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Hindi Section ( 16 Jun 2014, NewAgeIslam.Com)

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Why Interfaith and intersect dialogue is necessary अंतर्धार्मिक और अंतर्पंथीय संवाद क्यों ज़रूरी हैं?

 

 

 

हाफ़िज़ मोहम्मद ताहिर महमूद अशरफ़ी

11 जून, 2014

प्यारे वतन पाकिस्तान में रात दिन उग्रवाद, आतंकवाद, विभिन्न धर्मों और विभिन्न पंथों के बीच विभिन्न स्थानों पर संघर्ष की स्थितियाँ पैदा हो रही हैं। जब इन परिस्थितियों में पाकिस्तान उलमा काउंसिल के नेतृत्व ने पिछले कुछ महीनों के दौरान लाहौर, खानीवाल, कराची और इस्लामाबाद में विभिन्न पंथों और विभिन्न धर्मों के प्रमुख नेताओं को इकट्ठा करके आपसी सहिष्णुता का संदेश देने और बढ़ती हुई दूरियों को कम करने की कोशिश की है। पिछले दिनों इस्लामाबाद में राष्ट्रीय कांफ्रेंस के नाम पर देश के सभी धार्मिक व राजनीतिक नेतृत्व और विभिन्न धर्मों के लीडरों के बीच संवाद क्यों ज़रूरी है, के शीर्षक से जो कांफ्रेंस की गई उसमें जहां अंतर्धार्मिकऔर अंतर्पंथीय सद्भाव पर बात हुई वहीं वर्तमान स्थिति में महिलाओं के साथ होने वाली ज्यादतियों और विशेष रूप से सम्मान, इज़्ज़त के नाम पर लड़कियों के क़त्ल, बच्ची के जन्म पर उसे मनहूस करार दिया जाना, संपत्ति में से हिस्सा न देने के लिए बहनों, बेटियों का निकाह पेड़ों, क़ब्रों और कुरान से कर देना जैसे मामलों पर भी एक विस्तृत फतवा जारी किया गया।

इसी तरह इस कांफ्रेंस में सभी विचारधाराओं और धर्मों के प्रतिनिधियों ने एक आचार संहिता पर भी सहमति जताई जिस में सबसे महत्वपूर्ण बात एक दूसरे की विचारधारा और धर्मों के पवित्र व्यक्ति का सम्मान है और किसी भी मुसलमान पंथ को कुफ्र के फतवे से बचाना है। नेशनल कांफ्रेंस में हिंदू नेताओं के इस शिकवे को भी दूर करने की कोशिश की गई कि उनकी बच्चियों का अपहरण करने के बाद मुसलमान बना लिया जाता है। सभी विचारधाराओं के विद्वानों ने सर्वसम्मति से ये बात कही कि इस्लाम ज़बरदस्ती के आधार पर किसी को इस्लाम में शामिल करने का हुक्म नहीं देता और अगर ऐसी कोई घटना हो रही है तो उनकी पूरी जांच होनी चाहिए और हिंदू समुदाय की रक्षा की जानी चाहिए। इसी तरह सिख समुदाय की इस शिकायत को भी हिंदू नेताओं के साथ हल करने की कोशिश की गई कि उनकी पवित्र किताब को विभिन्न मंदिरों में जलाया जा रहा है जिस पर हिंदू और सिख समुदाय ने सहमति जताई कि वो इन समस्याओं से संयुक्त रूप से निपटेंगे और किसी प्रकार की लड़ाई नहीं करेंगे।

नेशनल कांफ्रेंस में पाकिस्तान में क़ादियानियों के बारे में भी विस्तार से चर्चा हुई और ये बात स्पष्ट रूप से कही गई कि पाकिस्तान में किसी भी धार्मिक लीडर ने न कभी क़ादियानियों को क़त्ल करने का फतवा दिया है और न ही धार्मिक लीडर इसकी इजाज़त देते हैं। क़ादियानियों के साथ मुसलमानों के स्पष्ट धार्मिक मतभेद हैं और पाकिस्तान का संविधान और कानून मुसलमानों और क़ादियानियों को एक नागरिक के रूप में जो अधिकार देता है उसका सम्मान किया जाना चाहिए। क़ादियानियों को भी संविधान और कानून का पाबंद होना चाहिए और मुसलमानों को भी इसका सम्मान करना चाहिए। पाकिस्तान इस समय आतंकवाद का शिकार है जिसका निशाना मुसलमान भी बन रहे हैं और गैर मुस्लिम भी इसलिए ये कहना कि केवल गैर मुस्लिमों को निशाना बनाया जा रहा है ये सही नहीं है। यहां तक ​​कि कुछ स्थानों पर मुस्लिम विचारधारा के लोग भी आपस में संघर्ष करते नज़र आते हैं।

इन परिस्थितियों में संवाद ही वो एकमात्र रास्ता है जिसके माध्यम से हम बढ़ते हुए धार्मिक उग्रवाद में कमी ला सकते हैं और जब विभिन्न धर्मों का नेतृत्व आपस में मिल बैठता है तो इससे कई समस्याओं का समाधान निकल आता है। नेशनल  कांफ्रेंस में यूरोपीय संघ के राजदूत, ऑस्ट्रेलिया के हाई कमिश्नर और नॉर्वे, पोलैंड, अर्जेण्टीना, ताज़िकिस्तान और फ़िलिस्तीन के राजदूतों ने जिन विचारों को व्यक्त किया उसके बाद ये बात कही जा सकती है कि अंतर्धार्मिकऔर अंतर्पंथीय संवाद केवल पाकिस्तान की नहीं पूरी दुनिया की ज़रूरत है और पाकिस्तान के अंदर इस संवाद का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि पाकिस्तान की स्थापना इस्लाम के नाम पर हुई है और रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की शिक्षाओं के अनुसार गैर मुसलमानों के जान व माल, इज़्ज़त और उनके पूजा स्थलों की सुरक्षा मुसलमानों के देश में मुसलमानों की ज़िम्मेदारी है। हम ये समझते हैं कि नेशनल कांफ्रेंस और इस तरह के दूसरे सम्मेलन जनता के लिए एक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करते हैं और संवाद के माध्यम से पैदा होने वाली रंजिशों और अदावतों को खत्म करने में मदद मिलती है, जैसा कि सिंध में हाल के दिनों में मुस्लिम हिंदू और हिंदू सिख लड़ाईयों का खात्मा इसकी एक मिसाल है और ये भी सच है कि सार्वजनिक रूप से या धर्मों के प्रतिनिधियों के स्तर पर होने वाले इन सभी उपायों और समझौतों पर अमल तभी सम्भव है जब सरकार इसमें अपनी भूमिका अदा करे।

पिछले दिनों पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ से होने वाली एक मुलाक़ात में उन्होंने पाकिस्तान उलमा काउंसिल के प्रतिनिधिमंडल से वादा किया था कि वो देश में शांति के लिए अंतर्धार्मिक और अंतर्पंथीय सहिष्णुता के लिए हर तरह के उपाय करने को तैयार हैं और नेशनल कांफ्रेंस में धार्मिक मामलों के संघीय मंत्री सरदार मोहम्मद यूसुफ और संघीय कानून और सूचना मंत्री परवेज़ रशीद ने भी इस बात को दोहराया है कि आचार संहिता और दूसरे मामलों पर कानून बनाने के लिए वो पाकिस्तान उलेमा काउंसिल और इस कांफ्रेंस के प्रस्तावों को हर हाल में महत्व देंगे। इस कांफ्रेंस का उद्देश्य निश्चित रूप से ये नहीं था कि देश भर के चुने हुए लोग लोग मिल बैठें, अच्छा अच्छा भाषण करें और चले जाएं। इस कांफ्रेंस में 16 अप्रैल को कराची में स्थापित की जाने वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के गठन पर भी विचार किया गया और इंशाअल्लाह रमज़ान के अंत में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद केंद्र और राज्य स्तर पर स्थापित कर दी जाएगी और इंशाअल्लाह इसका दायरा शहरों और गांवों तक बढ़ाया जाएगा ताकि विभिन्न पंथों और धर्मों के लोग आपस में उलझने के बजाय मामलों को स्थानीय स्तर पर ही हल कर सकें।

पाकिस्तान उलेमा काउंसिल इस बात पर यक़ीन रखती है कि बढ़ते हुए उग्रवाद, आतंकवाद, साम्प्रदायिक नफरत का खात्मा संवाद और कानून की सर्वोच्चता से ही सम्भव है और अगर संवाद के दरवाज़े बंद कर दिए जाएं और कानून आतंकवादियों के हाथों में बंधक बना हो तो फिर उन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनका आज हम कर रहे हैं लेकिन निराशा तो खुदा के मुताबिक़ गुनाह है। हमें कुरान के हुक्म ''तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन, हमारे लिए हमारा दीन' को अपना तरीका बनाना चाहिए और संघर्ष के रास्ते संवाद और कानून की सर्वोच्चता के माध्यम से बंद करना चाहिए। हालांकि ये जोखिम भरा रास्ता है लेकिन साहस और हिम्मत से ही इस रास्ते पर चलकर शांति, सहिष्णुता, प्यार और अंतर्धार्मिक और अंतर्पंथीय सद्भाव की मंज़िल पाई जा सकती है।

11 जून, 2014 स्रोत: रोज़नामा जंग, कराची

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