आरिफ़ अज़ीज़
21 जून, 2013
इस दुनिया के परवरदिगार की रहमत के मौसमे बहार (वसंत) की शुरुआत शाबान महीने से होती है। इसके बाद रमज़ान का वो पवित्र महीना आता है जिस में नेकियों के फूल खिलते हैं और खुदा की रहमत की ज़बरदस्त बारिश होती है। ईदुल फितर और आखीर में ईदुल अज़हा का वो बरकतों वाला महीना आता है जिनमें खुशी के जाम छलकते हैं।
रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की हदीस से मालूम चलता है कि रमज़ान के बाद अगर किसी महीने का स्थान है है तो वो शाबान है और शबे क़दर के बाद किसी रात की फज़ीलत और अहमियत है तो वो पन्द्रहवीं शाबान की रात है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का इरशाद है-
''शाबान को दूसरे महीनों पर ऐसी फज़ीलत है जैसे मुझे दूसरे नबियों पर और रमज़ान की फज़ीलत दूसरे महीनों पर ऐसी है जैसे खुदा की फज़ीलत बंदों पर। एक दूसरी हदीस में पैगंबरे इस्लाम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने फरमाया: ''ऐ! लोगों तुम जानते हो कि इस महीने का नाम शाबान क्यों रखा गया। लोगों ने कहा अल्लाह और उसके रसूल ही बेहतर जानते हैं। इस पर आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया, ''इसलिए कि इसमें नेकियाँ बहुत होती हैं। ख़ुदा की गैरमामूली (असाधारण) नेमतें और बरकतें हर तरफ फैलती हैं।''
हज़रत यह्या बिन मआज़ रज़ियल्लाहू अन्हू का मानना है कि, ''शाबान में पांच अक्षर हैं और और इसके हर अक्षर के मुकाबले में मोमिन को एक अतिया (उपहार) मिलता है। शीन से शर्फ़ (सौभाग्य), ऐन से इज़्ज़त (सम्मान), ब से बक़ा (अस्तित्व), बशारत और बरकत, अलिफ से उल्फ़त और नू से नूर की बख्शिश होती है। इसलिए कहा गया है कि रजब का महीना जिस्म को पाक (शुद्ध) करने, शाबान दिल को पाक करने व रमज़ान रूह को पाक करने के लिए है। रजब के महीने में जिस्म को पाक करने वाला, शाबान में दिल को शुद्ध कर लेने वाला, रमज़ान में रूह को पाक कर लेता है। इसलिए जिसने रजब के महीने में शरीर और शाबान में दिल को पाक न किया वो रमज़ान में रूह को पाक नहीं कर सकता। इसी शाबान की पंद्रहवीं रात को शबे बरात या लैलतुल बरात कहते हैं। बरात का शाब्दिक अर्थ पाक (शुद्ध) होने या दूर होने के हैं और क्योंकि इसी रात में अल्लाह बंदों से कहता है, '' कोई है मग़फिरत (माफी) चाहने वाला जिसे मैं बख्श दूँ, कोई है रोज़ी का तलबगार जिस पर मैं रोज़ी के दरवाज़े खोल दूं, कोई है बीमार जिसे सेहत और तन्दुरुस्ती से नवाज़ दूँ।''
अस्र की नमाज़ को अगर सलातुल वुस्ता कहा जाता है तो इस रात को लैलतुल वुस्ता कह सकते हैं, क्योंकि ये रात शबे मेराज और शबे क़दर के बीच है और रात की तरफ खुदा के कलाम में जिक्र है, ''हमने इस किताबे रोशन को लौहे महफ़ूज़ से आसमाने दुनिया पर एक बरकत वाली रात में नाज़िल किया, क्योंकि हम तो डराने और रास्ता दिखाने वाले हैं, इसी रात में सालाना मामलों उम्र और रिज़्क़, मौत व ज़िंदगी आदि हमारी तरफ से तज्वीज़ (प्रस्तावित) किए जाते हैं, हम इस शब (रात) अपनी खास रहमत भेजते हैं, इस शब में जो कुछ जिक्र होता है उसे हम सुनते हैं और जो हालात सादिर होते हैं उन्हें हम जानते हैं'' सूरे दखान की इस आयत से हज़रत अकरमा रज़ियल्लाहू अन्हु और दूसरे टिप्पणीकर्ताओं ने शबे बरात ही का मतलब लिया है। हज़रत अता बिन यसार रज़ियल्लाहू अन्हू से रवायत है:
''जब शबे बरात होती है तो एक सहीफा (ग्रंथ) मल्कुन मौत के हवाले किया जाता है और अल्लाह का हुक्म होता है कि इस सहीफे में जो नाम दर्ज हैं उनकी रूह इस साल क़ब्ज़ कर लें। फिर बंदा दरख्त (पेड़) लगाता है और पौधे उगाता है औरतों से निकाह करता है, मकान बनाता है, हालांकि उसका नाम मरने वालों की सूची में दर्ज होता है। हज़रत अबु हुरैरा रज़ियल्लाहू अन्हू रवायत करते हैं कि हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के पास आए और कहा कि, ''इस रात में आसमान और रहमत के दरवाज़े खुलते हैं। आप उठकर नमाज़ पढ़िए। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने सवाल किया, ये कैसी रात है? हज़रत जिब्रईल अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया, ''इस रात में रहमत के तीन सौ दरवाज़े खुलते हैं और मुशरिक (खुदा के साथ किसी को शामिल करने वाल) के अलावा सबकी मगफिरत हो जाती है, लेकिन जादूगर, बुराई करने वाला, शराबी, बलात्कारी, सूदखोर और माँ बाप की नाफरमानी करने वाला, चुग़लखोर और रिश्ते तोड़ने वालों की उस वक्त तक माफी नहीं होती जब तक कि वो तौबा (पश्चाताप) न कर लें।''
इरशादे नब्वी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम है:
''शाबान मेरा महीना है'' जब शाबान महीने की शुरूआत होती है तो आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम इबादत और सखावत (उदारता) पर विशेष बल देने को कहते हुए चेतावनी देते कि इस महीने की फज़ीलत से लोग लापरवाह न रहें , ये महीना रजब और रमज़ान के बीच है और इसमें बंदों के आमाल (कर्म) को खुदा की तरफ उठाए जाते हैं, इसलिए मैं चाहता हूँ कि मेरे आमाल को रोज़ेदार की हालत में उठाए जाएं।'' एक और हदीस में है कि, ''ख़ुदा शाबान की पंद्रहवीं रात में आसमाने दुनिया पर जलवा अफ़रोज़ होता है और मुशरिक और बिदअती (नवाचार करने वाला) के अलावा सब की मगफिरत फरमा देता है।'' हज़रत अली कर्मल्लाहू वजहू से रवायत है, हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि, ''जब शाबान की पंद्रहवीं रात आ जाए तो रात में जागो, दिन में रोज़ा रखो, ख़ुदा इस रात को सूर्यास्त से ही आसमाने दुनिया पर नाज़िल होकर बख्शिश व अता का दरवाज़ा खोल देता है जो सूर्योदय तक खुला रहता है।''
हज़रत आयेशा रज़ियल्लाहू अन्हा फरमाती हैं कि, ''क़यामत के दिन सब लोग भूखे होंगे लेकिन नबी अलैहिमुस्सलाम और उनके ताबेईन तथा रजब व शाबान और रमजान के रोज़े रखने वालों को भूख और प्यास न होगी। इस रात में रसूले अकरम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने कब्रिस्तान तशरीफ़ ले जाकर मर्दों के लिए मग़फिरत की दुआ फरमाई है। यानि शाबान का महीना इबादत, नमाज व ज़िक्र और सदक़ा (दान) का महीना है, खास तौर से इसकी पंद्रहवीं रात- शबे बरात, तौबा (पश्चाताप), मग़फिरत (क्षमा), नमाज व ज़िक्र और सदक़ा व खैरात की रात है। इसमें अल्लाह के फरिश्ते नाज़िल होते हैं, बख्शिश व रिज़्क बाँटे जाते हैं, इसलिए रात में विभिन्न प्रकार की इबादत , नमाज, तिलावत और ज़िक्र व दुआ में लगे रहना बेहतर है। 14 शाबान को अस्र की नमाज़ के बाद 40 बार अस्तग़फार पढ़ने से कबीरा गुनाह माफ हो जाते हैं। इस रात मग़रिब की नमाज़ के बाद गुस्ल (स्नान) करना, सुरमा लगाना, दाहिनी आंख में तीन बार और बाईं आंख में दो बार, रात में जागना, कुरान मजीद पढ़ना, दुआ, अस्तग़फार, दरूद शरीफ वगैरह में वक्त लगाने से सवाब मिलता है। इसी तरह रात में सात बार सूरे हा-मीम और सूरे दुखान पढ़ने से सत्तर हाजते (आवश्यकताए) पूरी होती हैं। तीन बार सूरे यासीन पहली बार दीर्घायु के इरादे से, दूसरी बार रिज़्क को बढ़ाने के लिये और तीसरी बार मगफिरत और बख्शिस के लिए पढ़ना चाहिए। रात के पिछले पहर तहज्जुद की बारह रिक्अत, दो दो रिक्अत कर के अदा करना और सलातुत तस्बीह पढ़ना और रात भर नीचे लिखी दुआ को पढ़ने से खैर व बरकत होती है।
अल्लाहुम्मा इन्नका अफूवन तोहिब्बुल अफूरों फाफो अन्नी या करीम
इस पवित्र रात में आतिशबाज़ी, बेजा रौशनी और दूसरी रस्मों से बचना चाहिए और रात का एक एक लम्हा जो बहुत कीमती है इबादत और दुआ में लगाना चाहिए। इस रात अपने दैनिक काम काज में समय बिताना, कब्रिस्तानों के बाहर भीड़ लगाना, होटल में बैठ कर समय बर्बाद करना भी सही नहीं है, क्योंकि ये वो रात है जब खुदा की रहमत जोश में आ जाती है और खुदा माफ करने के लिए अमादा होता है बंदो की मौत और ज़िंदगी और उनके मिलने वाले रिज़्क के फैसले होते हैं। इसलिए रात भर खुदा की बारगाह में पूरे ध्यान से हाज़िर रहना और दुआ क़ुबूल होने की पूरी नीयत के साथ खुदा के दरबार में दुआएं माँगनी चाहिए।
अल्लाह का अपने बंदों पर ये बड़ा फ़ज़ल और करम है कि साल के कुछ दिनों और रातों की फज़ीलत इतनी बढ़ा दी है ताकि उसके बंदे खुदा के आदेशों के पालन और माफी माँगने में मुकाबला करें। इसलिए पूरे साल में पांच रातें ऐसी पवित्रता वाली हैं जिनमें दुआएँ कबूल की जाती हैं। रजब की पहली रात, शबे बारात, शबे क़दर, ईदुल फितर की रात और ईदुल अज़हा की रात इसमें शामिल हैं। इन्हीं रातों से ये मुबारक रात भी है जिसमें अल्लाह अपना रहमत और मग़फिरत के दरवाज़े हर खास व आम के लिए खोल देता है।
रात के पिछले पहर की कोई बाध्यता नहीं है, हर शाम ही अल्लाह का मुनादी आम रहमत की सदाएं लगाने लगता है। इसलिए आज की मुबारक रात हम उम्मत के गुनहगारों के लिए एक नेमत (वरदान) से कम नहीं। हमें खुदा के सामने सिर झुकाकर, और दुआ के लिए हाथ बढ़ाकर पूरी तन्मयता के साथ अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए और वो सब माँगना चाहिए जिसके हम वास्तव में मोहताज हैं, क्योंकि ये कोई नहीं जानता कि अगले साल उसे ये रात मिलेगी या नहीं। नबी पाक अलैहिस्सलाम का उम्मत पर ये एहसान है कि उन्होंने इस ज़िक्र के साथ उम्मत को आगाह किया और इस तरह एक पवित्र रात से लाभान्वित होने का उम्मत को मौका पहुंचाया।
हुज़ूर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने इस पवित्र रात के फज़ाएल (गुण) और वास्तविकताओं से अवगत कराते हुए, इस रात नमाज़ पढ़ने, इबादत करने और मरहूम लोगों के लिए मग़फिरत की दुआ के लिए कब्रिस्तान जाने की ताकीद फ़रमाई है और दूसरे दिन रोज़ा रखने की फज़ीलत भी बयान की है इसलिए हम उम्मतियों के लिए आप सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की इन्हीं शिक्षाओं पर अमल करना ज़रूरी है। अल्लाह हम सबको इस पर अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए। अमीन
21 जून, 2013 स्रोत: रोज़नामा उर्दू टाइम्स, मुंबई
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