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Hindi Section ( 21 March 2025, NewAgeIslam.Com)

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Efforts to Strengthen Democracy and Constitutional Values लोकतंत्र को सशक्त बनाने के प्रयास और संवैधानिक मूल्य

राम पुनियानी , न्यू एज इस्लाम

21 मार्च 2025

वी-डेम  इंस्टिट्यूट की भारत के संबंध में रपट, जो द हिंदू में प्रकाशित की गई है, में कहा गया है कि "यह रेखांकित करते हुए कि लोकतंत्र के लगभग सभी घटकों की स्थिति जितने देशों में सुधर रही है, उससे अधिक देशों में बिगड़ रही है, रपट में विशेष तौर पर यह जिक्र किया गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, निष्पक्ष चुनाव और संगठित होने व नागरिक समाज की आजादी पर निरंकुशता की ओर बढ़ते देशों में सबसे गंभीर दुष्प्रभाव पड़ा है." 

रपट में भारत के मैदानी हालात का काफी सटीक सार प्रस्तुत किया गया है.  इसके अलावा, भारत में अल्पसंख्यकों के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया जा रहा है. हाल के समय में आरएसएस-बीजेपी मिलकर हिंदू उत्सवों और समागमों का इस्तेमाल अल्पसंख्यकों को आतंकित करने के एक और औजार के रूप में करने लगे हैं.  यह रामनवमी के समारोहों, होली और कुंभ मेले के दौरान व्यापक तौर पर देखा गया.

पिछले दस सालों से सत्ता पर काबिज समूह के बढ़ते हुए तानाशाहीपूर्ण रवैये के चलते ही तमाम विरोधाभासों के बावजूद अधिकांश विपक्षी दलों के एकजुट होकर इंडिया गठबंधन बनाया.  इस गठबंधन के गठन, राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा व भारत जोड़ो न्याय यात्रा व सामाजिक समूहों द्वारा गठित मंचों जैसे इदिलू कर्नाटका और भारत जोड़ो अभियान का मिलाजुला प्रभाव लोकसभा चुनावों पर पड़ा और भाजपा का 400 सीटें जीतने का लक्ष्य मिट्टी में मिल गया.

यह सच है कि इंडिया गठबंधन वांछित दिशा में नहीं बढ़ा और विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ने का इरादा पूरा न हो सका. यह इंडिया गठबंधन को महाराष्ट्र और हरियाणा चुनावों में सफलता हासिल न हो पाने की एक वजह थी. इसकी दूसरी वजह थी संघ परिवार के सभी सदस्यों द्वारा भाजपा के पक्ष में पूरी ताकत लगा देना. यह कोई नई बात नहीं है लेकिन यह उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनावों के दौरान जे. पी. नड्डा ने बयान दिया था कि भाजपा को आरएसएस की मदद की जरूरत नहीं है क्योंकि अब वह इतनी सशक्त हो गई है कि सिर्फ अपने दम पर चुनाव जीत सके.

ऐसा लगता है कि लोकसभा चुनावों के बाद इंडिया गठबंधन को मजबूत बनाने की महत्वपूर्ण जरूरत के प्रति उसके कई घटक दलों का रवैया उपेक्षापूर्ण रहा और कई ने इसके प्रति उदासीनता दर्शाई और सबसे बड़े विपक्षी दल, कांग्रेस ने भी इस संबंध में कोई बड़ी पहल नहीं की. यहां यह उल्लेखनीय है कि विचारधारा की दृष्टि से इस गठबंधन का सशक्त घटक सीपीआई (एम) इस मामले पर पुनर्विचार कर रहा है. उसके कार्यवाहक महासचिव प्रकाश करात ने कहा है कि विपक्षी इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए बनाया गया था राज्यों के चुनावों के लिए नहीं...और उन्होंने धर्मनिरपेक्ष विपक्षी दलों का एक वृहद गठबंधन बनाए जाने का आव्हान किया.

उन्होंने यह भी कहा कि गठबंधनों को एक वृहद परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए ताकि चुनावी राजनीति उनका गला न घोंट दे. यही बात दूसरे शब्दों में वामपंथी झुकाव वाले बुद्धिजीवी कह रहे हैं जिनका मानना है कि भाजपा दरअसल, एक पूरी तरह फासीवादी पार्टी नहीं है. जैसे प्रभात पटनायक तर्क देते हैं कि जहां नवउदारवादी पूंजीवाद एक फासीवादी हालातउत्पन्न करता है जो दक्षिणपंथी अधिनायकवादी आंदोलनों, विदेशियों के प्रति द्वेष, अति राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षय के रूप में प्रकट होती है - किंतु यह अनिवार्यतः 1930 के दशक के पूरी तरह से फासीवादी राष्ट्रका पुनर्सृजन नहीं करती.‘‘

हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद के लिए नव फासीवाद, आद्य फासीवाद, कट्टरवाद आदि कई शब्दों का इस्तेमाल किया गया है परंतु रेखांकित करने वाली बात यह है कि कोई भी राजनैतिक परिघटना स्वयं को उसी तरीके से नहीं दुहराती. आज हिन्दुत्वादी राष्ट्रवाद के कई लक्षण फासीवाद से मिलते-जुलते हैं. फासीवाद ही आरएसएस के संस्थापकों, विशेषकर एम. एस. गोलवलकर का प्रेरणास्त्रोत था. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘वी ऑर अवर नेशनहुड डिफाइंड‘‘ में कहा "अपनी संस्कृति और नस्ल की शुद्धता कायम रखने के लिए जर्मनी ने सेमेटिक नस्लों - यहूदियों - का देश से सफाया कर दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया. यह नस्लीय अभिमान की उच्चतम अभिव्यक्ति है. जर्मनी ने यह भी दिखा दिया है कि मूलभूत अंतर वाली विभिन्न संस्कृतियों और नस्लों का मिलकर एक हो जाना लगभग असंभव होता है. यह हिन्दुस्तान में हमारे लिए एक अच्छा सबक है जिससे हम कुछ सीख सकते हैं और लाभान्वित हो सकते हैं."

हम भारत में फासीवाद के लक्षणों को उभरता देख रहे हैं जैसे स्वर्णिम अतीत, अखंड भारत की अभिलाषा, अल्पसंख्यकों को देश का शत्रु करार देकर निशाना बनाना, अधिनायकवाद, बड़े उद्योग-धंधों को बढ़ावा देना, अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रहार और सामाजिक चिंतन पर हावी होना आदि. हम यहां अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति असहनशीलता का नजारा देख रहे हैं, जैसा कि महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी के मामले में हाल में हुआ. उन्होंने कहा था ‘‘आरएसएस एक जहर है. वे इस देश की अंतरात्मा को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं. हमें इससे भयभीत होना चाहिए क्योंकि यदि अंतरात्मा नष्ट हो जाती है, तो सब कुछ छिन जाता है."  तुषार गांधी से माफी मांगने और अपने शब्द वापस लेने की मांग की गई. उन्होंने दोनों में से कुछ भी नहीं किया और अब उन्हें हत्या की धमकियां दी जा रही हैं.

आरएसएस ने अपनी जबरदस्त पहुंच, सैकड़ों अनुषांगिक संगठनों, हजारों प्रचारकों और लाखों कार्यकर्ताओं के माध्यम से आजादी के आंदोलन से जन्मे भारत के विचार के लिए खतरा पैदा कर दिया है, आजादी के आंदोलन के मूल्य हमारे संविधान में अभिव्यक्त हुए, जो सभी नागरिकों को समान अधिकार देने पर आधारित हैं और इसके केन्द्र में है समावेशिता. आरएसएस की विचारधारा आजादी के आंदोलन और भारतीय संविधान के मूल्यों के विपरीत है. और वह अपने विशाल नेटवर्क के माध्यम से उसे आगे बढ़ा रहा है.

प्रारंभ में उसने इतिहास को तोड़-मरोड़कर मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा की, जैसा इस समय महाराष्ट्र में हो रहा है जहां औरंगजेब की कब्र को हटाया जाना सत्ताधारी भाजपा की पहली प्राथमिकता बन गया है. इस समय उसके इशारे पर स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेता महात्मा गांधी भी हैं, जिनके बारे में यह प्रोपेगेंडा फैलाया जा रहा है कि हमें आजादी दिलवाने में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. यहां तक कि उसके कई सोशल मीडिया पोस्टों पर यह तक दावा किया जा रहा है कि गांधीजी ने स्वतंत्रता आंदोलन में रोड़े अटकाने का काम किया.

यह सूची बहुत लंबी है. आज क्या किए जाने की जरूरत है? करात का यह कहना सही है कि एक वृहद धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाए जाने की जरूरत है. इंडिया गठबंधन निश्चित रूप से इस यात्रा का पहला कदम था. जरूरत इस बात की है कि इस गठबंधन को और सशक्त बनाया जाए. गठबंधन के आंतरिक मतभेदों, टकरावों और विवादों को सुलझाया जाए. गठबंधन के सदस्य दलों के बीच कुछ विरोधाभासों के बावजूद 10 लाख से अधिक सदस्यों वाली करात की पार्टी इस गठबंधन को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है. एक बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए घटक दलों को छोटी-छोटी कुर्बानियां देनी ही होंगीं.

इस प्रक्रिया को और बल प्रदान करने के लिए सामाजिक संगठनों को वह प्रभावी काम जारी रखना होगा जो उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद किया था. एक राष्ट्रीय धर्मनिरपेक्ष गठबंधन भी इन्हें शुरू कर सकता है. वर्तमान सत्ताधारियों का ठीक-ठीक चरित्र फासीवादी हो या उसमें फासीवाद के कुछ तत्व हों या जो भी हो, इंडिया की रणनीति एक व्यापक गठबंधन बनाने की होनी चाहिए जो उस ऊर्जा और गतिशीलता से भरा हुआ हो, जो 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले नजर आई थी.

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(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)

URL: https://newageislam.com/hindi-section/efforts-strengthen-democracy-constitutional/d/134935

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