कैरोलिन हावले और जेम्स लांगमैन
27 दिसंबर 2014
वह क़रीब एक हफ़्ते तक वहां रहे. लेकिन अंत में किसी तरह वहां से भागकर तुर्की पहुंचे.
मोसुल यात्रा से जुड़े अपने अनुभव बीबीसी से साझा करते हुए थोडेनेफ़र ने बताया कि वह आईएसको जितना ताक़तवर और बर्बर समझते थे, वह उससे ज़्यादा ख़तरनाक है और उससे मुक़ाबला मुश्किल है.
इरगन थोडेनेफ़र के अनुभव
आईएस के क़ब्ज़े वालेमोसुल शहर में उन्होंने छह दिन गुज़ारे. वह वहां सीरिया के राक्का होते हुए पहुंचे थे.
मोसुल में रहने के दौरान थोडेनेफ़र को महसूस हुआ कि आईएस के समर्थक उससे बहुत अधिक प्रभावित हैं और उसकी बर्बरता के समर्थक हैं.
उन्होंने कहा कि समर्थकों के विस्तार का मतलब यह है कि हवाई हमलों में उन्हें निशाना बना पाना बहुत कठिन है.
पूर्व जर्मन राजनेता इरगन थोडेनेफ़र बाहर के पहले ऐसे व्यक्ति हैं, आईएस के प्रभाव वाले इलाक़े में बहुत अंदर तक जाकर वापस आए हैं.
हाल के दिनों में पश्चिमी देशों के कुछ लोगों के सिर क़लम किए जाने बाद भी उन्होंने वहां जाने का फ़ैसला किया.
इस साल जून में आईएस ने मोसुल पर बहुत तेज़ी से क़ब्ज़ा कर लिया था. मोसुल में इरगन थोडेनेफ़र ने देखा कि किस तरह यह समूह सुन्नी इस्लामिक क़ानून को कड़ाई से लागू कर रहे हैं.
शहर में इश्तहार लगाकर पुरुषों को नमाज़ पढ़ने और महिलाओं को पूरी तरह ढककर रहने की हिदायत दी गई है.
प्रचार सामग्री पर लगे चित्रों पर काला रंग पोत दिया गया है. किताब की एक दुकान पर धार्मिक नियमों से संबंधित पर्चे और किताबें रखी हुई थीं. इनमें यह भी शामिल था कि गुलामों के साथ कैसा व्यवहार करना है.
अपनी यात्रा के दौरान थोडेनेफ़र ख़िलाफ़त के लिए हथियार थामने वाले बच्चों और दुनियाभर से भर्ती किए गए लोगों से भी मिले. इनमें ब्रिटेन, अमरीका, स्वीडन, थाईलैंड और टोबैगो के लोग शामिल थे.
थोडेनेफ़र ने कहा कि वह बर्बरता के लिए उनके उत्साह को देखकर प्रभावित हुए, ''यह एक ऐसा उत्साह था जिसे मैंने युद्धक्षेत्र में पहले कभी नहीं देखा था.''
आत्मविश्वास
वह कहते हैं, ''उनके अंदर बहुत आत्मविश्वास था. ख़ुद पर यक़ीन था. इस साल की शुरुआत में केवल कुछ लोग ही आईएस को जानते थे. लेकिन अव वह ब्रिटेन जितने बड़े इलाक़े पर फ़तह हासिल कर चुके हैं. यह किसी परमाणु बम के धमाके या सुनामी से होने वाले प्रभाव का एक फ़ीसदी है.''
सुरक्षा की गारंटी मिलने के बाद उनके बेटे की ओर से बनाई गई फ़िल्म से इस बात का पता चलता है कि गठबंधन बलों के हवाई हमलों के ख़तरों से बेफ़िक्र होकर यह समूह अपने प्रशासनिक तंत्र को मज़बूत बनाने में लगा हुआ है.
इरगन थोडेनेफ़र कहते हैं, ''मुझे लगा कि वह यह दिखाना चाहते हैं कि इस्लामिक स्टेट काम कर रहा है.''
सतह पर ज़िंदगी उनके उम्मीद से ज़्यादा सामान्य नज़र आती है. लेकिन आईएस के क़ब्ज़े के बाद से ही डर कर शहर के सभी ईसाई और शिया मुसलमान पलायन कर चुके हैं.
अब जिहादियों का अपना न्यायतंत्र है. अदालतों में आईएस के झंडे लगे हुए हैं और उनकी अपनी पुलिस सख़्त इस्लामिक क़ानून लागू करवा रही है.
हालांकि स्थानीय पुलिस के प्रमुख ने उनसे कहा कि अब उन्हें और अधिक कड़े दंड देने की ज़रूरत नहीं है.
लड़ाकों की आपबीती
इरगन थोडेनेफ़र ने अपनी सुरक्षा में लगे लड़ाकों से जो बातचीत की वह, वहां देखी गई चीज़ों से अधिक परेशान करने वाली थी.
उन्होंने कहा कि लड़ाकों को क़ुरान की अधिकांश आयतें याद थीं, वह अपनी बातचीत की शुरुआत यह कहकर करते थे, "अल्लाह बड़ा दयालु है."
उन्होंने कहा, ''मैंने उनसे पूछा, दया कहां है? लेकिन मुझे सही उत्तर कभी नहीं मिला.''
थोडेनेफ़र ने अनुमान लगाया कि शहर में हज़ारों लड़ाके हैं. उन्होंने कहा कि लड़ाके पूरे शहर में फैले हुए हैं, ऐसे में उन्हें निशाना बनाना काफ़ी कठिन है. गठबंधन बलों के हवाई हमलों से बचने के लिए वे समूहों में नहीं निकलते.
इस लेखक का मानना है कि सीरिया की तुलना में इराक़ के अपने प्रभाव इलाक़े में आईएस काफ़ी मज़बूत है, जैसे उसकी तथाकथित सरकार की राजधानी राक्का.
उन्होंने कहा कि सीरियाई राष्ट्रपति बशर-अल-असद अब भी सरकारी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान कर रहे हैं.
सुरक्षित म्यूनिख लौटे इरगन थोडेनेफ़र ने कहा, ''मैंने अपने जीवन में जितने भी शत्रु देखे हैं, उनमें आईएस सबसे अधिक ख़तरनाक़ और बर्बर है.''
जान बचाकर भागे
वह कहते हैं, ''मुझे ऐसा कोई नज़र नहीं आया, जो उन्हें रोक सके. केवल अरब ही आईएस को रोक सकते हैं. मैं बहुत निराश होकर लौटा हूं.''
इरगन थोडेनेफ़र बहुत भाग्यशाली थे कि वह सुरक्षित लौट आए. कई महीने की बातचीत के बाद एक जर्मन जिहादी की मदद से वह वहां पहुंचे थे और ख़लीफ़ा के कार्यालय से लौटने की लिखित इजाज़त हासिल करने में कामयाब रहे जिससे कई मौक़ों पर उनकी जान बची.
अंत में इस बारे में अनिश्चय के साथ कि कहीं उनका विचार बदल तो नहीं गया और उन्होंने उन्हें बंधक बनाने का फ़ैसला तो नहीं कर लिया. थोडेनेफ़र और उनके बेटा क़रीब आधा मील दौड़कर तुर्की की सीमा में पहुंचे.
वह कहते हैं, ''हमारे पास जो भी सामान था उसके साथ हमने क़रीब एक हज़ार मीटर तक दौड़ लगाई.''
''जब हम सीमापार हो गए तो अविश्वसनीय रूप से बहुत ख़ुश था. मुझे महसूस हुआ कि मेरे कंधों से टनों बोझ उतर गया है. मैंने अपने परिवार को फ़ोन किया."
"इसी समय मुझे इस बात का एहसास हुआ कि जो मैंने किया है, वह बहुत आसान नहीं था.''
Source: http://www.bbc.co.uk/hindi/international/2014/12/141226_islamic_state_visit_ra
URL: https://newageislam.com/hindi-section/it-easy-defeat-/d/100922