कनीज़ फातमा, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
9 अगस्त 2022
इस्लाम में रवादारी का फरोग
• इस्तेलाह में रवादारी का मफहूम
यह है कि किसी तास्सुब व इनाद और बुग्ज़ व हसद के बिना सब्र व तहम्मुल से किसी दुसरे
की बात को ठंढे दिल से बर्दाश्त करना
• इस्लाम में रवादारी का तसव्वुर
यह है कि विरोधाभासी ख्यालों के हामिल लोगों को बराबर हक़ हासिल हैं
•रवादारी न केवल कौम की जरूरत
है बल्कि इसकी इफादियत आलमी सतह पर मुहीत है
• कुरआनी अहकामात से सपष्ट होता
है कि अल्लाह पाक ने हमें जीवन के हर कदम पर दरगुज़र और रवादारी का हुक्म दिया है
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एक ऐसा देश या समाज जहां विभिन्न धर्मों के माने वाले लोग मौजूद हों, उसे सभ्य या विकसित बनाने में जो खूबियाँ प्रभावी भूमिका अदा करती हैं उनमें एक रवादारी है।
रवादारी (सहिष्णुता) क्या है?
इस्तेलाह में रवादारी का मतलब यह है कि किसी तास्सुब व इनाद और बुग्ज़ और हसद के बिना सब्र व तहम्मुल से किसी दुसरे की बात को ठंडे दिल से बर्दाश्त करना। रवादारी अदमे तहम्मुल का विलोम है अर्थात यह सब्र व तहम्मुल और बर्दाश्त करने का दुसरा नाम है।
इस्लाम में रवादारी का तसव्वुर यह है कि विपरीत खयालों के हामिल लोगों को बराबर अधिकार हासिल हैं। इस रवादारी का तकाज़ा यह है कि उनके जज़्बात का लिहाज़ करते हुए उन पर किसी किस्म की ऐसी नुक्ता चीनी न करें जो उन लोगों को रंज पहुंचाए जो अलग ख्यालात, अकीदे या फ़िक्र रखते हैं। इसी उन्हें उनके मज़हबी अकाएद से फेरने या उन्हें उनके अपने मज़हबी अमल से रोकने के लिए जब्र का तरीका कभी इख्तियार न किया जाए।
इस्लाम हमें साफ़ लफ़्ज़ों में रवादारी की शिक्षा देता है। कुरआन मजीद और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीसों के अध्ययन से यह बात साफ़ हो जाती है कि इंसानियत और रवादारी के फरोग में इस्लाम ने कई दलीलें कायम कर दी हैं जिनका मकसद यह है कि मानवता के साथ इखलास के साथ हुस्ने सलूक, इंसानों की खिदमत और उनकी बेहतरी का जज़्बा लोगों के दिलों में रासिख कर दे।
सहिष्णुता न केवल कौम की जरूरत है बल्कि इसकी इफादियत आलमी साथ पर मुहीत है। किसी देश में अंदरूनी साथ पर रवादारी का माहौल हो तो इससे आलमी और अंतरधार्मिक संबंध को खुशगवार बनाना आसान होता है। इस अमल से न केवल अखलाकी और इंसानी इक्दार नाशो नुमा पाती है बल्कि दीगर देशों के साथ एतेमाद की बहाली होती है और फिर देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है।
सहिष्णुता के भावना के साथ सामाजिक व्यवहार, चाहे वह कौमी और इलाकाई सतह का हो या अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति का, बाहमी मतभेद और रंजिश पैदा नहीं करतीं, बल्कि समाज में खुशहाली की नई राहें खुलती हैं और रियासती निज़ाम अच्छी तरह चलता है। यूँ तो इस्लामी नुक्ता नज़र से रवादारी समाज में रीढ़ की हड्डी की हैसियत रखती है लेकिन इसका आलमगीर फैलाव आपसी मोहब्बत व उल्फत की फिज़ा फराहम करता है और यही समय का अहम तरीन तकाज़ा और जरूरत है।
इस्लाम सब्र और बर्दाश्त का मज़हब है। इसमें किसी किस्म के जब्र की कोई गुंजाइश नहीं। यह दावा करना कि इस्लाम तलवार और ताकत के ज़ोर पर पुरी दुनिया में फैला है, सरासर झूट और बोहतान है।
अल्लाह पाक ने इरशाद फरमाया: “दीन में कोई जबरदस्ती नहीं।“ (अल बकरा: 256)
इस मुबारक आयत पर गौर करने से मालुम होता है कि कुरआन करीम हमें आलमगीर कामयाबी व खुशहाली और इज्ज़त व वकार को बरकरार रखने के लिए उदारता और संतुलन का दर्स देता है। इसलिए इस में कोई शक नहीं कि इस्लाम एतेदाल और तवाजुन का दीन है जहां इफरात व तफरीत की बिलकुल कोई गुंजाइश नहीं।
असल इस्लामी तहज़ीब दरहकीकत हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अफआल हैं। कुरआन ने उम्मत ए मुस्लिमा के लिए कहा:
“और (ऐ मुसलमानों!) इसी तरह हमने तुम्हें (एतेदाल वाली) बेहतर उम्मत बनाया।“ (अल बकरा: 143)
कुरआन मजीद में कई जगहों पर रवादारी, एतेदाल और तवाजुन को बयान किया गया है। निम्नलिखित कुछ मुकामात देखें:
अमन और हम आहंगी
कुरआन पाक हमेशा अमन, हम आहंगी, रवादारी, बाहमी मोहब्बत, दरगुज़र, तहम्मुल और अफ़व दरगुज़र की तलकीन करता है। अल्लाह पाक का इरशाद है:
“और (जो लोग) गुस्सा ज़ब्त करने वाले हैं और लोगों से (उनकी गलतियों पर) दरगुज़र करने वाले हैं।“ (आले इमरान:134)
ज़ुल्म और ज़्यादती के बजाए एतेदाल और रवादारी
इस्लाम में हालांकि दुश्मन के ज़ुल्म और ज़्यादती का बदला लेने की इजाज़त है लेकिन इस बात पर भी ज़ोर दिया गया है कि जो ज़्यादती की गई है इसके मुताबिक़ बदला लिया जाए। हद से आगे बढ़ने की बिलकुल इजाज़त नहीं है। अल्लाह पाक ने अफ़व दरगुज़र की तलकीन करते हुए इरशाद फरमाया:
“और बुराई का बदला उसी बुराई की तरह होता है, फिर जिसने माफ़ कर दिया और (माफ़ी के जरिये) इस्लाह की तो उसका अज्र अल्लाह के जिम्मे है। बेशक वह जालिमों को दोस्त नहीं रखता।“ (अल शूरा:40)
किसी की बदतमीज़ी और बुरे बर्ताव पर अच्चा रवय्या इख्तियार करना
दीने इस्लाम और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमात इस बात की इजाज़त नहीं देतीं कि हम किसी बुरे सुलूक और बर्ताव पर बुरा बर्ताव करें।
“और नेकी और बड़ी बराबर नहीं हो सकती, और बुराई को बेहतर (तरीके) से दूर किया करो सो नतीजतन वह शख्स कि तुम्हारे और जिसके बीच दुश्मनी थी गोया गर्म जोश दोस्त हो जाएगा।“ (41:34)
नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नर्म तबीयत पर कुरआन की गवाही
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नर्म तबीयत की मदह करते हुए कुरआन पाक में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है:
“(ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पस अल्लाह की कैसी रहमत है कि आप उनके लिए नर्म तबअ हैं और अगर आप तुन्द खू (और) सख्त दिल होते तो लोग आपके गिर्द छट कर भाग जाते, सो आप उनसे दरगुज़र फरमाया करें।“ (आले इमरान: 159)
इन कुरआनी अहकामात से सपष्ट होता है कि अल्लाह पाक ने हमें जीवन के हर कदम पर दरगुज़र और रवादारी का हुक्म दिया है।
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कनीज़ फातमा न्यू एज इस्लाम की नियमित कालम निगार और आलिमा व
फाज़िला हैं।
English Article: Emphasis on the Teaching of Tolerance in Islam
Urdu Article: Emphasis on the Teaching of Tolerance in Islam اسلام میں رواداری کی تعلیم پر
زور
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