कारी सैयद उस्मान मंसूरपुरी
१ नवंबर २००९ को दारुल उलूम देवबंद में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संवहन का आयोजन
हुआ था जिसमें कारी सय्यद उस्मान मंसूर पूरी ने सदारती खिताब पेश किया था। निम्नलिखित
उनके भाषण का वह हिस्सा है जिसमें उन्होंने इस्लाम और आतंकवाद के मुद्दों पर चर्चा
की।
हज़रात! आतंकवाद और इसके
बुरे प्रभाव से पूरी दुनिया परेशान है, आतंकवाद चाहे एक व्यक्ति की ओर से हो या
संगठन या राज्य की ओर से निंदनीय है और इस पर रोक लगाने की सख्त जरूरत है, कोई
देश, समाज, शांतिपूर्ण माहौल में ही विकसीत हो सकता है, दहशत और खौफ की हालत में
लोगों का ध्यान जीवन के बुनियादी समस्याओं से हट कर केवल अपने सुरक्षा पर
केन्द्रित हो जाता है और समाजिक कार्यप्रणाली तितर बितर हो कर रह जाता है। ११
सितम्बर २००१ के बाद से आतंकवाद समस्या को ले कर पूरा आलमी मंजरनामा बदला हुआ है, इससे
जहां विभिन्न फिरकों के बीच नफरत, दुरी और दुश्मनी बढ़ी है, वहीँ, मज़हब और नजरिये
भी ज़द में आए हैं, इस हवाले से इंसानी सतह पर बाह्मी समबन्ध और इसका रोल भी बहस का
विषय बन गया है, ख़ास तौर पर इस्लाम, पैगम्बर ए इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और
मुसलमान एक मज़हबी इकाई की हैसियत से सबसे अधिक निशाने पर हैं। इसके पेशेनजर जमियत
उलेमा ए हिन्द पिछले 9 सालों से स्थिति को बेहतर और विशेषतः इस्लाम, पैगम्बरे
इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शबीह को उसकी वाकई सूरत में पेश करने की मुहिम
चला रही है। इस सिलसिले में जमीयत उलेमा ए हिन्द दो सौ के करीब छोटे बड़े इजलास,
कान्फ्रेंस आदि कर चुकी है, उनमें से दिल्ली, हैदराबाद, मुंबई, बंगलूर, भुवनेश्वर,
आजमगढ़, अहमदाबाद, पालनपुर, चेन्नई इत्त्यादी की कान्फ्रेंस और इज्तिमाअ ख़ास तौर पर
उल्लेखनीय हैं, जिनके प्रभाव राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उम्मीद अफज़ा और
अच्छे मुरत्तब हुए हैं।
हुकूमत, मीडिया और इन्तिजामिया के लबो लहजे नीज कामों में फर्क आया है, तथापि
हम समझते हैं कि आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ हमारी लड़ाई समाप्त नहीं हुई है,
यह केवल आगाज़ है अभी बड़ी लड़ाई बाकी है जब तक कि सूरते हाल अमन के हक़ में पूरी तरह
नहीं हो जाती है इंशाअल्लाह हम संघर्ष और मुहिम जारी रखेंगे, क्योंकि जो लोग चाहे
वह हुकूमत से संबंध रखते हों या संगठन से वह ख़त्म नहीं हो गए हैं, केवल जरूरत और
हालात के तहत अपने तरीका ए कार और उनवानात में परिवर्तन कर के सामने आ रहे हैं।
आज भारी संख्या में लोग आतंकवाद के खिलाफ कार्यवाहियों के नाम पर ज़ुल्म व
ज्यादती के शिकार हैं, इस्लाम, पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शबीह
को खराब करने की कोशिशें जारी हैं, यह कहा और लिखा जा रहा है कि इस्लाम पुर अमन,
आलमी समाज के कयाम की राह में रुकावट है और इंसानी इत्तेहाद के लिए समस्या बना हुआ
है, यह भी बावर कराने की कोशिश की जा रही है कि पाबंदे शरअ अच्छा मुसलमान देश
प्रेमी नहीं हो सकता है क्योंकि इस्लाम मुसलमानों को दोसरे फिरकों से दूर रहने और
नफरत की शिक्षा देता है, यह एक खतरनाक और मजमूम प्रोपेगेंडा है जिसका हमें मजबूती
और संजीदगी से से तमाम मुमकिन तरीकों को अपना कर मुकाबला करना होगा।
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने कहा था कि अच्छे मुसलमान नहीं हो
सकते हैं, सरासर लग्व और बेहूदा बात है, लेकिन अफ़सोस की बात है कि इसी लग्व और बे
बुनियाद बात का प्रोपेगेंडा करके फिरका वाराना हम आहंगी और समाजी ताने बाने को
बिखेरने की कोशिश की जा रही है और जिहाद के हवाले से इस्लाम और पैगम्बरे इस्लाम
सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को निशाना बनाया जाता है, हम यह अच्छी तरह जानते हैं और
महसूस करते हैं कि विभिन्न धर्मों और फिरके वाले समाज में बाह्मी ताल्लुकात को ले
कर बहुत सी गलत फहमियाँ और मसाइल होते हैं, उन पर संजीदा और इल्मी गुफ्तुगू के गलत
फहमियों को दूर करने की जरूरत है, लेकिन गलत बातें मंसूब कर के बाह्मी नफरत के लिए
किसी सभी समाज में कोई जगह नहीं है।
तमाम जरूरी विषयों पर इस्लामी लिटरेचर वाफिर तादाद में उपलब्ध है, कुरआन व
हदीस के विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं और इस पर लगातार विभिन्न तरीकों से
काम भी हो रहा है, हम दावत देते हैं कि इस संजीदा मुताले कर के वाकई सूरते हाल को
जानने की कोशिश की जाए।
इस्लाम अमन का दाई और फसाद फैलाने का विरोधी है, जो लोग समाज में
तखरीबी कार्यवाहियों से आतंक फैलाते और निर्दोषों चाहे वह किसी भी धर्म, फिरके से समबन्ध
रखते हों को निशाना बनाते हैं, वह इस्लामी शरीअत की नज़र में जिहादी नहीं बल्कि फसादी हैं, इस्लाम गैर
मुस्लिमों के साथ बहमी रवादारी और अच्छे सुलूक के साथ जीवन गुज़ारने की शिक्षा देता
है, आम हालात में गैर मुस्लिमों के साथ बाह्मी लें दें, कारोबार और आम
समाजी ऐसे मामलों में जिनका समबन्ध लोगों की जरूरियाते जिंदगी से है, बिलकुल रुकावट
नहीं डालता है, कुरआन व हदीस में इस सिलसिले में सरीह अहकाम व हिदायात मौजूद हैं।
इस्लाम में एक बेकुसूर इंसान के कत्ल को पूरी इंसानियत का कत्ल करार दिया गया
है और एक इंसान के बचाने को पूरी इंसानियत को बचाना बताया गया है, इस्लाम ने जंगी
हालात में भी इंसानियत नवाजी का मुजाहिरा किया है, औरतों, बच्चों, बूढों, दुनिया
से अलग हो कर यकसुई के साथ इबादत करने वालों को मारने और फलदार दरख्तों के काटने
नीज़ मुस्लह करने को शरअन जुर्म करार दिया है, जो लोग और ताकतें दहशत गर्दी का
रिश्ता इस्लाम से कायम करते हैं वह सच्चाई और इन्साफ के कातिल हैं और नफरत के
सौदागर हैं, दहशतगर्दी के मामले को फिरका और मज़हब के तनाजुर में देखने से दहशत
गर्दी और दहशतगर्दों के खिलाफ अमन पसंदों की लड़ाई कमज़ोर हो जाती है, दहशतगर्दी को
एक लानत और पुर अमन समाज के लिए अज़ाब समझते हुए बिला इम्तियाज़ मज़हब और फिरका तमाम
मुहज्ज़ब अमन पसंद लोगों को इसका एक हो कर मुकाबला करना चाहिए, चाहे वह राज्य हो या
संगठन या पुलिस इंतेजामिया या मीडिया या तफतीशी एजेंसियां सब को अमन और तरक्की
याफ्ता समाज बनाने के लिए अपना अपना रोल अदा करना चाहिए।
सरकार, मीडिया और बिरादराने वतन से ख़ास तौर पर हमारी अपील है कि आतंकवाद के
मसले को संजीदगी से लेते हुए इसके इन्सेदाद के लिए इस तौर से कोशिश हो कि इसे
फिरका वाराना रंग ना मिले, मुसलमानों से भी हमारी अपील है कि जज़्बात में आए बिना
अमन पसंद भारतीयों से मिल कर आतंकवाद का मुकाबला करें और इस सिलसिले में जो कमियाँ
हैं उनको दूर करने की हर संभव कोशिश की जाए। अलहम्दुलिल्लाह जमियत उलेमा ए हिन्द
की मुसलसल कोशिशों से यह आरोप कमज़ोर होता जा रहा है कि दहशतगर्दी के लिए इस्लाम
जिम्मेदार है, पिछले कुछ बरसों में जमीयत उलेमा ए हिन्द ने मुसलमानों के बजाए
ज़्यादा तवज्जोह निसबतन इस बात पर दी कि इस्लाम और पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहु
अलैहि वसल्लम की शबीह को बिगाड़ने की कोशिशों पर रोक लगे, यह उम्मीद अफज़ा बात है कि
हमें इसमें कामयाबी मिली है, हमें इस मुहिम को आगे ले जाना है, इस्लामी शरीअत तहफ्फुज़
और इस्लाम की शबीह की बेहतरी में बजाते खुद मुसलमानों का तहफ्फुज़ और बेहतरी है।
हम अरबाबे हुकूमत और मुल्क के बही ख्वाहों के सामने मसले का यह पहलु भी सामने
रखना चाहते हैं कि फिरका परस्ती और ना इंसाफी की कोख से दहशतगर्दी जन्म लेती है,
इसलिए फिरका परस्ती, ना इंसाफी और महरूमी के खात्मे के लिए प्रभावी कदम उठाने
जरुरी हैं, देश में विभिन्न उनवानात से जो फिरका वाराना सरगर्मियां होती हैं, उन
पर कड़ी नज़र रखते हुए क़दगन लगाने की जरूरत है, हम जमीयते उलेमा ए हिन्द की तरफ से
तमाम लोगों से बिला इम्तियाज़ मज़हब व फिरका अपील करते हैं कि सब मिल कर मुल्क की
तरक्की और अमन के लिए काम करें ताकि भारत की नेकनामी हो और हमारे ख़्वाबों का भारत
वजूद में आ सके, जमीयते उएल्मा ए हिन्द इस सिम्त में बारहा तवज्जोह मब्जूल करा
चुकी है कि तमाम भारतीय, देश की तरक्की व अमन के लिए इस तरह संघर्ष करें कि वह
२०२० ई० तक विकसीत देशों के श्रेणी में शामिल हो जाए।
हम समझते हैं कि फिरका परस्ती, बद अमनी और दहशतगर्दी हमारी तरक्की की राह में
बड़ी रुकावट है, इस रुकावट को तमाम भारतीयों के लिए दूर करना जरूरी है।
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URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/end-terrorism-our-shared-responsibility/d/122825
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