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Hindi Section ( 30 Dec 2011, NewAgeIslam.Com)

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Religion a Source of Conflict or Resource for Peace? धर्म शांति का स्रोत है या संघर्ष के लिए संसाधन?


असग़र अली इंजीनियर (अंग्रेज़ी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)

ये एक पुरानी बहस है कि धर्म शांति का स्रोत है या संघर्ष के लिए संसाधन? क्या धर्म दक्षिण एशिया में स्थायित्व और भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ती को मज़बूत करने में सकारात्मक भूमिका अदा कर सकता है? इन सवालों पर विचार विमर्श करने के लिए भारत और पाकिस्तान से 20 विद्वानों और कार्यकर्त्ताओं का दल काठमाण्डू, नेपाल के धौलिखेल नाम की जगह पर इकट्ठा हुए।

ये विचार विमर्श फ्रांस की आइरेनीज़ और पीपल्स ट्री आफ बंग्लौर की और से सामूहिक रूप से 10-13 मई, 2009 को किया गया था। इस कांफ्रेंस में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के विद्वानों और कार्यकर्त्ताओं नें भाग लिया था। पाकिस्तान से मशहूर इतिहासकार और शांति के लिए प्रयास करने वाले प्रोफेसर मुबारक अली, मशहूर कवियित्री फहमीदा रियाज़ और कराची विश्वविद्यालय से पाकिस्तान स्टडीज़ विभाग के सैय्यद जाफर अहमद ने शिरकत किया।

डा. असग़र अली इंजिनियर, संजीव कुलकर्णी, श्री श्री रविशंकर की संस्था आर्ट आफ लिविंग के प्रशांत, अमन वेदिका , हैदराबाद की अनुराधा और सीओवीए, हैदराबाद के मज़हर हुसैन ने भीरत की ओर से भाग लिया। आइरेनीज़ फ्रांस की ओर से मिस्टर हेनरी और पीपल्स ट्री बंग्लौर की ओर से सिद्दार्थ ने इस विचार विमर्श में सक्रिय भूमिका निभाई। नेपाल की और से नेपाल मानवाधिकार आयोग के सदस्य प्रोफेसर कपिल ने भी इसमें भाग लिया।

इस विचार सभा के कोआर्डिनेटर पीपल्स ट्री बंगलौर के सिद्दार्थ ने सभी का स्वागत किया और विचार सभा के मकसद पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया के देशों खासतौर से नेपाल, श्रीलंका और पाकिस्तान में स्थिति बहुत चिंताजनक है और धर्म इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है। हम विद्वानों, कार्यकर्त्ताओं को इसे समझना और विश्लेषण करना होगा और इस भूभाग में शांति के लिए प्रयास करने होंगे और इसलिए ये विचार सभा काफी अहम है।

आइरेनीज़ के मिस्टर हेनरी ने संगठन के मिशन को बयान करते हुए कहा कि हम लोग एशिया, अफ्रीका और लैटिनी अमेरिका समेत दुनिया भर के कई भागों में शांति के लिए काम कर रहे हैं। दक्षिण एशिया में शांति काफी अहम है क्योंकि ये आज पूरे विश्व की बहस का विषय है और ये हमारी विचार सभा की अहमियत को भी बताता है।

डा. इंजीनियर ने विचार सभा को अपने उद्घघाटन टिप्पणी से प्रारम्भ किया। उन्होंने कहा कि धर्म की भूमिका को बिना इसके सामाजिक राजनीतिक संदर्भ के समझा नहीं जा सकता है। ये समझना गलत हो जायेगा कि विवाद, धर्म की पैदावार हैं और जैसा कि कई सेकुलर लोग कहते भी हैं। विवाद और हिंसा बाहरी स्रोत से आते हैं यानि उस क्षेत्र विशेष के सामाजिक राजनीतिक स्थिति से। निजी हित रखने वाले अक्सर धर्म का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं।

पाकिस्तान इन दिनों अशांति का शिकार है और तालिबान पूरे इलाके पर अपना प्रभाव बनाने की कोशिश कर रहे है और हम इसके लिए धर्म को ज़िम्मेदार ठहराते हैं क्योंकि तालिबान शरई कानून की बात कर रहे हैं। वास्तव में शरई कानून के नाम पर जिस कानून पर तालिबान अमल कर रहा है वो उनके अपने कबायली और परम्परागत कानून हैं। इनका कुरान के सिद्धांतो और मूल्यों से कोई लेना देना नहीं है। इंजीनियर ने ये भी कहा कि इस क्षेत्र में शांति केवल तालिबान के खिलाफ जंगह का ऐलान कर देने से हासिल नहीं होने वाली है, जैसा कि अमेरिका पाकिस्तान से आशा कर रहा है और पाकिस्तान भी अमेरिकी दबाव में ऐसा कर भी रहा है।

स्वात और पाकिस्तान के दूसरे हिस्सों में शांति स्थापित करना एक मुश्किल काम होगा। तालिबान की समस्या से निपटने के लिए और क्षेत्र में शांति व स्थिरता स्थापित करने के लिए दो तरफा रणनीति अपनानी होगी। पहली और सबसे अहम ये कि अफगानी जनता अपनी खुदमुख्तारी (संप्रभुता) और आज़ादी से कभी भी समझौता नहीं करेगी। इस इलाके का इतिहास इसका गवाह रहा है। इनकी आज़ादी के साथ कोई भी खिलवाड़ अशांति को दावत देगा और यही अमेरिकी नीतियों से इस क्षेत्र में हो रहा है।

दूसरे ये क्षेत्र आशा अनुरुप तरक्की और खुशहाली से वंचित रहा है। ये देश का सबसे पिछड़ा इलाका है। इन लोगों को आधुनिकता, आधुनिक विचार और विकास के मार्ग पर लाया जाना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि विकास बुद्धि और न्याय के साथ होना चाहिए। जब तक इन दो कारको को ध्यान में नहीं रखा जायेगा तब तक इस क्षेत्र में तालिबान पर काबू पाना मुश्किल है, और इन्हे खत्म करने में कितना भी हथियार इस्तेमाल किया जाये कामयाब नहीं हो सकते हैं।

इस मौके पर पाकिस्तान के प्रोफेसर मुबारक अली ने पाकिस्तान में पाठ्यक्रम की पुस्तकों पर विस्तार से रौशनी डाली और बताया कि शिक्षा वहाँ की समस्या का एक हिस्सा बन गया है। वहाँ इन किताबों में भारत और हिंदुओं को बुरे तौर पर पेश किया जाता है और मध्यकाल और आधुनिक समय के इतिहास की कई बुराईयों के लिए ज़िम्मेदार भी ठहराते हैं। प्रोफेसर मुबारक अली पाकिस्तान के मशहूर इतिहासकार हैं।

प्रोफेसर मुबारक अली ने कहा कि धर्म और राजनीति का एक आम लक्ष्य है यानि सत्ता हासिल करना और इसे अपने मकसद के लिए इस्तेमाल करना। इसके बावजूद इसे हासिल करने के उनके तरीके अलग अलग है। सत्ता हासिल करने के लिए धर्म, धार्मिक भावनाओं को हवा देता है जबकि राजनीति डिप्लोमैसी और जनता की राय बना कर इसे हासिल करने की कोशिश करती है, अगर इसकी गुंजाइश हो तो और अगर ऐसा सम्भव नहीं होता तो फौज का इस्तेमाल करते हैं।

सत्ता के लिए संघर्ष प्राथमिक रहा है चाहे वो पाकिस्तान रहा हो या भारत या कोई दूसरा देश। लोकतांत्रिक देशों में भी सत्ता हासिल करने के लिए जनता की राय और साज़िश के द्वारा जोड़ तोड़ अब असामान्य नहीं रहा। जब तक सत्ता उद्देश्य है इसे हासिल करने के लिए धर्म, भाषा, या जाति को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहेगा और तब तक विवाद भी जारी रहेंगे। जब तक सत्ता जनता की सेवा का माध्यम नहीं बन जाता तब तक विवाद और हिंसा से निजात नहीं मिल सकती है। और जब तक सत्ता उद्देश्य रहेगा तब तक विवाद और हिंसा आम बात रहेगी।

फहमीदा रियाज़ ने अपने पेपर में कहा कि, धर्म मानव अस्तित्व के रहस्य के बारे में खोज का शायद सबसे पुराना प्रमाण है और साथ ही बेहतर सामूहिक जीवन के लिए एक संघर्ष का नाम है। धर्म ने इंसान को जीने का सलीका सिखाया और खुद पर और इस दुनिया के बारे में चिंतन से इंसान की समझ बेहतर हुई। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि धर्म काफी समस से ही निजी और सामूहिक पहचान का माध्यम रहा है। उन्होंने कट्टरता के रुझान पर भी प्रकाश डाला। ध्रार्मिक पहलू को सामने लाते हुए उन्होंने कहा कि अगर ये पार्टी सत्ता में है अगर वो धार्मिकता का समर्थन करती है तो उच्च और मध्य वर्ग के लोग माथे पर केसरिया तिलक और मस्जिदों में हाजिरी बढ़ा देते है। जब दूसरी पार्टी सत्ता में आती है तो वो इस अमल को बंद कर देते है। इस तरह धर्म सत्ता का सिर्फ एक हथियार बना रहा है।

सैय्यद जाफर अहमद ने पाकिस्तान की स्थापना के बाद से हुए विभिन्न राजनीतिक घटनाक्रमों पर विस्तार से रौशनी डाली। उन्होंने कहा कि धर्म शासन की कला है और इसे संविधान में तीन बार 1956, 1962, और 1973 में स्वीकार किया गया। सैय्यद जाफर अहमद ने कहा कि धर्म पाकिस्तान में आज भी शासन कला है। हालांकि उलमा चाहते हैं कि पाकिस्तान इस्लामी देश बने लेकिन खुद इस अशांति की ज़िम्मेदारी लेने से खुद को दूर रखते हैं और कहते हैं कि वो सीधे तौर पर पाकिस्तान में इस्लामी व्यवस्था परिचित कराने के लिए ज़िम्मेदार नहीं हैं।

आर्ट आफ लिविंग के प्रशांत ने श्री श्री रविशंकर की धर्म की समझ के बारे में रौशनी डाली। उनके मुताबिक अगर धर्म को सही ढंग से समझा जाये तो ये परिवर्तन के लिए कोई रुकावट नहीं है। वो कहते हैं कि उनकी परम्पराओं ने भी परिवर्तन के बाद ही आज का रूप लिया है। उन्होंने बताया कि रविशंकर शांति और सहिष्णुता के लिए संघर्ष कर रहे हैं और आर्ट आफ लिविंग कैम्पों के माध्यम से उन्होंने विवादग्रस्त क्षेत्रों जैसे गुजरात और यहाँ तक कि ईराक में काम किया। इसके बावजूद एक अहम सवाल पैदा होता है कि क्या हिंसा के शिकार लोगों या हिंसा करने वालों को शांति का पाठ पढ़ाना काफी था?

भारत के धारवाड़ के संजीव कुलकर्णी ने संघ परिवार और हिंदू मुस्लिम विवाद की उसकी राजनीति की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि ये संघ परिवार ही है जिसने अपने राजनीतिक लाभ के लिए राम की छवि को मर्यादा पुरुषोत्तम से एक योद्धा राम की बना दी। राजनीतिक उद्देश्यों को हासिल करने के लिए ये लोग धर्म का गलत इस्तेमाल कर सत्ता में आ गये। संघ परिवार के ज़रिए हिंदू धर्म उपनिषदों में दर्ज एक उच्च जीवन पद्धति से सत्ता हासिल करने के लिए भावनात्मक हथियार बना दिया गया।

 

पीपल्स ट्री बंग्लौर के सिद्धार्थ का खयाल था कि इस रुझान के खिलाफ पहले भी हिंदू धर्म में चोखा मेला, कबीर और एकनाथ जैसे लोगों ने सांस्कृतिक आंदोलन चलाये और आज उन आंदोलनों को फिर से जीवित करने की ज़रूरत है। उन्होंने बहुत से हिंदू भक्ति से ज़ुड़े संतो का हवाला दिया और कहा कि अगर हम उनकी परम्पराओं पर चलेंगे तो समाज से जाति सम्प्रदाय के भेद भी खत्म हो जायेगा। उन्होंने कहा कि ये सभी आंदोलन हिंदू धर्म की व्यापकता और दूसरों को साथ लेकर चलने पर ज़ोर देते थे। उन्होंने कहा कि अद्वैत की कल्पना आलमगीर खयालात को बढावा दे सकता है। डा. इंजीनियर ने सूफी परम्परा में वहदतुल वजूद के दर्शन की ओर इशारा किया जो इसी प्रकृति में आलमगीर है।

सीओवीए, हैदराबाद के मज़हर हुसैन ने कहा कि हमें संघ परिवार के प्रति अपने नज़रिये के लिए प्रतिमान बदलने होगें और पहचान की राजनीति से विचारों की राजनीति के प्रतिमान को अपनाने की ज़रूरत है। वर्तमान समय के भारत की राजनीति विवादों और पहचान की राजनीति है और पुराने समय के सिद्धांतो पर आधारित राजनीति जो आज़ादी के कुछ सालों बाद तक कांग्रेस अपनाए हुए थी, वो अब खत्म हो चुकी है। धर्म और जाति सम्प्रदाय की राजनीति को सेकुलर और समाजवादी विचारों की राजनीति से बदला जाना चाहिए और यही इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बल प्रदान करेगी।

मिस अनुराधा ने दलितों के बीच किये गये अपने काम के अनुभवों के आधार पर एक दलित की कहानी बतायी जिसने अपनी बीवी की ज़िद पर एक हिंदू देवता की मूर्ति अपने घर में स्थापित की और इसके बाद उसे ज़िंदगी में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसे बड़े जानवरों के मांस को खाना बंद करना पड़ा और वो मुश्किल से ही बकरे और मुर्गे का प्रबंध कर सकता था। उसने सूखे के दिनों के लिए सुखाये गये मांस पर बड़ी मुश्किल से गुज़ारा किया और एक दिन एक खास हिंदू त्योहार के मौके पर उसके घर मूर्ति लायी गयी और उसे अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रखे धन में से इस त्योहार के लिए चंदा देना पड़ा और इस तरह उसके घर में धर्म शांति के बजाय विवाद का कारण बन गया। उन्होंने कहा कि गरीबों के लिए इस तरह की धार्मिक परम्पराओं पर भी विचार होना चाहिए। उन्होंने सेकुलरिज़्म को बढ़ावा देने में महिलाओं की भूमिका पर भी प्रकाश डाला और कहा कि इस उद्देश्य के लिए उन्होंने महिलाओं को संगठित किया है।

विचार सभा में पढ़े गये ऐसे सभी पेपरों के बाद हुए विचार विमर्श में ऐसा बहुत कुछ था जिसे स्थान की कमी की वजह से यहाँ नहीं दिया जा सकता है। ये कहना काफी होगा कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए धर्म की भूमिका पर हुई ये विचार सभी काफी लाभदायक थी।

 लेखक इस्लामी विद्वान हैं और सेंटर फार स्टडी आफ सोसाइटी एण्ड सेकुलरिज़्म,मुम्बई के प्रमुख हैं।

URL for English article: https://newageislam.com/debating-islam/religion-source-conflict-resource-peace/d/1410

 

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http://www.newageislam.com/urdu-section/religion,-a-source-of-conflict-or-the-means-of-peace--مذہب-تنازعات-کا-ذریعہ-یا-امن-کا-وسیلہ/d/6228

 

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