डॉक्टर गुलाम ज़रकानी
८ जून, २०१९
कोई संदेह नहीं है कि अब पूरे देश का जो माहौल बन चुकी है, वह हमारे लिए बहुत ही चिंताजनक है। यह किसी एक पार्टी की राजनीतिक जीत नहीं है, बल्कि एक स्थिर, मजबूत और मरबूत फ़िक्र की जीत है, जिसकी बुनियाद आपसी घृणा, धार्मिक शत्रुता और सामाजिक भेद भाव पर खड़ा हैl और इससे कहीं अधिक चिंताजनक स्थिति तो यह है कि जमीनी परिस्थितियों पर निगाह रखने वाले कह रहे हैं कि अब एक लम्बे समय तक उल्लेखनीय माहौल से बाहर निकलने की कोई राह दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही हैl ऐसे बहोत ही नाजुक परिस्थिति से लड़ने के लिए हमें नए सिरे से रणनीतिक क्रम देने की अत्यधिक आवश्यकता हैl
आगे बढ़ने से पहले भारतीय सभ्यता के दर्पण में राजनीतिक उतार चढ़ाव पर एक उचटती हुई दृष्टि डाल ली जाए तो बहोत बेहतर हैl इस वास्तविकता से इनकार नहीं कि इस समय कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक धार्मिक घृणा की खतरनाक लहर है, तथापि अगर इसकी तुलना भारतीय स्वतन्त्रता के बाद देश के बटवारे के समय बढ़ी हुई धार्मिक दुश्मनी से किया जाए, तो आधे दिन के सूर्य की तरह सामने आ जाएगा कि अब और तब में जमीन आसमान का अंतर हैl स्वतन्त्रता के समय फैली हुई धार्मिक घृणा एक अंदाज़ के अनुसार अगर दस के आम पैमाने पर आठ नौ के करीब रही होगी, तो अब यह तीन से चार के बीच हो सकती हैl इस तरह आप कह सकते हैं कि आठ से नौ के बीच चरमोत्कर्ष पर पहुंची हुई धार्मिक घृणा जब कम हो कर दो तक नीचे उतर सकती है, तो तीन से चार तक बढ़ी हुई शत्रुता के नीचे उतरने में कोई अधिक समय नहीं लगे गाl
इसी प्रकार अभी जो कांग्रेस की हालत है, वह इमरजेंसी के बाद होने वाली गिरावट से कहीं अधिक बेहतर हैl पुराने कांग्रेसी कहते हैं कि इमरजेंसी के बाद जिस तरह कांग्रेस हार से दो चार हुई, इससे आहत होकर इन्द्रागांधी ने देश छोड़ कर कहीं और राजनीतिक पनाह लेने का इरादा कर लिया था, लेकिन संजय गांधी ने ढारस और सब्र व जब्त से संघर्ष जारी रखने पर कायल कियाl इसके कुछ ही सालों बाद होने वाले चुनावों में जनता ने एक बार फिर कांग्रेस को सफल बनायाl इसलिए कोई अजीब बात नहीं कि भारत जैसे बड़े देश में जहां अस्थिर समस्याएं हर चार दिशा बिखरे हुए हैं, लोग कुछ वर्षों में एक पार्टी की सरकार से उब जाएं और दोबारा सेकुलरिज्म का बोलबाला हो जाएl
अतीत के दो उपरोक्त उल्लेखनीय प्रायोगिक विश्लेषण से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हमें भोत अधिक घबराने की आवश्यकता नहीं है और ना ही हौसला हारने की हाजत है, इसलिए कि जहां सभ्यता व संस्कृति से ले कर धर्म, भाषा और रंग व नस्ल से सम्बन्ध रखने वाले दो नहीं, लाखों और करोड़ों में हों, वहाँ की राजनीतिक स्थिति बहोत दिनों तक एक जैसी नहीं रह सकतीl एक समय आएगा, जब विचार और कल्पना में परिवर्तन आएगी और पार्टियां और गठबंधन भी बदल जाएंगेl इसे कुरआन की भाषा में इस प्रकार कहिये कि (आल ए इमरान, आयत: १४०) ‘इसी तरह हम परिस्थितियों को लोगों के बीच गर्दिश देते रहते हैंl’
अब आइए विषय की और पलटते हैंl प्रिय पाठकों अच्छी तरह जानते हैं कि ना तो मैं जज़्बात की रु में बहते हुए रेगिस्तान में कश्ती दौड़ाने की बात करता हूँ और ना ही खौफ व दहशतज़दा होकर भीगी बिल्ली बने रहने का मशवरा देता हूँ, बल्कि मेरे नजदीक वही बात बेहतर है, जो हालात के संदर्भ में हो और अमल के काबिल भी होl सबसे पहले तो यह कुरआनी हकीकत अपने सामने रखिये कि “ان مع العسر یسرا” कि निहसंदेह कठिनाइयों के साथ साथ आसानी हैl अर्थात ऐसा नहीं है कि कठिनाइयों के बाद आसानी हो, बल्कि हमें कठिनाइयों के बीच ही आसानी की राहें भी तलाशनी होगीl मेरे विचार में आसानी की राह यह है मौजूदा हालात में हम अपने समाज पर निगाह डालेंl शहरी, राजकीय और राष्ट्रीय संगठन बनाने की बजाए अपने इलाके में बसने वाले बच्चे और बच्चियों की फलाह व बहबूद के लिए क्षेत्रीय संगठन बनाएं और हर बच्चे को शिक्षा से परिचित करने के लिए रणनीति तरतीब दिया जाएl धनी लोगों से, ज्ञान वालों से और फ़िक्र व तदब्बुर की अहलियत रखने वाले अपने अनुभव से सहयोग करेंl इस तरह देश के हर मोहल्ले में एक समय कोशिश शुरू हो जाए, तो पांच दस सालों के अन्दर इल्म व हुनर के मैदान में हमारी एक पहचान बन जाएगीl
ख्याल रहे कि आस पास और स्थितियों और संदर्भ से बेखबर रह कर जज्बाती इक़दामात करने का नाम बहादुरी नहीं, बल्कि हिमाकत हैl अगर ऐसा नहीं है, तो बताया जाए कि फिर सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मैदान ए जंग के लिए तैयार क्यों फरमाई? दुश्मनों के लश्कर की तादाद और उनके अज़ाइम मालुम करने के लिए खुफिया दस्ते क्यों रवाना किये? और मैदान ए जंग में खेमाज़न होने के लिए रणनीति के मद्देनजर ठिकाने क्यों तजवीज़ फरमाए? इसलिए यह स्वीकार किये बिना कोई चारा नहीं कि हमारे धर्म की रौशनी में इकदामात से पहले रणनीति हैl अर्थात सबसे पहले हालात व वाकियात के संदर्भ में रणनीति बनाई जाए और फिर अल्लाह पाक के भरोसे पर बिना खौफ व खतर इकदामात की तरफ पेश कदमी की जाएl इसलिए मुसलमान से दस्त बस्ता अर्ज़ है कि मौजूदा हालात में हर ऐसे इकदाम से गुरेज़ करें, जिसे शरपसंद तत्व बहुसंख्यक वर्ग को भड़काने के लिए प्रयोग कर सकते हैंl जैसे कि किसी भी जानवर के गोश्त का कीमा ले कर कतई सफर ना करें, इसलिए कि कीमा बन जाने के बाद वक्ती तौर पर यह साबित करना दुश्वार होता है कि यह किस जानवर का है? ऐसी सूरत में शर पसंद तत्व इस गए की तरफ मंसूब करके आपके लिए कठिनाई कड़ी कर सकते हैंl चूँकि गए के साथ जज्बाती रिश्ता है, इसलिए मजमे भी तहकीक की उलझनों में पड़ने की बजाए खुद फैसला करने पर बज़िद होगा, जिसके परिणाम में खौफनाक परिस्थिति पेश आ सकती हैl इसलिए बेहतर यह है कि हम अपने घर से बाहर या तो सब्जियों पर गुज़ारा करें या फिर मुर्ग के सालन परl
गैर मुस्लिम बच्चियों और औरतों के साथ तनहाई में बात चीत से परहेज़ करें और मामलों की हद तक बात करनी भी पड़े, तो दो चार की मौजूदगी में बात करें, ताकि शरपसंद तत्व नाज़ेबा आरोप लगा कर आपके पाक दामन को दागदार करने की हिम्मत ना कर सकें, नेज़ यह कि इस तरह क्षेत्रीय माहौल में धार्मिक घृणा का ज़हर फैलाने वाले कभी भी सफल नहीं हो सकेंगेl ठीक इसी तरह बस, ट्रेन और मैट्रो में आपकी सेट पर बहुसंख्यक वर्ग से समबन्ध रखने वाला कोई व्यक्ति बैठा हुआ मिल जाए, तो खुद उससे बहस करने की बजाए, ति टी ई और जिम्मेदारों की सहायता से मामले सुलझाए जाएंl उनके धार्मिक जुलुस और तेहवारों के मौके पर कोशिश की जाए कि आप अपने घरों के अन्दर रहें और सड़कों के किनारे तमाशाई बने रहने से गुजीर करेंl और अपने अपने क्षेत्रों में मौजूद इन्साफ पसंद, नरम स्वभाव और शिक्षित हम वतनों से राबता रखें और गाहे बगाहे मुलाकातें करते रहें, ताकि इलाके में शर पसंद तत्वों के हौसले रहें और हम हानियों से सुरक्षित रह सकेंl
साहबों! हालात जो भी हों, जैसे भी हों, तथापि यह तय है कि हमें उसी कदर हानि पहुंचेगे, जो क़ज़ा व कदर की सूरत में पहले से लिखे हुए हैं और यह ना सही, किसी और के होने पर भी उसी कदर लाभ पहुँचने की उम्मीद है, जो पहले से हमारे किस्मतों में रकम हैl इसलिए ना हमें इनके रहने से घबराने की आवश्यकता है और ना ही उनके होने से किसी खुश फहमी में मुब्तिला होने की हाजत हैl बस चाहिए यह कि हर हाल में हम अपने धर्म से जुड़े रहें और अपनी इस्तेताअत भर अपने समाज की खिदमत के लिए तैयार रहेंl
८ जून, २०१९, सौजन्य से: इंकलाब, नई दिल्ली
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