ताहिर गोरा
२६ मई २०१३
बहुत से लोगों के
लिए इस्लाम और इस्लामियत में अंतर को समझना एक कठिन बात है। रिवायती मुस्लिम उलेमा
इस्लामियत जैसी इस्तेलाह से इत्तेफाक नहीं रखते। और यह कहते हैं कि इस्लाम की केवल
वही शक्ल होनी चाहिए जो मुसलमान मानते हैं। जबकि इस्लाम के आलोचक इस्लाम के पुरे
मुजस्समे (मूर्ति) को इस्लामियत मानते हैं और मुसलमानों को इस्लाम पसंद गर्दानते
हैं।
एक प्रसिद्ध
विद्वान और मिडिल ईस्ट फोरम के संस्थापक डॉक्टर डेनियल पाइप्स अधोलिखित दोनों
(पारम्परिक इस्लामी उलेमा और इस्लाम के सख्त आलोचक) में से किसी से भी इत्तेफाक
नहीं रखते। वह इस्लामियत और इस्लाम के बीच स्पष्ट अंतर पैदा करते हैं। उन्होंने
विकासवादी मुसलमानों के माध्यम से स्थापित किये गए एक थिंक टेंक (कैनेडियन थिंकर्स
फोरम) के माध्यम से सामियत विरोधी के विरुद्ध एक मुस्लिम कमेटी में लोगों की एक
जमात को ख़िताब करते हुए मिसिसॉगा में ऐसा कर दिखाया है।
पाइप्स ने इस धारणा
को दोहराया कि इस्लाम किसी भी धर्म की तरह एक धर्म है जिसमें विवादास्पद साहित्यिक
रूपरेखा के साथ-साथ आध्यात्मिक पहलू भी हो सकते हैं। लेकिन, दुर्भाग्य से, जब
मुसलमानों के समूह आध्यात्मिक पहलुओं पर उन विवादास्पद साहित्यिक रूपरेखाओं का
पालन करना और लागू करना चाहते हैं, तो इस्लाम
धर्म इस्लामियत की ओर मुड़ जाता है और उस विचारधारा के अनुयायी इस्लामवादी बन जाते
हैं।
वह सही है।
मिसाल के तौर पर, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिण पूर्व एशिया (700 मिलियन से अधिक मुसलमान
बसते हैं) में जमात-ए-इस्लामी के संस्थापक अबुल आला मौदुदी एक इस्लामवादी का
क्लासिक उदाहरण हैं। वह इस तरह से अपने इस्लाम धर्म का प्रदर्शन इन शब्दों में
करते है: इस्लाम का उद्देश्य इस धरती पर हर उस सरकार और और राज्य को तबाह करना है
जो इस्लामी विचारधारा और प्रणाली के खिलाफ हो.....इस्लाम को ज़मीन की आवश्यकता
है... इसे केवल एक टुकड़े की नहीं बल्कि पूरी धरती की आवश्यकता है, जिहाद का उद्देश्य
गैर इस्लामी हुकूमतों का अंत करना है।“
मौदूदी के चरमपंथी
विचारों की विरासत केवल जमात-ए-इस्लामी तक ही सीमित नहीं है। कोई भी हजारों
इंटरनेट साइटों और सोशल मीडिया वेबसाइटों का गवाह बन सकता है जो हमारे आधुनिक समय
में और दिन-रात इस्लाम धर्म का प्रदर्शन करते हैं। यहाँ तक कि (“फेसबुक” को “इस्लामीबुक” से बदल दें "Convert Facebook into
Islamic Book.") के नाम से एक
फेसबुक साईट भी मौजूद है। हो सकता है कि यह मज़ाक लगे लेकिन इस्लाम पसंदों के लिए
जो कि इस्लामियत के अनुयायी हैं यह एक गंभीर इच्छा है।
एक और उदाहरण: सऊदी
अरब से एक और तथाकथित आधुनिक इस्लामी इमाम, शेख असीम अल-हकीम, उनकी
वेबसाइट पर सवालों के जवाब देते हैं उन्हें कई प्रश्न प्रप्त होते हैं। उनमें से
एक प्रश्न यह था कि मुसलमानों को गैर-मुस्लिम नौकरानियों के साथ कैसे व्यवहार करना
चाहिए।
प्रश्न यह था: “मेरे घर में एक
फिलिपैनी ईसाई नौकरानी है जिसके संबंध से मुझे दो प्रश्न करने हैं... पहला यह कि
क्या हमें गैर मुस्लिम नौकरानी रखने की अनुमति है, दुसरा यह कि क्या
मुझे मेरे पति के सामने उसका सर ढांपना चाहिए चूँकि वह एक गैर मुस्लिम है???”
शैख़ का उत्तर
देखिये: “१ हाँ किसी गैर मुस्लिम महिला को घर में रखने की अनुमति है तथापि
यह मुस्तहसन नहीं है। २ हाँ उसे अपना सर अवश्य ढांपना चाहिए।“
इस प्रकार के
उदाहरणों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि दुनिया भर में फैले हुए मुसलमानों के
अन्दर इस्लामियत किस हद तक सुरायत कर चुकी है।
दिए गए परिदृश्य
में एक सवाल उठता है: क्या इस्लाम और इस्लामवादियों का मुकाबला करने के लिए दूसरी
तरफ पर्याप्त उदारवादी मुसलमान हैं?
इसका उत्तर है: अभी
तक तो नहीं
डॉक्टर पाइप्स ने
कहा कि “लेकिन इस्लामियत की राजनीतिक आंदोलनों का केवल एक ही हल है और वह
यह है कि जिस तरह अनेक मुस्लिम कम्युनिटीयां मुखालिफ का सामना करने के लिए खुद से
खड़ी हुई हैं (अगर यही तरीका अपनाया जाए तो) इस्लामियत को पराजित किया जा सकता सकता
है।“
वह अब भी हक़ पर हैं
इस्लामियत को पराजय
देने और इस्लाम को राजनीति से आज़ाद करने के लिए असंख्य विकसित उदारवादी मुसलमानों
को पहल करने की आवश्यकता है।
(उर्दू से अनुवाद:
न्यू एज इस्लाम)
स्रोत: http://www.huffingtonpost.ca/tahir-gora/moderate-islam_b_3314561.html
URL
for English article:
URL for English article: https://newageislam.com/islam-politics/don-t-confuse-islam-with/d/14227
URL for Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/don-t-confuse-islam-with/d/14325
URL: https://www.newageislam.com/hindi-section/don-t-confuse-islam-with/d/124209
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