सुहैल अरशद, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
29 सितंबर 2022
यह कायनात कायनात बनाने वाले के अहकाम के ताबेअ है। इस कायनात के तमाम मामले कायनात के खालिक के बनाए उसूलों के ताबेअ हैं। इस कायनात में एक नियमित नज़्म व ज़ब्त कायम है। सूरज, चाँद, सितारे सभी नियमित रूप से गर्दिश व हरकत में हैं और सख्ती से नज़्म व ज़ब्त के पाबंद हैं।
इस कायनात के निज़ाम का एक और पहलु यह है कि यह क्रमिकता के सार्वभौमिक सिद्धांत का पाबंद है। शुरू में यह कायनात एक खाम शक्ल में थी और क्रमिक और विकासवादी अमल के नतीजे में मौजूदा शक्ल में पहुंची हैं। सुबह तदरीजी तौर पर नमूदार होती है। और रात भी चरणशः उतरती है। इसलिए, इस कायनात में आने वाली तब्दीलियाँ अचानक नहीं आतीं बल्कि उसूले तदरीजियत के तहत ही क्रमशः आती हैं।
इस तरह, इंसानों और दुसरे जानदारों के मामलात व उमूर भी इसी उसूले तदरीज के मातहत हैं। एक जानदार पैदा होता है, बढ़ता है, बुढ़ापे की उम्र को पहुँचता है और मर जाता है। इंसानी ज़िन्दगी भी उसूले तदरीज के ताबेअ है। इंसानों की ज़िन्दगी के हालात में परिवर्तन उनकी कोशिशों और आमाल या बद आमाल के नतीजे में आती है। अगर किसी इंसान के आमाल अच्छे हैं और वह सहीह मंसूबा बंदी के साथ मेहनत करता है तो उसकी माद्दी हालत बतदरीज बेहतर होती है अचानक नहीं। इस तरह, अगर वह बदआमालियों में मुब्तिला हो जाता है और तरक्की के लिए कोशिश नहीं करता तो उसकी ज़िन्दगी धीरे धीरे तबाह हो जाती है। यही तदरीजी तब्दीली का कुदरती कानून है।
कुरआन के मुताबिक़ अच्छे इंसानों के हालात चरणबद्ध तरीके से बेहतरी की तरफ जाते हैं। और यही सिद्धांत कौमों और सल्तनतों के मामले में भी काम करता है। हमारे सामने अफराद, कौमों और सल्तनतों के तदरीजी उरूज व जवाल की रौशन मिसालें मौजूद हैं। उन्होंने दर्जा बदर्जा तरक्की की या बर्बाद हुए। इसकी वजह यह है कि कुदरत या ताकत मुतलक नेक इंसानों को उनकी मेहनत व मुशक्कत और नेक आमाल के थोड़े से सकारात्मक परिणाम दिखा कर उन्हें और मेहनत करने के लिए हौसला अफज़ाई करता है। इंसान जब अपनी मेहनत और आमाल के अच्छे परिणाम देखता है तो उसे ख़ुशी होती है और वह अधिक मेहनत करता है। इस तरह वह दर्जा बदर्जा अपनी मेहनत के बल पर तरक्की करता जाता है। इसी तरह, कुदरत बुरे और काहिल लोगों को उनकी काहिली और तखरीबी गतिविधियों का थोड़ा सा बुरा नतीजा दिखा कर उन्हें अपनी बद आमालियों से खबरदार करती है ताकि वह अपनी बद आमालियों और तखरीबी गतिविधियों से बाज़ आ जाएं और अपनी इस्लाह कर लें ताकि तबाही व नाकामी से बच जाएं। जोथोदा सा नुक्सान उन्हें होता है वह उनके लिए तंबीह का काम करता है। इसी लिए कुदरत उन्हें तबाह नहीं करती बल्कि उन्हें संभलने का मौक़ा देती है। लेकिन अगर तंबीह के बावजूद वह अपनी बद आमालियों और काहिली से बाज़ नहीं आते तो वह दर्जा बदर्जा तबाही की तरफ बढ़ते जाते हैं। फिर वह अपनी नाकामी, बदहाली और तबाही के लिए खुदा से शिकवा नहीं कर सकते।
खुदा कुरआन की कुछ, आयतों में तदरीजियत की तरफ इशारा करता है।
-“ तुम बेशक दर्जा बदर्जा सफर करोगे---“ (अल इंश्काक: 19)
-“ और उन्हें हम ऐसी जगह से दर्जा बदर्जा पस्ती की तरफ लाएंगे जहां से उनको खबर भी नहीं होगी।“ (अल कलम:44)
-“ और हम सहज सहज पहुंचाएंगे तुझको आसानी में।“ (अल आला: 8)
-“ तो उसको हम सहज सहज पहुंचाएंगे आसानी में।“ (अल लैल: 7)
---“ सो उसको सहज सहज पहुंचाएंगे सख्ती में।“ (अल लैल:10)
उपर्युक्त आयतें निश्चित रूप से कुदरत के उसूले तदरीजियत की ओर इशारा करती हैं। यह उसूल सेकुलर और रूहानी व मज़हबी दोनों अर्थों में लिया जा सकता है। मज़हबी अर्थ में, नेक लोग या वह लोग जो खुदा के बताए हुए रास्ते में मेहनत और संघर्ष करते हैं वह दर्जा बदर्जा तरक्की, नेक नामी और खुश हाली देखते हैं और जो लोग ज़ालिम और बद आमाल हैं और नेक लोगों के दुश्मन हैं वह दर्जा बदर्जा ज़िल्लत और तबाही देखते हैं।
गैर मज़हबी और सेकुलर मानों में, जो लोग मेहनत करते हैं और जीवन को नज़्म ज़ब्त के अनुसार गुजारते हैं दर्जा बदर्जा तरक्की और खुश हाली की तरफ बढ़ते हैं और जो लोग बेकार कामों या तखरीबी गतिविधियों में समय बर्बाद जरते है वह धीरे धीरे तबाह हो जाते हैं।
इस उसूल में इंसानों के लिए यह संदेश भी छिपा है कि वह मोजजों के इंतज़ार में हाथ पर हाथ धरे न बैठे रहें। वह यह बात समझ लें कि उनकी तरक्की, खुशहाली और दुनिया और आखिरत की कामयाबी मेहनत व रियाज़त, बुद्धिमत्ता पूर्ण योजना और खुलूसे नियत पर निर्भर है। खुदा यह चाहता है कि इंसान उस पर भरोसा तो करे मगर उसके साथ ही साथ वह अपनी सलाहियतों पर भी एतेमाद रखे जो उसे अता की गई हैं। दूसरी तरफ खुदा उसे यह तंबीह भी करता है कि अगर वह गलत रास्ते पर चलता है और अपनी बद आमालियों पर कायम रहता है तो वह दर्जा बदर्जा अपनी तबाही को पहुंचेगा। अतीत में बहुत से लोग, कौमें और अज़ीम सल्तनतें अपनी बद आमालियों, और गलत विचारधारा की वजह से बर्बाद हो गईं। उन्हें पता ही न चला कि हालात कैसे उनके हाथ से निकलते चले गए और उन्होंने कैसे दर्जा बदर्जा अपना समाजी व माद्दी रुतबा खो दिया। सुरह अल इन्शेकाक की आयत की तौजीह रूहानी दृष्टिकोण से भी की जा सकती है। एक सूफी अपने मुर्शिद की रहनुमाई में तक्वा और रूहानी तरबियत के जरिये से मारफत की राह में दर्जा बदर्जा बढ़ता है। वह सख्ती से तक्वा पर कायम रहते हुए इबादत व रियाज़त करता है और नफसानी ख्वाहिशात और माद्दी आसाइशों को तर्क कर देता है। वह बरसों की रियाज़त के साथ मरहला डर मरहला मकाम डर मकाम मारफत के आला मकाम पर पहुँचता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि तदरीजियत का कुदरती उसूल इंसानों की माद्दी और रूहानी दोनों जिंदगियों का घेराव करता है।
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Article: The Divine Principle of Gradualism قرآن میں اصول تدریجیت کا بیان
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