खुर्शीद अहमद फ़ारिक़
इराक और सीरिया पर सेना की तैनाती
अरब- इराक सीमा पर कई अरब क़बीले इराक में फ़ारस की सरकार की कमज़ोरी का फायदा उठाकर और अबु बकर सिद्दीक़ की खिलाफत के शुरुआती दौर में शाही घराने की एक औरत बूरान की ताजपोशी से और ज्यादा हौसला पाकर दक्षिण और दक्षिण पश्चिमी इराक में संघर्ष कर रहे थे। अबु बकर सिद्दीक़ ने उनकी हिम्मत को बढ़ाया और उनकी लड़ाई को मदीना की सरकार के अधीन बनाकर सेना और हथियारों से उनकी मदद की। सिद्दीकी सेना का नेतृत्व प्रसिद्ध क़ुरैशी जनरल ख़ालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहू अन्हा हाथ में थी। खालिद रज़ियल्लाहू अन्हा ने शत्तल अरब यानि दजला और फरात के महान डेल्टा, हेरा और इराक के उत्तर पश्चिमी सीमा के फ़ारसी शहरों में कई कामयाब हमले कर खूब माले ग़नीमत हासिल किया। मदाएन कसरा के बाद इराक में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा शहर हेरा था जहां सदियों तक इराक सीमा के अरब बादशाह फ़ारसी साम्राज्य के अधीन शासक थे। हेरा के अरब रईसों ने पैंतालीस या पचास हज़ार रुपये सालाना पर खालिद बिन वलीद से समझौता कर के अपनी जान बख्शवाली, और ये रक़म केंद्रीय खजाने के हिसाब में जमा होने लगी।
12 हिजरी के अंत तक अरब बगावतें देश के दूर दराज़ इलाकों में समाप्त हो चुकी थीं और अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू अन्हा के प्रतिनिधि और ज़कात वसूलने वाले छोटे छोटे सुरक्षा दस्ते को साथ लेकर अरब बस्तियों और शहरों को जा चुके थे और अपने सामान्य कर्तव्यों को निभाने लगे थे। अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू अन्हा के हज़ारों सिपाही युद्ध के मोर्चों से वापस आ गए थे और गतिरोध की खतरनाक ज़िंदगी बिता रहे थे। पिछली लड़ाईयों में बहुत से अरब परिवार अपने कमाने वालों की मौत या हत्या से बेसहारा हो गए थे। सैन्य लड़ाई में कई नखलिस्तान और खेत बर्बाद हो गए थे। अरबों की आर्थिक ताकत यानि ऊंट बड़ी संख्या में मारे गए थे या मदीना के विजेताओं के क़ब्ज़े में आ गए थे। इन लड़ाई के दौरान बहुत से अरब अपने पेशे और बस्तियां छोड़कर जंगलों और सुरक्षित ठिकानों को भाग गए थे। यूँ भी अरबों के साथ प्रकृति मेहरबान नहीं थी। देश में पानी की सख्त कमी थी। बिना संसाधनों के रेगिस्तान और नंगे पहाड़ देश में हर तरफ फैले हुए थे। इन लड़ाईयों से कारोबार, व्यापार, कृषि और बागवानी सभी प्रभावित हुए थे और एक आम गतिरोध, बेरोज़गारी और पिछड़ेपन का माहौल फैल गया था। अरब के माननीयों के प्रतिनिधिमंडल अबु बकर सिद्दीक़ के पास अपनी वफ़ादारी के लिए आते तो अपने क्षेत्रों की आर्थिक बदहाली को बता कर मदद की मांग करते थे।
अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहू अन्हा 12 हिजरी के हज को पूरा करके लौटे तो अरब प्रायद्वीप से बाहर जिहाद का इरादा बना चुके थे। मदनी कुरान में जिहाद शब्द इस्लाम के धार्मिक प्रचार, मुसलमानों की आर्थिक समृद्धि और राजनीतिक स्थिरता के लिए गैर-मुसलमानों से युद्ध करने के अर्थ में प्रयोग हुआ है। प्रायद्वीप के एक पड़ोसी देश में जिहाद की मुहिम पहले ही शुरू हो चुकी थी और फारसी सरकार की कमज़ोरी के कारण बराबर कामयाब होती जा रही थी। अबु बकर सिद्दीक़ ने दूसरे देश सीरिया की तरफ ध्यान दिया। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम सीरिया की जीत की भविष्यवाणी कर चुके थे। उत्कृष्ट जलवायु और जीवन के संसाधनों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता के साथ सीरिया खूबसूरती के संसाधनों से भी मालामाल था। अबु बकर सिद्दीक़ को सीरिया से भावनात्मक लगाव था। वो खुद कई बार व्यापार के सिलसिले में सीरिया का दौरा कर वहां की स्वस्थ जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों और उच्च संस्कृति से प्रभावित हो चुके थे। इसके अलावा सीरिया काफी समय से उनके पूर्वजों का फायदा देने वाली एक कारोबारी मंडी भी थी जहां आकर वो हेजाज़ और यमन का कपड़ा, इत्र, चमड़े का सामान आदि बेचते थे और अरबों की ज़रूरत का सामान खरीद कर हेजाज़, तहामा, यमन और देश के दूसरे बाज़ारों में बेचते थे।
मदीने के बाहर एक कैम्प खोल दिया गया और भर्ती शुरू हो गई। मोहर्रम 13 हिजरी के दूसरे- तीसरे हफ्ते में अबु बकर सिद्दीक रज़ियल्लाहू अन्हा चार फौजें सीरिया की सीमा के चार महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर हमले के लिए रवाना कर दीं। उन्होंने यमन के क़बायली ज़ामा को लिखा कि वो अपने कबीलों को लेकर मदीने आ जाएं और सीरिया जाकर जिहाद करें और खुदा के दो इनामों- शहादत और माले गनीमत 1 से लाभान्वित हों। कई यमनी जो गरीबी या बेरोज़गारी का शिकार थे या जिनके दिल में तलवार के जौहर दिखाकर दुनियावी सम्मान प्राप्त करने की इच्छा थी, मदीने आ गए और सरकार की तरफ से घोड़े, हथियार और रास्ते का सामान लेकर उन फौजों में मिल गये जो पहले भेजी जा चुकी थीं। मक्के के कई खानदानी कुरैशी जो रिद्दा बगावतों के ज़माने में सिर्फ तमाशाई बने रहे थे अब ये देखकर कि इस्लाम की विजेता फौजें सीरिया जैसे सुखद, संसाधनों से भरपूर और खूबसूरती से मालामाल भूमि को अपने अधीन करने निकले हैं, मदीने की तरफ दौड़ पड़े और वहां सशस्त्र होकर किस्मत आज़माने के लिए सीरियाई मोर्चों पर चले गए।
दक्षिण सीरिया में सिद्दीकी फौज के कमांडर उमरो बिन आस रज़ियल्लाहू अन्हा के गज्ज़ा के बैज़न्ती गवर्नर के साथ एक सार्थक और दिलचस्प बातचीत यहां पेश की जाती है। गवर्नर ने अरबों की सीरिया पर चढ़ाई के कारण पता करने के लिए जंग से पहले उनका एक प्रतिनिधि बातचीत के लिए बुलाया। उमरो बिन आस रज़ियल्लाहू अन्हा खुद गवर्नर से मिलने गए। उसने उनकी खूब सेवा सत्कार किया और बताया कि ऐस बिन इस्हाक़ बिन इब्राहीम1 के वास्ते से हम अरबों के रिश्तेदार हैं। फिर उसने पूछा: तुमने क्यों हमारे देश पर हमला किया है? हमारे और तुम्हारे पूर्वजों ने जब ज़मीन बांटी थी तो तुम्हारे हिस्से में वो इलाक़ा आया जिस पर तुम क़ाबिज़ हो और हमारे हिस्से में वो क्षेत्र आया जिसमें हम आबाद हैं। हमारा मानना है कि अकाल और गरीबी से मजबूर होकर तुम ने हमारे देश पर हमला किया है। हम तुम्हारी मदद करने को तैयार हैं और तुम्हें सलाह देते हैं कि अपने देश वापस चले जाओ। उमरो बिन आस ने कहा, हमारे तुम्हारे रिश्ते की बात तो सही है लेकिन पूर्वजों का बँटवारा न्यायपूर्ण नहीं था। इसलिए हम चाहते हैं कि नए सिरे बँटवारा किया जाए यानि तुम्हारे आधे खेत हमारे हिस्से में आ जाएं और हमारे देश के आधे कांटे और पत्थर तुम्हारे हिस्से में। सूखा और गरीबी का जो उल्लेख तुमने किया है, तो समझ लो कि सीरिया आकर हमने एक पौधा देखा है जिसे गेहूं कहते हैं, उसे खाकर हमें इतना मज़ा आया है कि हम उस समय तक ये देश नहीं छोड़ेंगे जब तक तुम्हें गुलाम न बना लेंगे या तुम इस पौधे के खेतों में हमें क़त्ल न कर दोगे। 2
चूंकि सीरियाई सरकार अपनी सीमा पर स्थित बस्ती अब्ना पर ओसामा बिन ज़ैद रज़ियल्लाहू अन्हा के अचानक हमले के बाद चौकन्ना हो गई थी और उसने सीमावर्ती शहरों में रक्षा का इंतेज़ाम कर लिया था, इसलिए शुरु शुरु में सिद्दीकी फौजों को कोई शानदार जीत या बड़ा माले गनीमत हासिल नहीं हुआ। अगले चार पांच महीनों में यानि सफ़र 13 हिजरी से जमादुल आखिर 13 हिजरी तक जब अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू अन्हा का निधन हुआ और मोर्चे पर झड़पें होती रहीं जिनमें कहीं सिद्दीकी मुजाहिद को नुकसान हुआ कहीं दुश्मन को दबा कर आगे बढ़ गए। उनकी ज़िंदगी के आखरी समय में अजनादीन 3, नाम के स्थान पर एक बड़ी लड़ाई हुई जिसमें मुसलमान कामयाब हुए। उन्हें क्या और कितना माले ग़नीमत हाथ लगा ये हम नहीं बता सकते क्योंकि हमारे स्रोत इस बारे में कोई मार्गदर्शन नहीं करते लेकिन माले ग़नीमत के आंकड़े से अधिक दो महत्वपूर्ण बात जिससे मदीना की सरकार की आर्थिक ऊर्जा का ज्ञान होता है, ये है कि इंतेक़ाल के वक्त अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू अन्हा की छियालीस हज़ार,1 फौज जिसमें रिसालों का बहुमत था, सीरिया के मोर्चों पर लगी हुई थीं और उसको बल प्रदान करने के लिए लगातार रिसाले और रसद भेजने का अमल जारी था।
उपरोक्त पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के स्थापित अर्थव्यवस्था की मदद से अबु बकर सिद्दीक़ रज़ियल्लाहू अन्हा देश में हर तरफ फैली हुई बगावतों को खत्म करने और कई ताक़तवर प्रतिद्वंद्वियों को नेस्तनाबूद करने में ही कामयाब नहीं हुए बल्कि इसकी बदौलत अरब प्रायद्वीप से बाहर उत्तर में इराक और पश्चिम में सीरिया जैसे मज़बूत और खुशहाल देशों फौजा हमला करने में भी समर्थ हो गये।
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