अनिस फैज़
हिन्दू मुस्लिम हजारो साल की ऐसी खाई जो पटने का नाम ही नही ले रही है,दोनो के विचार मेल नही खाते,दोनो की संस्कृति मेल नही खाती और दोनो का दिल मेल नही खाता.हजारो साल से दोनो एक दुसरे के ईश्वर को गाली देते चले आ रहे है,दरअस्ल हम समझ नही पाते कि एक ही ईश्वर की इबादत सब लोग करते है,और जिसे गाली दी जाती वह सिर्फ एक ईश्वर है.
ग्यारहवी शताब्दी में अरब मुसलमानो का भारतीय भूभाग के सिंध नदी के आस पास आक्रमण हुआ,जहां इन्होने सत्ता स्थापित की.'आप स.अ.व. से लेकर अब तक तकरीबन ५-६ सौ साल हो चुके थे,एक स्पष्ट और आखिरी मजहब मुसलमानो के हाथ मे था,जीवन के हर सवाल का स्पष्ट जवाब था,सत्ता का बेहतरीन दर्शन था इस्लाम,इंसाफ का शानदार संदेश था और गैर मुसलमान के लिए इज्जत का स्पष्ट आदेश था.जब अरबो का भारतीय समुदाय से सामना हुआ तो उन्होने मुर्ति उपासना की परम्परा को पाया,वही इस्लाम में मुर्ति पुजा वर्जित थी.मुर्ति पुजा अरब शासको को नागवार लगी क्यूकि कड़े संघर्ष के बाद अरब की बुतपरस्ती का खात्मा हुआ था.और इसी वजह से अरब शासको ने भारतीय समुदाय पर मुर्ति पुजा को लेकर कड़ी आपत्ति जाहिर की,लेकिन वो भारतीय मुर्ति पुजा को समझ नही पाये,उन्होने भारतीय मुर्ति पुजा को अरब मुर्ति पुजा के समानान्तर समझा जबकि अरब की मुर्ति पुजा टोटल आडम्बर थी,जहॉ मुर्ति पेड़,पत्थर,सुरज,चॉद और उनके पुर्वजो के होते थे.और मान्यता थी कि यही ईश्वर है.इन्ही की उपासना से सारे धार्मिक कार्यक्रम तय होते थे.जहॉ अरब मे मुर्ति ही ईश्वर था वही भारत मे मुर्ति ईश्वर का प्रतीक था.भारत की मुर्ति पुजा ब्रम्हा,विष्णु,महेश पर आधारित थी,जो ब्रम्हाण्ड के कर्ता धर्ता थे,ब्रम्ह ही ईश्वर थे,वो ईश्वर जो निराकार था.भारतीय हिन्दू समुदाय मुर्ति को ईश्वर का प्रतीक मानता था,मुर्ति हिन्दू समुदाय की प्रतीकात्मक परम्परा थी.वेद,एक विशिष्ट और प्राचीन शाष्त्र था.
जो सम्प्रदाय यह जानता था कि ईश्वर एक है,सृष्टि से जो परिचित था,प्रकृति से जिसे प्रेम था,उसे यह कहना कि वह गलत धर्म का उपासक था मेरी समझ से परे है.पुरी दुनिया के अलग-अलग जगहो पर अलग-अलग जीवन शैली थी,अलग भाषा थी,अलग कल्चर था.लोगो का दुर दुर तक एक दुसरे से वास्ता नही था.ऐसे मे ईश्वर ने पृथ्वी के हर भाग पर उसी जीवन शैली,भाषा,सभ्यता से मेल खाते हुए अपने दूत भेजे होंगे,मान लीजिए कही की भाषा संस्कृत है तो वहॉ ईश्वर का भेजा गया दूत संस्कृत का ही जानकार होना चाहिए,तभी दूत और लोगो का सामंजस्य बैठ पायेगा.इस प्रकार ईश्वर की पुजा,उसकी इबादत लाजिमी है कि अलग-अलग स्वरूपो मे होगी.
चाहिए कि हर सम्प्रदाय के लोग दुनिया के सभी धर्मो का,उसकी इबादतगाहो का सम्मान करें.खासकर मै मुस्लिम समुदाय से कहना चाहुंगा कि वह सभी धर्मो का सम्मान करे.कोई ऐसा काम नही जो हिन्दू करता है मुसलमान नही और मुसलमान करता है हिन्दू नही.सबकी जीवन प्रणाली एक है,सबको दुनिया में सुख शांति चाहिए और मरने के बाद स्वर्ग.
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