हकीम मोहम्मद इब्राहिम शेख, हैदराबाद
(उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)
21 मई, 2012
अजमेर शरीफ में हजरत ख्वाजा चिश्ती अलमारूफ गरीब नवाज़ रहिमतुल्लाह अलैह की दरगाह 800 सालों से रूहानी तहरीक, रश्द व हिदायत और सुकूने कल्ब का नूरानी मर्कज़ व गहवारा है।
दरगाह शरीफः हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहिमतुल्लाह अलैह की दरगाह कई बहुत शानदार इमारतों का मजमूआ है, जिन्हें शहंशाहों, बादशाहों ने बनवाया है, ये इमारतें इस हक़ीक़त का जीता जागता सबूत हैं कि किस तरह दुनियवी एक्तेदार रूहानी ताकत के आगे सिर झुकाता है।
मज़ार शरीफः हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहिमतुल्लाह अलैह का वेसाल उनके इसी हुजरे में हुआ था, जहां रात रात भर इबादत व रियाज़त में मसरूफ रहते थे और यहीं उन्हें सुपुर्दे खाक भी किया गया, सुल्तान गयासुद्दीन ने इसकी तामीर कराई, आसताने पर मौजूद गुंबद भी उनका तामीरकर्दा है, गुंबद पर नक्काशी का काम सुल्तान महमूद बिन नासिरुद्दीन के जमाने में हुआ, मज़ार शरीफ का दरवाजा बादशाह मांडो ने बनवाया था, आस्ताना मुबारक के अंदर सुनहरी कटहरा मुगल बादशाह जहांगीर ने और नकरई कटहरा शहज़ादी जहां आरा ने बनवाया, आस्ताना मुबारक के दरवाजे शहंशाह अकबर ने पेश किए थे, अंदर के हिस्से में सोने का काम और मखमल की ज़रीं छत गिरी के नीचे चार तलाई क़ुमक़ुमे सोने की जंजीरों में लटके हुए हैं।
बुलंद दरवाजा: सुल्तान महमूद खिल्जी ने 1455 में बनवाया था, उसकी ऊंचाई 85 फुट है, उसके फर्श में संगेमरमर और संगे मूसा बड़े सलीके से गूंधा गया है, मेहराब में तीन तलाई गोले लटके हुए हैं, बुलंद दरवाज़ पर चढ़ने के लिए दोनों तरफ़ ज़ीने हैं, ये दरवाजा दरगाह की सभी अंदरूनी इमारतों से ऊँचा है, इसलिए उसे बुलंद दरवाजा कहा जाता है।
मस्जिद अकबरी: अकबर ने लाल पत्थरों की ये मस्जिद 1570 में बनवाई थी, मस्जिद की मेहराब की ऊंचाई 56 फुट है।
मस्जिद संदल खाना: सुल्तान महमूद खिल्जी ने जंग में कामयाबी के बाद मज़ार मुबारक के पास 1425 में मस्जिद की तामीर कराई, जिसे अब संदल खाना के नाम से याद किया जाता है।
मस्जिद शाह जहानी: ये मस्जिद शाहजहाँ ने 1640 में 2 लाख 40 रुपये की लागत से बनवाई थी और इसकी तामीर 14 साल में पूरी हुई थी।
शाहजहानी दरवाजा (नक्कार खाना): शहंशाह शाहजहाँ ने ये दरवाजा 1638 में बनवाया था, दरवाजे के मेहराब पर सुनहरी हरूफ में कल्मए तैय्येबा लिखा है, उसके ऊपर नक्कार खाना भी है, इस वजह से इसको नक्कार खाना कहा जाता है।
मस्जिदे औलिया: ये मस्जिद कटिहार के खान बहादुर चौधरी मोहम्मद बख्श ने 1851 में उस मोकद्दस मक़ाम पर बनवाई थी, जहां ख्वाजा गरीब नवाज रहिमतुल्लाह अलैह ने पहली नमाज अदा की थी।
नेज़ाम दरवाजा: ये दरगाह में दाखिले का सदर दरवाज़ा है, जिसे नेज़ामे हैदराबादी मीर उस्मान अली ख़ान ने 1912-1915 के दौरान बनवाया था, ये 70 फीट ऊंचा है, इसके ऊपर बड़े बड़े नक्कारे रखे होते हैं, जो शहंशाह अकबर ने पेश किए थे, यहाँ रोज़ पांच बार शहनाई बजाई जाती है।
जन्नती दरवाजा: ये दरवाजा आस्ताना मुबारक के अहाते में पश्चिम में स्थित है, ये दरवाजा साल में चार बार खोला जाता है, (1) उर्स मुबारक हज़रत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहिमतुल्लाह अलैह एक से छह रजबुलमोरज्जब के मौके पर, (2) ईदुल फितर के माके पर सुबह चार बजे से दोपहर ढाई बजे तक (3) उर्स ख्वाजा उस्मानी हारूनी 6 शव्वाल अलमोकर्रम के मौके पर, (4) ईदुज़्ज़ोहा के मौक़े पर।
देगें: दरगाह हजरत ख्वाजा गरीब नवाज रहिमतुल्लाह अलैह के अहाते में बड़ी देग और छोटी देग है, इन तारीखी देगों की अपनी खुसुसियतों और दिलचस्पी के लिहाज से बेमिसाल समझी जाती हैं, दुनिया की कई ख़ानक़ाह और दरगाह में इन देगों की मिसाल नहीं मिलती।
(1) बड़ी देग: दरवाजे के पश्चिम में रखी है, ये बादशाह अकबर ने 1569 में पेश की थी, इसमें लगभग 37 क्विंटल (100 मन) तबर्रुक पकाया जा सकता है।
(2) छोटी देग: बुलंद दरवाजा के पूर्व में रखी है, ये देग बादशाह जहांगीर ने आगरा में तैयार करवाई थी, 1033 में पेश की थी, उसमें लगभग 29 क्विंटल (80 मन) तबर्रुक की गुंजाइश है, सालों साल से ये तरीका आम है कि अपने वक्त के बड़े हुक्मरानों, अमीरों, आम आदमी अपनी अक़ीदत और खास जज़्बात के साथ यहां हाज़िरी देते हैं और अपनी ताक़त के मुताबिक बड़ी छोटी देग के तबर्रुक में अपना हिस्सा शामिल करते हैं, उनके देगों में जो तबर्रुक तैयार होता है, वो अपनी मिसाल आप है, चावल, शक्कर, घी और कुछ दूसरी चीज़ें मिला देते हैं, खाने में जो ज़ायक़ा पैदा होता है, वो चखने से ताल्लुक़ रखता है, देगों के इस तबर्रुक पर खादिमों का एक खास ग्रुप निगरानी करता है, खादिमों का ये गिरोह चमड़े का खास लिबास पहन कर देगों में उतर कर तबर्रुक निकालता है, जबकि ये मंज़र देखने के लायक़ होता है, दरगाह शरीफ के अहाते में तारीखी इमारतों और यादगारों के अलावा और भी यादगारें हैं, जैसे मज़ार बीबी हाफ़िज़ जमाल, चिल्ला हज़रत बाबा फरीदुद्दीन गंज शकर रहिमतुल्लाह अलैह, सेहन चिराग़, महफिल खाना, हौज़े कुँएं मेरी हैं, दरगाह में हर वक्त दुनिया भर के जायरीन की एक बड़ी तादाद मौजूद रहती है, यही वजह है कि अपने वक्त के बादशाहों, रईसों के साथ गैर मुस्लिम राजों, महाराजों ने आस्ताना ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहिमतुल्लाह अलैह पर हमेशा इंतेहाई इरादत व अक़ीदत से हाज़िरी दी है।
21 मई, 2012, स्रोत: रोज़नामा अमन, पाकिस्तान
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