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Hindi Section ( 13 Apr 2012, NewAgeIslam.Com)

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Islam and The Concept of Justice इस्लाम और इंसाफ का तसव्वुर


असग़र अली इंजीनियर

(अंग्रेजी से अनुवाद - समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

पिछले महीने वियना में बहुसंस्कृतिवाद और धार्मिक बहुलता पर एक सेमिनार था। दूसरे मुद्दों के अलावा एक बहस इंसाफ के तसव्वुर पर आयोजित की गई थी। इंसाफ क्या है,  इस पर सवालात किए गए,  और प्रतिभागियों ने अपनी राय दी थी।

प्रतिभागियों में दार्शन, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र के प्रोफेसरों के साथ धार्मिक और अधिकारों के लिए काम करने वाले सक्रिय कार्यकर्ता शामिल थे। ये एक दिलचस्प बहस थी लेकिन इंसाफ क्या है,  आमतौर पर वहाँ इस पर कोई सहमति नहीं थी। मैंने भी अपनी राय दी और कहा कि प्लेटो ने हमारे लिए उस बहस को दर्ज किया है जो सुकरात और उनके नौजवान शागिर्दों के बीच इंसाफ (न्याय) पर हुई थी और वो लोग जब कोई संतोषजनक परिभाषा नहीं दे सका, तो उन्होंने (सुकरात) ने ये नतीजा निकाला कि इंसाफ वो है जो ताकतवर को लगता है कि इंसाफ है और प्रसिद्ध कहावत है कि जिसकी लाठी उसी की भैंस।

सुकरात की ओर से पेश की गई इंसाफ की इस परिभाषा में आज तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, क्योंकि इंसाफ का दुनिया में बोलबाला है। यहां तक ​​कि 21वीं सदी में भी ताकतवर ही फैसला करता है कि इंसाफ क्या है। अमेरिका आज दुनिया में सबसे ताकतवर देश है और अगर अमेरिका फैसला करता है कि इंसाफ इराक या अफगानिस्तान पर हमला करने में निहित है,  तो पूरी दुनिया उसे न्यायपूर्ण कार्रवाई के रूप में पुष्टि करती है। यहां तक ​​कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद लगभग सर्वसम्मति से इसका समर्थन करता है।

विरोध की कुछ आवाज़ों को प्राकृतिक रूप से अनदेखी की जाती है। हमारी आधुनिक और सभ्य दुनिया इंसाफ की पुरानी परिभाषा से एक सेंटीमीटर भी आगे नहीं बढ़ी है, इसके बावजूद दुनिया में आज इंसाफ को सबसे महत्वपूर्ण मूल्य के रूप में माना जा रहा है। लेकिन क्या हमें आज भी सुकरात की परिभाषा के साथ रहना चाहिए, जबकि हम इसका दावा करते हैं कि हमने बहुत तरक्की कर ली है? सिर्फ कमजोर वर्ग ही इंसाफ हासिल करने का सपना देख सकते हैं, या वो कभी इंसाफ भी हासिल कर सकेंगे?

इस्लाम में इंसाफ सबसे बुनियादी मूल्य है,  ये अल्लाह के नामोंमें से एक की ओर इशारा करता है। अल्लाह का नाम आदिल है। कुरान बार बार इंसाफ पर जोर देता है और यहां तक ​​कहता है कि इंसाफ तक़वा के सबसे करीब है और इसी तरह "इंसाफ करने" का आदेश देता है,  क्योंकि यह तक़वा के सबसे नजदीक है। लेकिन हमारे बहुत से फुकहा (धर्मशास्त्री) का मानना ​​है कि तक़वा सिर्फ नमाज अदा करने और रोज़ा रखने में है, चाहे इसके परिणामस्वरूप तक़वा का इज़हार बर्ताव में होता हो या नहीं। इन लोगों का कहना है कि सभी इस्लामी कानून सबसे अधिक न्यायपूर्ण हैं लेकिन दूसरों की ही तरह इंसाफ की परिभाषा पर मतभेद रखते हैं।

मिसाल के तौर पर इंसाफ और कई बीवियों के सवाल को ले लें। कुरान एक से अधिक शादी की इजाज़त देता है, लेकिन आयत 4:3 जोर देकर कहती है कि, "फिर अगर तुम्हें अंदेशा हो कि तुम (जायद बीवियों में) अद्ल नहीं कर सकोगे तो सिर्फ एक ही औरत से (निकाह करो)"। ये अलग बात है कि हमारे फुकहा के लिए तादाद (चार बीवियाँ) इंसाफ से ज़्यादा अहम हैं, जिस पर कुरान वास्तव में जोर देता है। आमतौर पर जब एक आदमी एक से अधिक शादी की बात करता है तो इस सूरत में सिर्फ यही मालूम किया जाता है कि उसकी चार से अधिक बीवियों से कम हैं और ये सवाल नहीं होता कि उनके बीच इंसाफ करने के वो काबिल होगा या नहीं।

इसके अलावा, अगर इस संबंध में कोई जांच होती भी है तो सवाल उठता है कि बीवियों के बीच इंसाफ वाला रवैय्या क्या है?  आमतौर पर इसे समान भरण पोषण माना जाता है और सभी पत्नियों को बराबर से समय देना 'इंसाफ'  माना जाता है। लेकिन इस तसव्वुर पर कोई इत्तेफाक़ (सहमति) नहीं है। मोतज़िलह फुकहा (जो तर्कवादी माने जाते हैं) के अनुसार बराबर भरण पोषण और समय देने का मतलब इंसाफ नहीं है और आयत 4:129 के अर्थ के अनुसार बराबर प्यार भी जरूरी है जो इंसानी तौर पर मुमकिन नहीं है।

इंसाफ करने में संदर्भ भी भूमिका निभाता है। ये सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और किसी के सामाजिक ढांचे पर निर्भर हो सकता है। मिसाल के लिए, एक कबायली समाज में बराबर की कार्रवाई को इंसाफ मिलना माना जाता है। कुरान उसे किसास कहता है, क्योंकि अरब समाज संरचना में कबायली था, ये ऐलान करता था कि जिंदगी जबावी कार्रवाई (बराबर माप में) आधारित है। कई फुकहा संदर्भ की अनदेखी करते हैं और इसे इंसाफ के एक अनन्त सिद्धांत के रूप में ऐलान करते हैं। अगर हम संदर्भ की अनदेखी करते हैं तो इंसाफ नाइंसाफी बन सकता है। आजकल जब मानव अधिकार और सम्मान महान अहमियत वाले बन गये हैं,  इस तरह की कबायली जवाबी कार्रवाई नाइंसाफी होगी।

हमारी राय ये नहीं होनी चाहिए कि कुरान इंसाफ के अनन्त सिद्धांत के रूप में जवाबी कार्रवाई का ऐलान करता है। बिल्कुल भी नहीं। कई इस्लामी विद्वानों इस पर जोर देते हैं कि ये कबायली समाज के संदर्भ में था,  और एक स्वीकृत सिद्धांत के रूप में कुरान ने इसकी मंजूरी दी है,  वरना इस्लाम माफ करने को अधिक उच्च सिद्धांत मानता है और मोमिनों को किसास पर ज़ोर न देने की हिदायत देता है। तब से अधिकांश इस्लामी देशों ने बदला लेने की अमल के कानून को समाप्त कर दिया है और इंसान के सम्मान  के आज के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए सजा के अन्य प्रकारों को अपनाया है। इस तरह कह सकते हैं कि संदर्भ इंसाफ देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यही वजह है कि जबकि सिद्धांतों और मूल्यों में कोई परिवर्तन नहीं होता लेकिन कानून लगातार रूप से इस तरह से तैय्यार किए जाते हैं कि जहां तक ​​संभव हो वह अनन्त सिद्धांतों और मूल्यों के करीब हों। पुराने ज़माने के कई कबायली समाज आज के आधुनिक लोकतांत्रिक समाज में बदल गए हैं और इस तरह कबायली समाज के लिए बनाए गए कानून स्थायी नहीं रह सकते हैं और अगर कोई इस पर आग्रह करता है,  जैसा कि बहुत से फुकहा अक्सर करते हैं तो इसके परिणामस्वरूप वो अत्याचार में बदल जाएंगे और कुरान के बहुत ही बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन करेंगे। और आज यही बहुत से मुस्लिम समाज में बड़े पैमाने पर लिंग के आधार पर नाइंसाफी का कारण बन रहा है।

पहले बनाए गए इन कानूनों के मुकाबले में बुनियादी सिद्धांतों और मूल्यों बहुत महत्वपूर्ण है जब इंसाफ का तसव्वुर आज से बहुत अलग था। अतीत में समाज के कमजोर वर्गों के साथ इंसाफ पाने के मामले में बहुत अलग तरीके से बर्ताव किया जाता था लेकिन आज ये अशोभनीय और मानव अधिकारों और मानव गरिमा के सिद्धांत के खिलाफ माना जाएगा। आज अगर हम लैंगिक न्याय करना चाहते हैं तो बहुत से पुराने नियम की फिर से जाँच की जानी होगी क्योंकि वो आज के इंसाफ के आधार पर नाइंसाफी बन गये हैं।

इस तरह समय के साथ इंसाफ की कल्पना भी विकास पाती है,  हालांकि आज भी सबसे ताकतवर को ये लग सकता है कि जो कुछ वो मानता है कि इंसाफ है,  वास्तव में इंसाफ है।

असग़र अली इंजीनियर इस्लामी विद्वान हैं और सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सेकुलरिज़्म एण्ड सोसाइटी,  मुंबई के प्रमुख हैं।

स्रोतः डॉन, कराची

URL for English article: https://newageislam.com/islamic-ideology/islam-concept-justice/d/7010

URL fir Urdu article: https://newageislam.com/urdu-section/islam-concept-justice-/d/7046

URL fir this article: https://newageislam.com/hindi-section/islam-concept-justice-/d/7055


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