सम्पादकीय, अखबारे मशरिक (उर्दू से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा जो भारत के दौरे पर आ चुके हैं एक कीनियाई (अफ्रीका) मुसलमान बाप और अमेरिकी ईसाई माँ की औलाद है। उनके नाम में हुसैन नाम का हिस्सा इसी बात को ज़ाहिर करता है कि वो अकीदे के ऐतबार से ईसाई हैं और बाकायदा चर्च जाते हैं। बहरहाल उनकी रगों में एक मुसलमान का खून है और जिस तरह खून पूरे शरीर में दौड़ता रहता है इसी तरह मुसलमानी, ओबामा के अस्तित्व में हिलोरें लेता रहता है और वो जाने अनजाने इस्लाम का प्रचार करने वाले बन जाते हैं। भारत में अपने दौरे के पहले दिन वो मुम्बई के सेंट ज़ेवियर्स कालेज में पढ़ाई कर रहे बच्चों से मुलाकत कर रहे थे औऱ उनके सवालों का जवाब दे रहे थे, तो एक छात्रा ने इस्लाम में जिहाद की वास्तविकता के सम्बंध में उनसे सवाल किया। इस पर हुसैन ओबामा के अंदर का मुसलमान जाग उठा और उन्होंने इस्लाम की प्रमाणिकता और महानता पर एक भाषण दे दिया। भरी महफिल में उन्होंने ये स्वीकार किया कि इस्लाम दुनिया का बेहतरीन धर्म है और इस्लाम के मानने वाले शांति प्रिय हैं। इसी के साथ उन्होंने ‘जिहाद’ की भी व्याख्या की और कहा कि इसका अर्थ काफी व्यापक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस समय जिहाद की विभिन्न व्याख्या की जा रही है और कुछ लोग जिहाद के पर्दे में हिंसा को हवा देकर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।
राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने जिहाद के इस नज़रिये को खारिज करते हुए कहा कि इस तरह की मानसिकता रखने वाले लोगों को इस्लाम से अलग किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा न सिर्फ इस्लाम की महानता के कायल हैं बल्कि इस्लामी दुनिया के प्रति भी वो दिल में प्रेम भाव रखते हैं। राष्ट्रपति पद पर बैठते ही मिस्र जाकर उन्होंने दुनिया के सभी मुसलमानों सम्बोधित किया और उनकी समस्याओं को हल करने के सम्बंध में अपने सहयोग का ऐलान किया। ओबामा से पहले अमेरिका के किसी राष्ट्रपति को ने तो इस्लामी दुनिया से दिलचस्पी थी और न ही उनकी समस्या को हल करने मे उनकी कोई रूचि थी बल्कि उनके पूर्ववर्ती राष्ट्रपति बुश ने तो ईराक और अफगानिस्तान पर हमला करके इस्लामी दुनिया को अपूर्णीय क्षति पहुँचायी। मुम्बई में इस्लाम और मुसलमानों को श्रद्धांजलि पेश करते हुए ओबामा ने इस बात का भी खयाल नहीं किया कि इस देश में संघ परिवार जैसी एक मज़बूत इस्लाम विरोधी लाबी हर वक्त काम करती रहती है। बधाई के पात्र हैं मुस्लिम समाज के कुछ लीडर और भरोसेमंद मुसलमान जिन्होंने जिहाद के सम्बंध में ओबामा के बयान का समर्थन किया। उन्होने स्पष्ट शब्दों में कहा जो लोग बेगुनाहों और मासूमों को अपनी हिंसा का निशाना बनाते हैं वो जिहाद के वास्तविक अर्थों से अनजान है और केवल अपनी सनक में इसानों का खून बहाते हैं।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कमाल फारूक़ी, राज्यसभा के सदस्य मौलाना महमूद मदनी और सासंद राशिद अलवी ने जिहाद के सम्बंध में ओबामा के बयान की तारीफ करते हुए कहा कि मासूमों के खिलाफ हिंसा करना जिहाद नहीं है और जो लोग इस तरह की हरकत कर रहे हैं वो इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं। राशिद अलवी ने साफतौर से कहा कि इस्लाम को अलकायदा या लश्करे तैय्येबा जैसे आतंकवादी संगठनों की सरगर्मियों से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता है।
जमायत उलेमाए हिंद ने अपने अवामी जलसों में जिहाद की हिंसापरक व्याख्या को गैर-इस्लामी ठहराया है और इस संदर्भ में बाकायदा तौर से प्रस्ताव पारित किये हैं। अलकायदा के लीडर अक्सर आडियो वीडियो के ज़रिए हिंसक इस्लाम और जिहाद की ललकार देते रहते हैं और कत्ल व खून का बाज़ार गर्म रखे रहते हैं, लेकिन उनकी अपील में अब आम लोगों के लिए कोई कशिश बाकी नहीं रही है। अलकायदा लीडर अब मुसलमानों के हीरो नहीं रहे और उनकी बातों पर कोई ध्यान भी नहीं देता है। इसके बावजूद जिहाद के सम्बंध अब भी लोगों के मन में शंकाएं पायी जाती है जिसे उलमा लोगों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
स्रोतः अखबारे मशरिक, नई दिल्ली
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URL: https://newageislam.com/hindi-section/islam,-jihad-barak-hussein-obama/d/6077