New Age Islam
Sat Sep 23 2023, 10:20 AM

Hindi Section ( 1 May 2017, NewAgeIslam.Com)

Comment | Comment

Triple Talaq and Halala तीन तलाक और हलाला


फरहीन खान

20 अप्रैल, 2017

इसमें दो राय नहीं कि इस्लाम का बुनियादी जीवन प्रणाली हर संपादित व परिवर्तन से मुक्त और साफ है, बशर्ते उसके स्वभाव और मंशा का बहर सूरत ख्याल रखा जाए। जन्म से दफनाए जाने तक हर एक चरण में इस्लामी व्यवस्था मनुष्य का पूरा मार्गदर्शन करता है। शिक्षा और प्रशिक्षण का चरण हो, शादी ब्याह का मामला हो, सामाजिक निर्माण का मामला हो, राष्ट्रीय एकता और अखण्डता का मामला हो, इन सभी कठिन अवसरों पर भी इस्लामी प्रणाली की रोशनी में एक ऐसी जीवन गुजर-बसर की जा सकती है जिसकी जरूरत कमोबेश आज हर इंसान को है, लेकिन एक सवाल पैदा होता है कि जब इस्लामी प्रणाली अपने अंदर इस कदर खूबियां और विस्तार और सार्वभौमिकता रखता है तो उसके कुछ प्रणाली पर लोग उंगली क्यों उठाते हैं? जब इस्लामी प्रणाली पूरी मानवता के लिए मार्गदर्शन का सबसे अच्छा स्रोत है फिर कुछ कुछ वो लोग जो इस्लामी नेजाम के अनुसार अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, इस प्रणाली के बाद इसके कुछ भाग से संतुष्ट क्यों नहीं हैं? क्यों उन्हें लगता है कि इस पर कुछ विचार करने की जरूरत है? तो इस संबंध में सबसे पहले अर्ज़ है कि हम यह कह कर अपना हाथ नहीं उठा सकते हैं कि ऐसा करने वाले उदारवादी लोग हैं, या इस्लाम दुश्मन हैं, बल्कि तथ्य यह है कि उनमें कुछ लोग बड़े ज्ञानवान, चेतना और धार्मिक आधार पर जीवन जीने में विश्वास भी रखते हैं, फिर भी वे जीवन के किसी न किसी मोड़ पर बड़े असमंजस में पड़ जाते हैं और यह तय नहीं कर पाते कि वे क्या करें और क्या नहीं। ऐसे अवसरों पर कुछ व्यक्तिय किसी प्रकार गुंजाइश निकाल लेते हैं, लेकिन कुछ लोग गुंजाइश निकालने की शक्ति नहीं रख पाते और ज़लालत व बे दीनी के दलदल में फंसते चले जाते हैं, जिसके पर्दे में इस्लाम दुश्मन ताकतें उन्हें अपना मोहरा बना लेती हैं और इस्लाम के प्रणाली पर सवाल खड़ा कर देती हैं। इसलिए आज इसके उदाहरण समान नागरिक संहिता, तीन तलाक, हलाला आदि पर आपत्ति की स्थिति में हमारे सामने मौजूद हैं।

इस संबंध में अन्य कारणों के साथ हम और हमारा समाज भी जिम्मेदार है, इसमें संदेह नहीं कि मुस्लिम पर्सनल लॉ, तीन तलाक और हलाला के शरई अर्थ से समझौता किसी आधार से संभव नहीं, लेकिन तीन तलाक और हलाला के मामले में कोई ऐसी सूरत निकालना अनिवार्य हो गया है जिससे न इस्लामी प्रणाली पर कोई आंच आने पाए, न तलाक और हलाला के नाम पर कोई बुराई में शामिल होने पाए, और न ही कोई इस्लाम की जीवन प्रणाली का उपहास न बना पाए, और इसके लिए सबसे पहले उन कारणों को सामने रखना होगा जिन कारणों से हुज़ूर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बैठक में दी गई तीन तलाक को एक तलाक करार दिया और फिर अमीरुल मोमीनीन उमर रदिअल्लाहु अन्हु नें एक मजलिस में दी गई तीन तलाक को तीन तलाक करार दिया। यहाँ एक संदेह पैदा होता है कि क्या उमर रादिअल्लाहु अन्हु ने इस मसले में हुज़ूर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आदेश का उल्लंघन किया? तो यह एक शैतानी वसवसा है, क्यों कि हुज़ूर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है कि मेरी सुन्नत और चारों खलीफा की सुन्नत को लाज़िम पकड़ो। (अबू दाऊद) इसी से यह मालूम होता है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यह महसूस कर चुके थे कि बवक्त हाजत व हिकमत मेरे साथियों से कुछ ऐसे कार्य और निर्णय होंगे जो जाहिर तौर पर मेरी सुन्नत के खिलाफ लगेंगे लेकिन वास्तव में वे मेरी बातों और मिज़ाज और मंशा की व्याख्या होंगे, ऐसे अवसर खुद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में सामने आ चुके थे, जैसे एक यात्रा में अस्र की नमाज़ कज़ा होने के डर से कुछ सहाबा ने रास्ते में अस्र अदा कर ली और कुछ सहाबा ने फरमान ए नबवी पैगंबर के अनुसार अस्र की नमाज़ गंतव्य पर पहुंचने के बाद अदा की। जब यह मामला हुज़ूर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह तक पहुंचा तो आपनें दोनों को सही ठहराया। इस आधार पर देखें तो चारों खलीफा का कोई अमल अल्लाह और उसके रसूल के खिलाफ नहीं।

इसलिए जब यह साबित हो गया कि हुज़ूर नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का निर्णय और अमीरुल मोमिनीन उमर रदिअल्लाहु अन्हु का फैसला एक दुसरे के फैसले के खिलाफ नहीं, बल्कि जरुरत के समय शरीअत के सटीक है, तो अब इस बात पर विचार करना अत्यधिक अनिवार्य हो जाता है कि पवित्र सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक सभा में दी जाने वाली तीन तलाक को एक तलाक क्यों करार दिया और उमर रदिअल्लाहु अन्हु नें एक मजलिस में दी जाने वाली तीन तलाक को तीन तलाक क्यों बताया?

इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने और खिलाफत के ज़मानें की समीक्षा करनें से तथ्य खुलकर सामने आती है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में आमतौर पर लोग हर मामले में अधिक ईमानदार और वफादार थे। तलाक को बेहद गंदी बहुत बुरा समझते थे, तलाक का चलन आम नहीं था और न ही तलाक की बहुतायत थी, फिर उस समय उर्फ आम में एक से अधिक शब्द तलाक बोलने से दो तीन या तलाक मतलब नहीं लिया जाता था बल्कि एक से अधिक शब्द तलाक ताकीद के लिए बोला जाता था। इसलिए नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में लोगों को अनचाही समस्याओं से बचाने के लिए एक सभा में दी गई तीन तलाक को एक तलाक करार दिया गया। लेकिन खिलाफत फारूकी का समय आते आते तलाक की बहुतायत होने लगी, तलाक के मामले में लोग बे अहतयातियाँ करने लगे, फिर उर्फ आम भी बदलने लगा और एक से अधिक शब्द तलाक बोलना लोग लिए ताकीद नहीं रह गया बल्कि लोग तीन बार तलाक बोलनें के साथ खेद भी करने लगे। इसका स्पष्ट मतलब था कि एक से अधिक बार तलाक बोलना एक से अधिक बार तलाक होने के इरादे के कारण था। इसलिए उमर रदिअल्लाहु अन्हु नें एक मजलिस में दी गई तीन तलाक को तीन तलाक करार दिया, ताकि लोग गंदी तलाक की बुराई से सुरक्षित रहें, और पत्नी से अलगाव के डर से तीन तलाक देना छोड़ दें कि कहीं उसे अपनी मनपसंद पत्नी से वंचित न होना पड़ जाए। ग़रज़ कि समाज को गंदी प्रक्रिया (तीन तलाक) की बहुतायत से सुरक्षित रखने के लिए हज़रत उमर रदिअल्लाहु अन्हु ने ऐसा किया। फिर इतिहास से यह पता चलता है कि उनके कार्यकाल में तीन तलाक देने वाले को सबक सिखाने के लिये कुछ सजाएं भी दी जाती थीं।

आज जब हम अपने आस-पास के समाज पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि इस ज़मानें में तलाक की दर उमर रदिअल्लाहु अन्हु के युग के सापेक्ष अरबों-खरबों गुना अधिक बढ़ गई है, और अगर इसी पर बस होता तो भी शुक्र था, लेकिन सीमा तो यह है कि हलाला के नाम पर अजीबो गरीब बुरे कार्य के चोर दवाज़े खोल लिए गए हैं l इमानदारी की बात की जाए तो हलाला ने वास्तव में वक्ती निकाह का रूप अपना लिया है, जबकि वक्ती निकाह चारों इमाम (इमाम आज़म, इमाम शाफई, इमाम मलिक इमाम हंबल) के यहाँ हराम है। आजकल हलाला के लिये आमतौर पर जो निकाह प्रक्रिया में आता है, वह पहले से निकाह इस निर्णय पर आधारित होता है कि साहचर्य के बाद दोनों एक दूसरे से अलगाव कर लेंगे, और महिला अपने पति के पास लौट जाएगी, जबकि मूल शादी में स्थायीकरण के इरादे शर्त है।

उदाहरण के रूप में किसी भी इस्लामी समाज में अकदे निकाह आयोजित होता है तो आम तौर पर दुलहा-दुलहन का इरादा यह होता है कि हम दोनों एक दूसरे के साथ वैवाहिक रिश्ते में बंध चुके हैं और हमारा यह वैवाहिक बंधन जीवन भर के लिए हुआ है, न कि एक रात के लिए, जबकि हलाला हेतु आयोजित होने वाले सभी नकाहों में यह इरादा होता है कि एक रात, एक बैठक के बाद अकद निकाह समाप्त हो जाएगा। बल्कि कुछ स्थानों पर हलाला केंद्र स्थापित किया गया है जहां एक ख़तीर रक़म देकर हलाला करवाया जाता है। मानो हलाला न हुआ, एक तरह से अपनी इच्छाओं को पूरी करने का जरिया हो गया। फर्क सिर्फ इतना है कि वेश्याओं के पास पुरुष जाते हैं और अपनी मुराद पाते हैं, और हलाला के नाम पर महिलाएं परुष के पास जाती हैं और अपनी मुराद पाती हैं।

इन सभी बातों के मद्देनजर सभी मुफ़्ती और काज़ी को इस पहलू पर गंभीरता से विचार करने की सख्त जरूरत है, ताकि गैर शरई तीन तलाक के चलन को रोका जा सके। मेरे विचार में अगर कोई ऐसी स्थिति निकलती हो जिससे एक ही सभा में दी गई तीन तलाकों पर बंद लग सके और इस गंदी प्रक्रिया को करनें वालों के लिए कोई सजा तय हो सके तो उस पर भी विचार करने में कोई हर्ज नहीं। यहां यह बात भी ध्यान में रहे कि आजकल जो तीन तलाकें दी जाती हैं उनमें से अधिकांश तलाकें इस बात पर होती है कि पत्नी ने पति की बात नहीं मानी, पति के किसी रिश्तेदार के साथ बदतमीजी कर दी, करी में नमक ज्यादा रख दिया, पत्नी बेवजह शक के घेरे में आ गई या फिर पत्नी पति के कदाचार से त्रस्त है आदि। जबकि इनमें से कोई भी प्रक्रिया शरई तौर पर एक तलाक की भी अनुमति नहीं देता, फिर तीन तलाक तो दूर की बात है, लेकिन फिर भी तीन तलाकें बड़े पैमाने पर दी जा रही हैं। इसलिए एक ही मजलिस में तीन तलाक देने वालों को शरीअत का पास और लिहाज़ न रखने का दोषी माना जाए और एक मजलिस में तीन तलाक देने वालों को सबक के लिये कुछ सजा निर्धारित कर दी जाएं, जैसे कैद और बंद, सामाजिक बहिष्कार आदि। ताकि लोग तीन तलाक देने के इस गैर शरई प्रक्रिया से बाज आ सकें, और हलाले की नौबत न आने पाए, तथा महिलाओं के अधिकारों की रक्षा भी हो सके।

20 अप्रैल, 2017 स्रोत: रोज़नामा हिंदुस्तान एक्सप्रेस, नई दिल्ली

URL for Urdu article: https://www.newageislam.com/urdu-section/triple-talaq-halala-/d/110877

URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/triple-talaq-halala-/d/110966

New Age Islam, Islam Online, Islamic Website, African Muslim News, Arab World News, South Asia News, Indian Muslim News, World Muslim News, Womens in Islam, Islamic Feminism, Arab Women, Womens In Arab, Islamphobia in America, Muslim Women in West, Islam Women and Feminism,


Loading..

Loading..