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Hindi Section ( 18 Feb 2014, NewAgeIslam.Com)

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Accepting Offers of Peace शांति का प्रस्ताव क़ुबूल करें

 

 

 

 

 

मौलाना वहीदुद्दीन खान

11 फरवरी, 2014

मक्का के कुरैश का हमलावर होना उनके और मुसलमानों के बीच एक जंग का कारण बना। इस मौक़े पर जो आयतें नाज़िल हुईं उनमें से कुछ ये हैः

और यदि वे संधि और सलामती की ओर झुकें तो तुम भी इसके लिए झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो। निस्संदेह, वो सब कुछ सुनता, जानता है और यदि वो ये चाहें कि तुम्हें धोखा दें तो तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी है। वही तो है जिसने तुम्हें अपनी सहायता से और मोमिनों के द्वारा शक्ति प्रदान की (8: 61-62)।

क़ुरान की इन आयतों से हमें ये पता चलता है कि इस्लाम के मुताबिक़ शांति अधिकतम संभव सीमा तक वांछनीय है, यहाँ तक कि अगर शांति स्थापित करने में खतरा हो तब भी इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। और जंग की हालत में भी अगर विरोधी शांति का प्रस्ताव पेश करें तो बिना किसी देरी के ही इसे कबूल किया जाना चाहिए। यहाँ तक कि अगर इस बात का भी संदेह हो कि शांति के इस प्रस्ताव में धोखा शामिल है तब भी इस प्रस्ताव को इस विश्वास के साथ क़ुबूल किया जाना चाहिए, कि अल्लाह हमेशा शांति से प्यार करने वालों के साथ है न कि उन लोगों के साथ जो धोखा देने में शामिल हैं।

इससे हमें ये भी पता चलता है कि जो लोग शांति स्थापित करने के लिए काम करते हैं, वो ज़्यादा हिम्मत वाले लोग हैं। इस दुनिया में लोगों और समूहों को हमेशा एक दूसरे से कोई न कोई परेशानी होती है। अधिकारों के उल्लंघन और अन्याय की शिकायतें हमेशा रहेंगी। ऐसे हालात में वही लोग शांति स्थापित कर सकते हैं जो किसी भी कीमत पर शांति स्थापित करने के लिए दूसरे कारकों से ऊपर उठेंगे। सिर्फ ऐसे हिम्मती लोग ही इस दुनिया में शांति स्थापित कर सकते हैं। जिन लोगों में इस साहस की कमी होगी वो सिर्फ मतभेद ही पैदा कर सकते है। ऐसे लोग शांति स्थापित करने में अपना कोई योगदान नहीं दे सकते।

एक महान प्रावधान

क़ुरान की आयत (20: 131) में जीवन की वास्तविकता को इन शब्दों में बयान किया गया है:

''और उसकी ओर आँख उठाकर न देखो, जो कुछ हमने उनमें से विभिन्न लोगों को उपभोग के लिए दे रखा है, ताकि हम उसके द्वारा उन्हें आज़माएँ। वह तो बस सांसारिक जीवन की शोभा है। तुम्हारे रब की रोज़ी उत्तम भी है और स्थायी भी।''

दो रास्ते हैं जिन पर चलकर आप अपना जीवन गुज़ार सकते है। पहला रास्ता ये है कि आप भौतिक दुनिया को ही अपने ध्यान का केन्द्र और मकसद बना लें और सांसरिक चीज़ों को पाने औप सत्ता हासिल करने को अपनी कामयाबी मानें। ये ऐसी चीज़ें है जिनको लेकर दुनिया में हमेशा लोगों के बीच प्रतिस्पर्धा और संघर्ष होता रहता है। और यही वजह है कि भौतिकवादी लोगों को हमेशा यही लगता है कि दूसरों ने उनके अधिकारों का हनन किया है। और ये भावना नफरत, बदला और हिंसा की तरफ ले जाती है।

जीवन जीने का दूसरा तरीका ये है कि जीवन में महान उद्देश्यों को हासिल करने पर ध्यान लगाया जाए। जो लोग इस तरह अपना जीवन गुज़ारते हैं वो खुद से संतुष्ट होते हैं। उन्हें जिन चीज़ों की भी ज़रुरत होती है उन्हें वो अपने अंदर ही पाते हैं जिससे वो दूसरों से नाराज़ होने या उनसे नफ़रत करने या उनका उत्पीड़न और उन पर हिंसा करने से बच जाते हैं। ये वो लोग हैं जिनके बारे में क़ुरान बयान करता है कि उन्हें अल्लाह की बेहतर समझ हासिल है। अल्लाह का दिया हुआ ज्ञान ये है कि हम इस बात पर पूरा विश्वास रखें कि हमने उस सच्चाई को हासिल कर लिया है, हमने उस अस्तित्व की खोज कर ली है जिसे अल्लाह ने हमें दिया और ये सोने और चाँदी के तमाम खज़ानों से भी ज़्यादा क़ीमती है। जिस इंसान को अल्लाह का ये ज्ञान हासिल हो जाता है वो इस चेतना के साथ जीता है कि पूरा ब्रह्माण्ड उसके लिए बौद्धिक और आध्यात्मिक जश्न की जगह हो जाती है। ऐसा इंसान इतना ऊँचा स्थान हासिल कर लेता है कि दौलत और ताक़त जैसी चीजें उसके लिए बहुत मामूली हो जाती हैं। चीज़ों के बारे में उसकी समझ और उसका सोचने का तरीका उसे शांति प्रेमी बना देता है। वो नफ़रत और हिंसा को इतना निरर्थक मानना शुरू कर देता है कि वो न तो किसी से नफ़रत कर सकता है और न ही किसी को अपनी हिंसा का निशाना बना सकता है। जिस व्यक्ति को इतना बेशक़ीमती खज़ाना हासिल हो गया हो वो क्यों इन छोटी चीज़ों के पीछे भागेगा?

मौलाना वहीदुद्दीन खान नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर पीस एंड स्पिरिचुआलिटी के प्रमुख हैं।

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