असद मुफ्ती,एम्सटर्डम (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
फ्रांसीसी सरकार के अनुसार सभी सार्वजनिक स्थानों पर बुर्के पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गयी है। फ्रांस की संसद ने बुर्के पर रोक और पाबंदी लगाने वाले कानून को भारी बहुमत से पास कर लिया है। फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोज़ी ने कहा है कि बुर्के के लिए इस्लाम में जगह हो तो हो लेकिन फ्रांस में कोई जगह नहीं है। खबर ये है कि सार्वजिनक स्थल पर बुर्का पहनने वाली औरतों के देखे जाने पर सात सौ पौण्ड जुर्माना लिया जायेगा और बीवी, बहन, बेटी, माँ या परिवार की अन्य महिलाओं को जबरदस्ती बुर्का पहनने के लिए मजबूर करने वाले मर्द को पन्द्रह सौ पौण्ड जुर्माना देना होगा।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति सरकोज़ी ने संसद में अपने भाषण में कहा कि (ऐलान किया है) बुर्का पहनने वाली औरतों के अधिकार छीनने की पालिसी पर अमल करना चाहिए और बुर्का पर पाबंदी के लिए फ्रांस की संसद मुबारकबाद के काबिल है। फ्रांस में मुसलमानों की आबादी साढे पांच मिलियन है, जो कि यूरोपी देशों में सबसे ज़्यादा बताई जाती है। मुसलमानों की आबादी के लिहाज़ से ब्रिटेन दूसरे नम्बर पर आता है। फ्रांसीसी सड़कों पर इन दिनों पूरी तरह हिजाब, बुर्का या स्कार्फ जलबाब में मुस्लिम महिलाएं नज़र आती हैं। उधर फ्रांस के मुस्लिम लीडरों ने ऐलान किया है कि इस्लाम में महिलाओं के लिए नकाब या बुर्का आवश्यक नहीं हैं। पेरिस की एक मस्जिद के इमाम हसन चलफोमी जो विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव की बातचीत के सिलसिले में अहम रोल अदा करते रहे हैं, महिलाओं के पूरी तरह हिजाब या बुर्के पर पाबंदी के लिए बनाये गये फ्रांसीसी कानून का पूरी तरह समर्थन करते हैं। इमाम हसन चलफोमी जिस मस्जिद से सम्बंधित हैं वो उत्तरी फ्रांस के उपनगरीय इलाके में है और ज़्यादातर मुसलमान इसी इलाके में रहते हैं। इमाम हसन चलफोमी ये भी कहते हैं कि जो महिलाएं अपने चेहरों को हिजाब से ढांकना चाहती हैं वो सऊदी अरब या अन्य किसी अरब देश को चली जायें, जहाँ इस तरह के हिजाब की परम्परा है।
कहते हैं कि जब किसी कौम या गिरोह का तथाकथित सांस्कृतिक या धार्मिक प्रतिष्ठा खतरे में पड़ जाती है, तो वो और उसकी प्रतिक्रिया भावनात्मक हो जाती है, आज ऐसा ही कुछ पश्चिमी देशों में रह रहे मुसलमानों के साथ हो रहा है। पश्चिम के विश्वास और शिक्षाओं के विरोधी मुसलमानों के धार्मिक लीडर काफी समय से औरतों को पर्दे में रखने और उसे मर्द के बराबर रुत्बा न देने की वकालत करते रहे हैं। ये ब्रेन वाशिंग विश्वास और विचारधारा ज़्यादातर पश्चिम, मध्य व दक्षिण एशिया से आये हैं और पश्चिम में तंगनज़री के प्रचार के लिए दरअसल यही मज़हबी रहनुमा ज़िम्मेदार हैं और जिनका कोई कुरानी आधार नहीं है। ये विचारधारा दरअसल इस्लाम के कुछ कट्टरपंथी सम्प्रदाय का दुष्प्रचार है।
इधर ब्रिटेन में ‘एण्टी इक्स्ट्रीमिस्ट थिंक टैंक’ के बुद्धीजीवियों ने कहा है कि महिलाओं के बुर्का पहनने पर पाबंदी होनी चाहिए। उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोज़ी की इस नीति का खुल कर समर्थन किया है कि महिलाओं को बुर्के की कैद से आज़ाद होना चाहिए। ब्रिटेन के आधुनिक विचारधारा वाले मुसलमानों ने इस आंदोलन का समर्थन करते हुए इस ओर संकेत किया है कि इस्लामी शिक्षा में बुर्का का कोई औचित्य नहीं है। आधुनिक यूरोप में बुर्का पहनना किसी भी दृष्टिकोण से ज़रूरी नहीं है। ब्रिटेन के अखबार डेली एक्सप्रेस के अनुसार थिंक टैंक के पदाधिकारी गफ्फार हुसैन ने कहा कि बुर्का पहनने से महिलाओं को ऐसी नौकरियोँ के मौके सीमित हो जाते हैं जो वो आसानी से कर सकती हैं। उन्होंने दावा किया है कि रुढ़िवादी मुसलमान कुरान की गलत व्याख्या करते हैं और उनकी वजह से औरतें पर्दे के पीछे नापसंदीदा जिंदगी जीने को मजबूर हो जाती हैं। यहाँ ये भी बताना ज़रूरी है कि डेली एक्सप्रेस के पोल में 98 फीसद जवाब देने वालों ने ब्रिटेन में बुर्का पर पाबंदी लगाने का समर्थन किया है।
सीनियर डाइरेक्टर डगलस मरे ने उपस्थित लोगों से खिताब करते हुए कहा कि बुर्का पहनने के लिए मजहब को इस्तेमाल करने की दलील को बोगस करार दिया है। कुरान में ऐसी कोई बात नहीं है जो महिलाओं को ‘काली बोरी’ में बंद करने को जायज़ करार दे, उन्होंने कहा है कि इस सिलसिले में सुरक्षा की शंकाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। अभी हाल ही में लंदन का एक नाकाम आत्मघाती बुर्का पहन कर फरार हो गया था। इराक के ‘सालिडेरिटी यू.के.’ के लीडर हसन अलअल्क ने जो डेढ़ हज़ार इराकियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने कहा कि बुर्का कट्टरपंथ की निशानी बन गया है। रेगिस्तान में कबीलाई लोग खुद को रेतीले तूफान से बचाने के लिए इस तरह के लिबास पहनने के लिए मजबूर हैं, लेकिन यूरोप में ऐसा परम्परागत लिबास पहनने की कोई ज़रूरत नज़र नहीं आती है। ऐसी महिलाएं पाबंदी का समर्थन करती हैं जो पैदाइशी रूप से मुसलमान नहीं बल्कि सोच विचार के बाद मुसलमान हुए हैं। मेरे अनुसार बुर्का औरतों को अकेला कर देता है, ये मज़हब की नहीं बल्कि औरतों की गुलामी की निशानी है। ये कोई पहला मौका नहीं है जब बुर्का विवाद का कारण बना हो, कुछ साल पहले ब्रिटेन के मंत्री जैक स्ट्रॉ ने अपने वोटरों से कहा था कि वो खुद को बुर्के के पीछे रखना छोड़ दें।
बुर्का और हेड स्कार्फ पहले भी कई यूरोपी देशों में विवाद का कारण बना है। इटली ने 2005 में इण्टी टेरेरिज़्म कानून के तहत बुर्के पर पाबंदी लगा थी। तुर्की ने स्कूलों, कालेजों, युनिवर्सिटियों और दफ्तरों में हेड स्कार्फ पर रोक लगा दी थी। बेल्जियम के पांच शहरों और जर्मनी के नौ राज्यों में हेड स्कार्फ पर पाबंदी पहले से लगी है। अब जबकि फ्रांस ने बुर्के पर पूरी तरह पाबंदी का कानून पास कर लिया है, तो मेरे अनुसार पूरे यूरोप में इसका प्रभाव पड़ना लाज़मी है।
उधर तथाकथित शांतिपूर्ण धर्म की दावत देने वाली कौम के एक गिरोह अलकायेदा की उत्तरी अमेरिकी शाखा ने मुस्लिम महिलाओं के लिबास के खिलाफ ‘जंग’ छेड़ने पर फ्रांसीसी सरकार से बदला लेने की धमकी दी है।
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