08,सितम्बर 2014
गेब्रियल गेटहाउस
बीबीसी न्यूज़, इराक़
तीन महीने तक आईएसआईएस के कब्ज़े में रहने के बाद उत्तरी इराक़ के अमेरली में अब जश्न मनाया जा रहा है.
और अब यहां लड़ाई की वजह से बिछड़े परिवारों का भावुक मिलन हो रहा है.
शिया लड़ाकू ग्रुप बद्र ब्रिगेड के कमांडर अली, सद्दाम हुसैन की सेना में अफ़सर थे और अब वो आईएसआईएस ले लड़ रहे हैं.
उनके हाथ में एक नक्शा है. वो नक्शे को दिखाकर कहते हैं, "रास्ता पूरी तरह से सुरक्षित है. ये अमेरली है. हम यहां हैं और आईएस यहां है."
चल पड़ा काफ़िला
शिया बहुल क़स्बा अमेरली सुन्नी आबादी वाले इलाक़े से घिरा हुआ है.
हम अली के ट्रक के पीछे चल रही एक कार में बैठ गए. अली जिस ट्रक में बैठे थे वो शिया लड़ाकों से भरा था.
एक दिन पहले ही अमरीकी मदद से इन लड़ाकों ने तीन महीने से क़स्बे में कब्ज़ा किए हुए इस्लामिक स्टेट की ताकत में ज़बरदस्त सेंध लगाई थी.
हमें दुश्मन की नज़र में आए बिना ख़ुफ़िया तरीके से आगे बढ़ना था. लेकिन चार कारों वाला हमारा काफ़िला इतनी ज़बरदस्त धूल उड़ाते हुए चल रहा था कि मीलों दूर से हमें देखा जा सकता था.
फ़ायरिंग
हम सुलेमान बेग नाम के एक गांव में अचानक रुके. छोटी-छोटी इमारतों के अवशेष और जले हुए वाहन हमारा स्वागत कर रहे थे. तभी हमने फ़ायरिंग की आवाज़ सुनी.
अली ने हमारे काफिले को उसी दिशा में मोड़ दिया जहां से हम आए थे. फिर अचानक हम उस रोड से हट कर रेगिस्तान में चलने लगे. क्या हो रहा है, इस बात की हमें कोई ख़बर नहीं थी.
मैंने इस्लामिक स्टेट के ख़तरों की तरफ़ से अपना ध्यान हटाने की कोशिश की. आईएस के हाथों सर कलम किए गए पत्रकारों की तस्वीरें अपने ज़ेहन से हटाने की चेष्टा की.
मैंने सिर्फ़ वर्तमान पर ध्यान लगाना चाहा. अब क्या होगा ? क्या हमारा रास्ता रोल लिया गया है या क्या हम भटक गए हैं ?
हम फिर रुक गए. अली चिल्लाया, "सिर्फ़ हमारे पीछे आओ." ऐसा कहकर वो फिर वो फ़ायरिंग में मशगूल हो गया.
मैंने पूछा, "हो क्या रहा है? तभी मेरे कानों में आवाज़ पड़ी, "आगे बारूदी सुरंग हैं."
जश्न का माहौल
आख़िरकार आगे बढ़ते हुए हमें एक पक्की सड़क मिली और हम अमेरली में दाखिल हुए.
सड़कों पर महिलाएं और पुरुष, बच्चे और बुज़ुर्ग लाइन लगाकर खड़े थे. उनके हाथ में शिया झंडे थे. वो जीत के जश्न में नारे लगा रहे थे.
हमारा काफ़िला धीरे-धीरे सड़क पर बढ़ता जा रहा था.
मैं कार से उतरकर लोगों से सवाल पूछने के लिए छटपटा रहा था. मैं पूछना चाह रहा था, "जबकि आसपास का सब कुछ आईएस के कब्ज़े में चला गया. तो यहां के लोगों ने उनसे कैसे लोहा लिया."
लेकिन अली नहीं रुका. आख़िर में हम मुख्य रोड से हटकर एक संकरी गली में दाखिल हुए. वहां पर एक घर के पास हमारा काफ़िला रुका.
अली ने लोहे के मुख्य द्वार को खटखटाया. कोई जवाब नहीं मिला. वो फिर चिल्लाया. जवाब ना मिलने पर वो दीवार फांदकर अंदर दाखिल हुआ.
अली ने पाया कि उसकी बूढ़ी मां ने एक रिश्तेदार के घर पनाह ली हुई है. तीन महीने बाद मिले मां-बेटे ने एक दूसरे को गले लगाया और सुबक-सुबक कर रोने लगे.
'लड़ाई के हीरो'
फिर अली झुका और उसने अपनी मां के पैरों को चूम लिया. घर अली के रिश्तेदारों और पड़ोसियों से भर गया.
उसके बाद 10 और 12 साल के दो बच्चे हाथों में कलाशनिकोव राइफ़ल लेकर आगे बढ़े.
"ये मेरे भतीजे हैं और इस जीत के हीरो हैं." अली ने बताया.
पहले मुझे लगा कि इन बातों को गंभीरता से लेने की क्या ज़रूरत. भला इतने छोटे बच्चों को लड़ाई के लिए कोई भेजता है? लेकिन मुझे लोगों ने बताया कि ये सच है.
आईएसआईएस के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए हर एक का संघर्ष करना ज़रूरी था. क्या छोटा और क्या बड़ा.
लड़ाई में ज़बरदस्ती झोंक दिए गए लोगों के लिए घातक हथियार लिए ये बच्चे खौफ़ नहीं बल्कि गर्व का प्रतीक हैं.
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स्रोतःhttp://www.bhaskar.com/news/childrenfighteragainstisis-NOR.html
URL: https://newageislam.com/hindi-section/children-taking-weapons-sunni-terrorists/d/99128