अताउल हक़ क़ास्मी
मैंने पिछले कॉलम में स्वीडन में रहने वाले अपने फेसबुक फ्रेंड अमजद शेख का एक पत्र प्रकाशित किया था, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के बजाय स्वीडन को अपना देश बनाने के कई कारण बताए थे। इन कारणों का सम्बंध जिन मामलों से था उनमें कुछ मैंने अपनी तरफ से भी शामिल कर दिया है। सार ये कि जब उन्होंने पाकिस्तान में होश संभाला तो यहाँ ज़ियाउल हक़ का मार्शल लॉ लगा हुआ था और जाली रिफ्रेंडम (जनमत संग्रह) के माध्यम से जनता के मौलिक अधिकार, मताधिकार से उन्हें वंचित किया जा रहा था, दूसरी वजह ये बताई कि पाकिस्तानी समाज में बहुत घुटन का एहसास होता था, यहाँ हर व्यक्ति को किसी दूसरे व्यक्ति के साथ अलग बात करनी पड़ती है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता कैद में है। लोग एक दूसरे के मामलों को कुरेदने में लगे रहते हैं, धार्मिक मामले में पाखंडीपन अपनी सीमा को पार कर चुका है और हर व्यक्ति के पास अपनी हरामख़ोरी का औचित्य मौजूद है, शासकों के अलावा जनता का बहुमत भी भ्रष्ट था, इसलिए उन्होंने देश छोड़ने का इरादा किया और स्वीडन में जा बसे।
उनके खत की आखरी लाईनें ये थीं, ''मैं यहाँ खुश हूँ, सब लोग टैक्स देते हैं, समय पर आते हैं, कोई झूठ नहीं बोलता, कोई किसी को धोखा नहीं देता, मियाँ बीवी में तनाव हो तो शराफत से अलग हो जाते हैं। सरकारी कामों में रिश्वत का चलन नहीं है, शराब पीकर लोग गाड़ी ड्राइव नहीं करते और अगर गाड़ी चलानी हो तो शराब नहीं पीते। कानून का सम्मान पूजा की तरह करते हैं।
क़ास्मी साहब! आप हमें पाकिस्तान बुलाते हैं, आप चाहते हैं हम अपनी जन्नत छोड़कर वापस आ जाएं, कुछ समय पहले हमें बहुत शौक था कि बच्चे उर्दू बोलें, उर्दू पढ़ें, छत पर शौक से सैटेलाईट लगवाई, दर्जनों टीवी चैनल भी आने लगे, यक़ीन मानें धमाकों और बुरी खबरों के सिवा कुछ नहीं था। आज मेरे बच्चे आज़ाद माहौल में पल रहे हैं, न उन्हें उर्दू भाषा के विस्तार का पता है और न इस्लाम के वैश्वीकरण का, स्वीडिश भाषा बोलते हुए बच्चे एक अच्छा इंसान बनने की कोशिश करते हैं। अगर मेरे बारे में पूछें तो मेरे लिए आज भी 'छे ...... छेका ........ छत्ती' ही है। क़ास्मी साहब मैंने अपनी क़ुर्बानी देकर अपनी आने वाली पीढ़ियों को ''बंदे का पुत्तर'' बनाने की व्यवस्था कर दी है!''
मैंने अमजद शेख के खत का सार इन पेजों में बयान कर दिया है ताकि जिन पाठकों की नज़रों से उनका खत नहीं गुज़रा था, वो उसकी सामग्री से अवगत हो सकें। मैं अगर चाहता तो पाकिस्तान में पाई जाने वाली खराबियों और पश्चिम में पाई जाने वाली खूबियों के जवाब में इन दोनों क्षेत्रों की विस्तृत समीक्षा करते हुए पाकिस्तानी समाज की और भी खराबियों और उसके साथ ही पश्चिमी देशों की कई कमियों का उल्लेख बहुत विस्तार से कर सकता हूँ क्योंकि मैंने इन दोनों समाजों को बहुत क़रीब से देखा है। मैंने अपनी जवानी के दो बेहतरीन साल अमेरिका में बिताये हैं मगर हज़ारों डॉलर माहवार वेतन, एयर कंडीशंड अपार्टमेंट और जहाज नुमा गाड़ियाँ छोड़कर वापस स्वदेश लौट आया था कि मुझे डर था कि कहीं मेरी आने वाली पीढ़ी में कोई ''पीरज़ादी पीटर क़ास्मी'' जन्म न ले बैठे, वापसी पर वही किराए का घर था, अखबार की सब-एडिटरी, तन्ख्वाह 323 रुपये माहवार और बसों के धक्के थे।
मेरा छोटा बेटा अली और उसकी बीवी भी शिक्षा प्राप्त करने के लिए छह साल पश्चिमी देशों में गुज़ार कर लुम्ज़ (Lahore University of Management Sciences) और पंजाब युनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं और अपने दम पर ऐसे दिमाग तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं कि आने वाली पीढ़ी पाकिस्तान को इन बुराइयों से मुक्त कर दे जो उसे अंदर से खोखला करती चली जा रही हैं। इनके अलावा भी अनगिनत पाकिस्तानी ऐसे हैं जो कई बरस अपनी 'जन्नत' में बिताने के बाद वापस अपने वतन लौट आए। इनमें चकवाल के नासिर शेख को मैं व्यक्तिगत रूप से जानता हूँ। उन्हें पाकिस्तान वापसी पर बहुत खराब स्थिति का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने ये क़ुर्बानी अपने बच्चों के भविष्य के खातिर दी। 'बेहतर भविष्य' क्या है इसकी परिभाषा हर किसी की अलग अलग है।
हालांकि मेरा दृष्टिकोण ये है कि अगर हम अपने आस पास से परेशान हों तो क्या आस पास में रहने वाले लोगों को जो हमारे अपने लोग हैं अकेला छोड़ कर वहां से पलायन कर जाना चाहिए या उनमें रहकर वो माहौल पैदा करने की कोशिश करनी चाहिए कि अगर वो नहीं, तो उनके बच्चे एक खूबसूरत पाकिस्तान में ज़िंदगी गुज़ार सकेंगे।
मेरे प्यारे अमजद शेख, तुमने सिर्फ अपने बच्चों का सोचा, उन करोड़ों बच्चों का नहीं जो किसी मसीहा के इंतेज़ार में हैं कि उनकी अर्द्ध मृत भावनाओं को ज़िंदगी की चमक अता करे। पाकिस्तान की धरती हमारी बीमार मां है, बीमार मां को अकेले नहीं छोड़ा करते, पश्चिमी देशों के लोगों ने ऐसा नहीं किया था, वो कभी ज़्यादा बुरे हाल में थे, वहां से भी कुछ लोगों ने देश छोड़ा, मगर जो लोग समाज को बदलना चाहते थे उन्होंने इसके लिए अपनी जानें क़ुर्बान कर दीं और फिर कई सदियों तक बुरे दौर में रहने के बाद वो आज के दौर में पहुंची। ये वहशी क़ौमें थीं, इनके बीच गृह युद्ध हुए उन्होंने दो विश्व युद्धों में करोड़ों लोग मार दिए, एटम बम फेंके, फिर उन्होंने हालात सुधार के लिए आंदोलन चलाए, बादशाहतों और तानाशाही को खत्म किया, नियमों के पालन के लिए कड़े कानून बनाए और उनके पालन करने को सुनिश्चित किया लेकिन आज भी उनके शासकों के अंदर का वहशीपन पिछड़े देशों को पिछड़ेपन के दलदल में धकेलने के लिए वैज्ञानिक उपायों का इस्तेमाल करते हैं। सारी दुनिया को विनाशकारी हथियार यही सुसंस्कृत राष्ट्र प्रदान कर रहें हैं, महिलाओं को पुरुषों के मनोरंजन का साधन बनाकर उनकी पवित्रता का नाश कर दिया है, अमेरिका में एक घंटे के लिए बिजली गई थी और सैकड़ों औरतों को लिफ्टों में रेप कर दिया गया था, परिवार की प्रणाली तितर बितर हो गयी है, लोग औलाद पैदा नहीं कर रहे हैं और इस प्रकार पश्चिमी देश इस समय आबादी की कमी का शिकार हो रहे हैं।
माफी चाहता हूं, हमारे अमजद शेख! मैं विषय से थोड़ा हट गया हूँ, मैं कह रहा था कि पाकिस्तान के बारे में तुम्हारा दर्द तारीफ के लायक है। मैं तुम्हारी आंतरिक पीड़ा को अच्छी तरह समझता हूँ, तुम देशभक्त हो लेकिन वो लोग तुमसे और मुझसे अधिक देशभक्त हैं जिन्होंने अपनी धरती मां के दुखों का इलाज करने के लिए अपनी उमर जेलों में गुज़ार दीं। बुरी तरह की हिंसा बर्दाश्त की, कोड़े खाए, फाँसियों पर चढ़े, उन्हें ''मामा जी'' की अदालतों में लाया गया, आज भी हामिद मीर छः गोलियां खाने के बाद कराची के अस्पताल में तकलीफ से कराह रहा है। यहां लोगों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के आंदोलन चलाए, मीडिया की स्वतंत्रता के लिए जीवन बलिदान किया, लोकतांत्रिक शक्तियों को मज़बूत करने की कोशिश की और अलहमदोलिल्लाह आज भी अच्छे संकेत सामने आने शुरू हो गए हैं। हालात धीरे धीरे बेहतर हो रहे हैं। मेरी दुआ है कि हम लोग जल्द से जल्द पाकिस्तान को क़ायदे आज़म और इक़बाल के सिद्धांतों के अनुसार एक इस्लामी कल्याणकारी राज्य बनाने में सफल हो जाएं। याद रखो यहाँ सब बुरे लोग नहीं हैं, यहां राजनीति, व्यवसाय, ब्युरोक्रेसी, सेना, ज्ञान, शिक्षा और अन्य सभी क्षेत्रों में अच्छे लोग भी हैं जो अपने अपने दायरे में रहते हुए क़ायदे आज़म और इक़बाल के सपने को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यहां डा. अमजद साक़िब हैं, यहां डॉक्टर अदीब रिज़वी हैं और यहां सबसे बढ़कर अब्दुल सत्तार ईधी हैं जो बहुत बड़ी बड़ी कल्याणकारी योजनाओं पर काम कर रहे हैं। पाकिस्तान को बदलना है। तुम्हारे बच्चों को अपने वतन पाकिस्तान आना है, तुमको भी आना है, हम सब की पहचान पाकिस्तान ही है। पाकिस्तान हमारी जान है, हमारा ईमान (विश्वास) है, पाकिस्तान हमारे बिना भी सब कुछ है लेकिन हम इसके बिना कुछ भी नहीं हैं।
जून, 2014 स्रोत: मासिक तोलूए- इस्लाम
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