकि आयत में जान बूझ कर ये बयान किया गया है कि अल्लाह ही ईमान लाने वालों की रक्षा करता है लेकिन फिर भी मोमिनों ने अपने कमज़ोर कंधों पर अल्लाह की रक्षा का बोझ उठा रखा है जैसे अल्लाह को अपने बचाव के लिए किसी की ज़रूरत हो। कुरान के इस स्पष्ट पाठ के उल्लंघन के साथ मोमिनों का किताबों, फेसबुक के पेजों और ब्लॉगों पर मुल्हिद (नास्तिकों) लोगों से बहस और अल्लाह के अस्तित्व को साबित करने की कोशिशें अल्लाह का स्पष्ट अपमान है, क्योंकि ये वास्तव में अल्लाह का बचाव है ही नहीं जिसे किसी की रक्षा की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है बल्कि ये तो उस मानसिक अल्लाह की रक्षा है जो सिर्फ ऐसे बेवकूफों के मन में बसता है जिन्होंने खुद को सही साबित करने के लिए उस अल्लाह को अपने अहम् का ऐसा औज़ार बना दिया है जिसके द्वारा ये लोग न सिर्फ अपने उस विश्वास के बुरे रूप को छिपाते हैं बल्कि आम मुसलमानों को अल्लाह और उसके रसूल के वहमी बचाव में व्यस्त कर के उन्हें आत्मा और बुद्धि की ताकत से दूर करते हैं।
दूसरी तरफ वो नास्तिक हैं जो अपने पक्ष के बचाव और धर्म को जड़ से उखाड़ पेंकने और नास्तिकता की ओर लोगों को बुलाने में अपनी जगह सही हैं, क्योंकि वो महसूस करते हैं कि उस खुदा ने न सिर्फ उनका बल्कि दूसरे लोगों का जीवन तबाह करके रख दिया है और उनके दिलों में भय और समाज में आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। इसलिए जब नास्तिक नास्तिकता का बचाव करते हैं तो ये बचाव अपने मनोवैज्ञानिक गहराई में दरअसल लोगों, जीवन और मानवाधिकारों का बचाव होता है। इस अर्थ में ये लोग वास्तविक अल्लाह और उसके इरादे, दया और विनम्रता की रक्षा कर रहे होते हैं, नास्तिकता के बचाव में उनका उद्देश्य सिवाय इसके और कुछ नहीं होता कि धार्मिक लोगों के यहां आतंकवाद और भेदभाव का खत्मा हो। अल्लाह और धर्म के प्रति उनका ये रुख वास्तव में उन सारी गतिविधियों की प्रतिक्रिया है जो धार्मिक लोग और उनके पीछे खड़े उनके धार्मिक नेता उनके खिलाफ करते हैं। क्या हम पश्चिमी देशों के चर्च की बनाई हुई वो जांच अदालतें भूल गए जिनका काम विचारकों को ढूंढ ढूंढ कर जिंदा जलाना था और जिसकी प्रतिक्रिया के रूप में बाद में नास्तिकता के एक ऐसी विशाल लहर उठी जिसने खुदा और धर्म को जड़ से उखाड़ फेंकने की मांग कर दी। ये तो प्रकृति का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है जो क्रिया की विपरीत दिशा में उतने ही बल से संचालित होती है ...
मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मूर्ख धार्मिक लोगों खासकर इस्लाम के बड़े बड़े ठेकेदारों के मुक़ाबले में ये नास्तिक लोग अल्लाह और उसकी दया से कहीं ज्यादा करीब हैं कि मूर्ख दोस्त से बुद्धिमान दुश्मन कहीं ज़्यादा बेहतर होता है। इस कथन की सच्चाई अब वास्तविक जीवन में भी दिखने लगी है। मोमिनों के अमल और इस्लाम के मुफ़्तियों (फतवा जारी करने वाले) ने हास्यास्पद फतवों की वजह से लाखों लोग अल्लाह से नफरत करने लगे हैं और ईमान की राह से भटक रहे हैं। वो सेकुलर लोगों और हर उस व्यक्ति पर कुफ्र के फतवे लगा रहे हैं जो उनका हास्यास्पद विश्वास न रखता हो हालांकि सेकुलर या नास्तिक को इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि आपका विश्वास क्या है। वो तो बस आपसे ये चाहता है कि आप उस पर और लोगों पर अपनी राय न थोपें ताकि उनकी वैचारिक स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके जो अल्लाह भी चाहता है, लेकिन धार्मिक लोगों की स्वतंत्रता का हनन कर के अपनी खतरनाक प्रतिगामी विचारों को हर तरीके से लोगों पर थोपना चाहते हैं। ऐसे में खुद ही फैसला कीजिए कि अल्लाह के ज़्यादा करीब कौन है ..?
आरिफीन की तारीफ में अल्लाह को किसी के बचाव की ज़रूरत नहीं है क्योंकि ये उसी ने चाहा कि दुनिया इसी रूप में हो, और यह भी उसी की ही इच्छा थी कि जीवन इस सूरत में हो जिसमें विभिन्न धर्म, राष्ट्र और विचारों के लोग खुशी से जीवन व्यतीत करें और सहयोग और प्रेम से जीवन का आनंद लें। अल्लाह एक सूरज की तरह है जो अपने प्रकाश के साथ सारी दुनिया पर उभरता है। अल्लाह बारिश है जो सब पर समान बरसता है और सभी बिना अपवाद के उससे फायदा हासिल करते हैं। उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई उसका शुक्र बजा लाता है या नहीं। सूरज भी हमें रौशनी और गर्मी देता है और अगर वो थोड़ी देर के लिए बादलों से ढक जाए और कोई उसके अस्तित्व से इंकार कर दे तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। अल्लाह भी अपनी रचना के साथ ऐसे ही है इसलिए किसी को ये अधिकार नहीं है कि वो धरती पर अल्लाह का स्वयंभू प्रतिनिधि बनकर लोगों पर अल्लाह के नाम पर पाबंदियाँ लगाये।
न्यु एज इस्लाम के स्तम्भकार बासिल हेजाज़ी पाकिस्तान के रहने वाले हैं। स्वतंत्र पत्रकार हैं, धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन और इतिहास इनके खास विषय हैं। सऊदी अरब में इस्लामिक स्टडीज़ की पढ़ाई की, अरब राजनीति पर गहरी नज़र रखते हैं, उदार और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के ज़बरदस्त समर्थक हैं। इस्लाम में ठहराव का सख्ती से विरोध करते हैं, इनका कहना है कि इस्लाम में लचीलापन मौजूद है जो परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की क्षमता रखता है। ठहराव को बढ़ावा देने वाले उलमाए इस्लाम के सख्त रुख के कारण वर्तमान समय में इस्लाम एक धर्म से ज़्यादा वैश्विक विवाद बन कर रह गया है। वो समझते हैं कि आधुनिक विचारधारा को इस्लामी सांचे में ढाले बिना मुसलमानों की स्थिति में परिवर्तन सम्भव नहीं।
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