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Hindi Section ( 19 Apr 2013, NewAgeIslam.Com)

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To Be Authorized From God! अल्लाह की तरफ से अधिकृत किया जाना

 

अला अल-अस्वानी

17 अप्रैल, 2013

(उर्दू से अनुवाद: समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

1492 में ग्रानाडा बर्बाद हुआ, जो स्पेन में मुसलमानों का आखरी किला था। स्पेनिश कैथोलिक राजा फर्डीनैंड और एज़ाबेला की तैयार की गई सेना के सामने अरबों के आखरी बादशाह अबु अब्दुल्ला की हार हुई, हालांकि दोनों स्पेनिश राजाओं ने मुसलमानों और यहूदियों के विश्वासों का सम्मान करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन उन्होंने इस पर अमल नहीं किया और फैसला किया कि यहूदियों को स्पेन से निकाल दिया जाए (चार सदियों बाद शाह ख्वान कालोरस ने इस पर क्षमा माँगी थी) रहे मुसलमान तो उन्हें ईसाईयत या क़त्ल के बीच चुनाव का मौका दिया गया। इसलिए ऐसे हजारों मुसलमानों की हत्या कर दी गई जिन्होंने ईसाई धर्म को क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया। मर्दों, औरतों और बच्चों सहित सभी के सिर शरीर से अलग कर दिए गए जबकि मुसलमानों की एक बड़ी संख्या ने हत्या के डर से ईसाई धर्म क़ुबूल कर लिया। इन नए ईसाइयों को स्पेनिश भाषा में एक अपमानजनक नाम LOS MORISCOS से पुकारा गया।

लेकिन मुसलमानों को ज़बरदस्ती ईसाई धर्म स्वीकार करवाना तो सिर्फ शुरुआत थी, प्रशासन ने उनकी जीवन अवधि कम करने के लिए लगातार कई कदम उठाए ताकि इस्लामी संस्कृति और परंपराओं का पूरी तरह से ख़ात्मा किया जा सके जिसकी वजह से नए ईसाइयों ने कई बार बग़ावत की। फिर प्रशासन ने नोट किया कि नए ईसाइयों में कई लोग गुप्त रूप से इस्लामी शिक्षाओं पर अमल कर रहे थे। यहाँ आकर मामला और पेचीदा हो गया क्योंकि कानूनी तौर पर नए ईसाई बाकी स्पेनियों की तरह कैथोलिक ईसाई थे लेकिन व्यावहारिक रूप में वो अंदर से मुसलमान थे जिससे ये संभावना पैदा हो गयी कि वो अपने बच्चों की परवरिश इस्लामी मान्यताओं पर करेंगे और नतीजे के रूप में मुसलमानों की एक नई पीढ़ी पैदा होगी जिसका अस्तित्व प्रशासन को स्वीकार नहीं था।

इसके अलावा चर्च में नए ईसाइयों के विश्वास को शक की निगाह से देखा जाने लगा। क्या हज़रत मसीह उनका विश्वास स्वीकार करेंगे या वो ईमान के दायरे से बाहर ही रहेंगे? तब एक अजीबोग़रीब और रहस्यमय व्यक्तित्व सामने आया जिसने बाद की घटनाओं की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ये डोमेनिकन समूह का एक पादरी 'ब्लेडा' था जो अपने तक़वा (परहेज़गारी) और कैथोलिक विश्वास की पवित्रता के लिए बहुत मशहूर था। काफी सोच विचार के बाद पादरी ब्लेडा इस नतीजे पर पहुंचा कि चर्च के लिए ये जानना नामुमकिन है कि नए ईसाई वास्तव में हज़रत मसीह पर विश्वास रखते हैं या वो सिर्फ़ मौत के डर से ईसाई होने का ढोंग कर रहे हैं। इसलिए इसका एकमात्र समाधान यही है कि इन नए ईसाइयों को हज़रत मसीह के सामने पेश किया जाए ताकि वो खुद फैसला करें कि क्या वो ईमानदार हैं या कपटी हैं।

चूंकि हज़रत मसीह के सामने उन्हें पेश करना सिर्फ़ दूसरे जीवन में हो सकता था इसलिए पादरी ब्लेडा ने सुझाव दिया कि इन सभी नए ईसाइयों की तुरंत हत्या कर दी जाए, इस तरह मौत के बाद उनकी आत्माएं हज़रत मसीह के पास पहुंच जाएंगी और वो इनके विश्वास पर फैसला कर सकेंगे। अजीब बात ये है कि कैथोलिक चर्च ने पादरी ब्लेडा का प्रस्ताव मान लिया और इसके लिए सक्रिय हो गए। पादरी खुदा से निकटता और कैथोलिक विश्वास की पवित्रता के लिए लाखों इंसानों के क़त्ल के लिए तैयार हो गये लेकिन स्पेनिश सरकार ने नए ईसाइयों की इतनी बड़ी संख्या की हत्या करने पर अपने एतराज़ को ज़ाहिर किया, क्योंकि इनके विरोध से प्रशासन को मुश्किलों का सामना करना पड़ता..  इसलिए सरकार ने फैसला किया कि नए ईसाइयों को स्पेन से निकाल दिया जाए। पादरी ब्लेडा ने ये हल स्वीकार कर लिया हालांकि वो इन लोगों की तुरंत हत्या को प्राथमिकता देता था.. फ्रांसीसी इतिहासकार जोस्ताफ लाबोन (1841 - 1931) अपनी किताब अरब की संस्कृति में ये घटना बयान करते हुए लिखते हैं:

''1610 में स्पेनिश सरकार ने अरबों को स्पेन से निकल जाने का हुक्म दिया। अधिकांश अरब शरणार्थियों को रास्ते में ही क़त्ल कर दिया गया। पादरी ब्लेडा ने इस प्रवासन के दौरान तीन चौथाई शरणार्थियों की हत्या पर खुशी व्यक्त की। खुद उसने एक लाख चालीस हजार लोगों के एक काफिले के एक लाख मुसलमान शरणार्थियों की हत्या करवाई, जब वो काफिला अफ्रीका जा रहा था''

सवाल ये पैदा होता है कि एक धार्मिक नेता बिना मन में कण मात्र दुर्भावना के इतने सारे मासूम इंसानों को महज़ इसलिए मरवाने पर कैसे राज़ी हो जाता है कि वो उससे अलग विश्वास के मानने वाले हैं। हज़रत मसीह पर ईमान जिन्होंने इंसानियत को शांति और प्यार का संदेश दिया और पादरी ब्लेडा के खूनी स्वाभाव को आपस में कैसे मिलाया जाये.. जवाब ये है कि किसी धर्म में विश्वास हमें अनिवार्य रूप से हमें अधिक मानवीय नहीं बनाता। धर्म को समझने का हमारा अंदाज़ ही हमारे चरित्र को निर्धारित करता है। धर्म की शिक्षा ही हमें सहिष्णुता, न्याय और दया करना सिखाती है और वही हमें पूर्वाग्रह, नफ़रत और हिंसा के लिए उकसाती है। अगर हम सभी धर्मों को अल्लाह तक पहुँचने के विभिन्न रास्ते समझें और ये याद रखें कि मुसलमान, ईसाई या यहूदी होने में हमारी कोई भूमिका नहीं है क्योंकि आम तौर पर हम अपने धर्म अपने माँ बाप से विरासत में लेते हैं, और ये भी याद रखें कि अल्लाह लोगों के धार्मिक विश्वासों से पहले उनके कामों का हिसाब लेंगे।

अगर हमारा धर्म का अर्थ ये हो तो निश्चित रूप से हम दूसरे धर्मों के मानने वालों के साथ सहिष्णुता का व्यवहार करेंगे और लोगों के धर्म की परवाह किए बिना सभी मनुष्यों के समान अधिकारों की रक्षा करेंगे.. लेकिन अगर हमारा विश्वास ये है कि हमारा धर्म ही वो मात्र पूर्ण वास्तविकता है जो सभी धर्मों से ऊपर है। अगर हम ये समझेंगे कि सिर्फ हम ही पाक मोमिन हैं और दूसरे धर्मों के मानने वाले गलत रास्ते पर चलने वाले नापाक कुफ़्फ़ार हैं, तब तार्किक रूप से हम दूसरों के समान अधिकारों को कभी स्वीकार नहीं करेंगे और हमारा पूर्वाग्रह हमें ये एहसास दिलाएगा कि सिर्फ हम ही अल्लाह के नाम को ऊंचा करने और उसके इरादे को पूरा करने के लिए अल्लाह की ओर से प्राधिकृत किए गए हैं। ये खुदा की तरफ से प्राधिकृत होने की झूठी बात होगी और ये हमें दूसरों पर घमंड और उनके अधिकारों को छीनने पर उकसाएगा और शायद मन में कण मात्र दुर्भावना के बिना हमें बदतरीन अपराध पर उकसाएगा क्योंकि हमें लग रहा होगा कि हम लोगों पर अल्लाह की मर्ज़ी लागू कर रहे हैं। बेगुनाहों के क़त्ल पर रज़ामंदी ज़ाहिर करते वक़्त पादरी ब्लेडा का मन संतुष्ट था क्योंकि वो महसूस कर रहा था कि वो अल्लाह की मर्ज़ी पर अमल कर रहा है। जो चाहता है कि स्पेन एक कैथोलिक देश बने जिसमें काफिर मुसलमानों और यहूदियों के लिए कोई जगह न हो

खुदाई औचित्य देने का एहसास मानव इतिहास में कई बार दोहराया गया जिसका ज़्यादातर नतीजा बदतरीन अपराध के रूप में सामने आया, जो धर्म के नाम पर किए गए थे। यहाँ आपको पादरी ब्लेडा और आतंकवादी ओसामा बिन लादेन में कोई अंतर नज़र नहीं आएगा। हालांकि समय और माहौल में अंतर है, लेकिन इन दोनों की सोच और दुनिया को देखने का नज़रिया एक ही है.. दोनों को लगता है कि वो अल्लाह की मर्ज़ी को लागू करने और धर्म की रक्षा के लिए अल्लाह की ओर से प्राधिकृत हैं। दोनों ही को दूसरे धर्मों के लोग मानव मूल्यों में खुद से कमतर नज़र आते हैं, और दोनों ही को गिरोही ज़िम्मेदारी पर विश्वास है.. पादरी ब्लेडा की नज़र में सारे अरब किसी भी अरबी के कर्म और कथन के लिए ज़िम्मेदार हैं, और ओसामा बिन लादेन की नज़र में सारा पश्चिम उन अपराधों के लिए ज़िम्मेदार है जो अमरीकियों और इसराइल ने अरब और मुसलमानों पर किए। खुदाई औचित्य देने की अवधारणा में व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी के लिए कोई जगह नहीं है, बिन लादेन को इस बात पर कभी राज़ी नहीं किया जा सकता कि पश्चिम में करोड़ों लोग अमेरिकी सेना के अपराध की निंदा करते हैं। पादरी ब्लेडा को भी इस बात पर राज़ी करना नामुमकिन है कि उससे पीड़ित हुए मुसलमानों में ऐसे कई लोग होते हैं जो अच्छे नागरिक बन सकते थे।

अल्लाह की तरफ से प्राधिकृत होने से व्यक्ति के मन में दूसरों के जीवन का मूल्य और अधिकार पूरी तरह से नगण्य होते हैं। गैर मुसलमानों की ज़िंदगी की बिन लादेन की नज़र में कोई अहमियत नहीं है। बिल्कुल जिस तरह पादरी ब्लेडा ने अरबों की ज़िंदगियों को कोई महत्व नहीं दिया। दोनों ने हज़ारों बेगुनाहों को ये समझते हुए मार डाला कि वो एक अच्छा काम कर रहे हैं जिससे उनकी नेकियों में इज़ाफ़ा होगा और जो उनके जन्नत में जाने का कारण बनेगा। जब आप ख़ुद को अल्लाह की तरफ़ से प्राधिकृत समझना शुरू कर देते हैं तो आप दूसरों की आलोचना और अंतरावलोकन कभी बर्दाश्त नहीं करते।

चाहे आपकी बातें कितनी ही ख़ूबसूरत क्यों न हों, आप अपने से अलग लोगों का न तो सम्मान करेंगे और न ही उनके अधिकारों को स्वीकार करेंगे। आपको लगेगा कि आप हमेशा हक़ पर है क्योंकि अल्लाह का हुक्म बजा ला रहे है। आप वास्तविकता को कभी सही तरीक़े से नहीं देख पाएंगे। आप हमेशा एक बंद और काल्पनिक दुनिया में जीते रहेंगे जो न तो कभी तरक़्क़ी करेगी और न ही कभी इसमें किसी तरह का परिवर्तन होगा। सच चाहे कितना भी उजला क्यों न हो आप इनकार कर देंगे और जो भी आपकी काल्पनिक दुनिया पर शक करेगा आप उसके खिलाफ़ आक्रामकता पर उतारू हो जाएंगे, क्योंकि आप उस काल्पनिक दुनिया के अंदर रहते हैं और अगर वो आपसे छीन ली गई तो आपका जीवन धराशायी हो जाएगा। इससे शायद हमें 'मुस्लिम ब्रदरहुड' और राजनीतिक इस्लाम से जुड़े दूसरे लोगों के व्यवहार को समझने में मदद मिले। उनके सत्ता में आने के महीनों बाद मिस्र के लोग सोचते हैः मुस्लिम ब्रदरहुड क्यों धर्म के प्रतिनिधित्व करने दावा करते हैं जबकि वो लगातार झूठ बोलते और क़ौम से किए गये  सभी वादों को तोड़ते आ रहे हैं और अपने हितों को हासिल करने के लिए हर हद तक जाने के लिए कमर कसे हुए हैं, चाहे इसकी कीमत शहीदों का ख़ून और चाहे देश का ख़ात्मा ही क्यों न हो?

विरोधियों पर हिंसा और खून बहाते समय 'इख़्वान' के लोगों को अपराध बोध क्यों नहीं होता? जवाब ये है कि 'इख़्वान' खुद को सियासतदाँ नहीं समझते, जो सही भी हो सकते हैं और गलत भी, बल्कि उनका ईमान है कि अल्लाह ने उन्हें मिस्र को कुफ्र से बचाने के लिए भेजा है। वो समझते हैं कि वो अल्लाह की मर्ज़ी को लागू कर रहे हैं इसलिए उन आम लोगों की तरह जो अपने मन से सोच कर अमल करते हैं उनका आत्मावलोकन नहीं हो सकता। 'इख़्वान' का मानना है कि अल्लाह ने अपने नाम की सरबुलंदी और हुक्म के पालन के लिए उन्हें प्राधिकृत किया है। इसलिए जो भी राजनीतिक रूप से उनकी  आलोचना करेगा उनकी नज़र में वो इस्लाम का दुश्मन होगा क्योंकि वही इस्लाम हैं और उनके सिवा कोई उसका प्रतिनिधित्व नहीं करता।

आज की हर घटना को 'इख़्वान' इस्लामी इतिहास पर डाल कर खुद मुसलमान और विरोधियों को अल्लाह का दुश्मन बना देते हैं। कुछ दिनों पहले एक 'इख़्वान' ने अपने एक कालम में मक्तुम की झड़प को जंगे ओहद के जैसा बताया था। निश्चित रूप से 'इख़्वान' रसूलुल्लाह सल्ललाहू अलैहि वसल्लम के सहाबियों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे जबकि उनके विरोधी कुफ़्फ़ार की। 'इख़्वान' के मुताबिक़ राजनीतिक मतभेद की यही मानसिक तस्वीर है। सिर्फ वही वो मोमिनीन हैं जो इस्लाम के हुक्मों को लागू करना चाहते हैं जबकि उनके सारे विरोधी मुबारक के चमचे या पश्चिम और यहूदियों के एजेंट हैं या फिर धर्म से नफ़रत करने वाले बेग़ैरत लोग हैं।

मिस्र की स्थित बेहद स्पष्ट है। एक निर्वाचित राष्ट्रपति अपनी पार्टी के हितों के लिए एक तानाशाह में तब्दील हो गया है। उसने कानून को रौंद डाला और 'इख़्वान' के मुर्शिद के फैसले सारी क़ौम पर थोप दिए। वो अपने सभी विरोधियों को कुचलने के लिए गौरक़ानूनी नायब का इस्तेमाल कर रहा है। उसके सुरक्षा बलों ने सौ नागरिक की हत्या की और हजारों को अपनी हिंसा का निशाना बनाया.. इसके बावजूद 'इख़्वान' अपने खुदाई औचित्य देने के एहसास की वजह से सच्चाई को देखने में असमर्थ हैं। वो हमेशा इनकार, बहस और धोखे के लिए तैयार रहते हैं। 'इख़्वान' को सच्चाई का क़ायल करने का क़तई कोई फायदा नहीं। चाहे 'इख़्वान' का मुर्शिद हजारों मिस्त्रियों को ही क्यों न मरवा दे और चाहे उसकी राजनीतिक नीतियों से कितनी ही मौत क्यों न हो। उसके समर्थक उसके हर काम का बचाव करते रहेंगे क्योंकि उनकी नज़र में वो अल्लाह की मर्ज़ी पर अमल कर रहा है। 'इख़्वान'' का मुर्शिद ओसामा बिन लादेन और पादरी ब्लेडा की तरह  एक ऐसा व्यक्ति है जो ये समझता है कि वो खुदाई इरादे का प्रतिनिधि है। इसलिए वो दूसरों के अधिकारों का हनन करने के लिए हमेशा प्रतिबद्ध रहता है, क्योंकि उसका ईमान है कि अल्लाह ने उसकी जमात के लिए सत्ता पसंद किया, इसलिए यहां इंसानों के इरादे का कोई महत्व नहीं है।

तो फिर क्या किया जाए?

इतिहास हमें सिखाता है कि धार्मिक कट्टरपंथियों के साथ समझौते का कोई फायदा नहीं है। जो खुद को अल्लाह के इरादे के पालन का औज़ार समझते हैं, उनसे बातें करने का कोई फायदा नहीं। इस फासीवादी व्यवस्था को गिराने के लिए दबाव ही हल है। इंकलाब को राजनीति की गलियों और बांझ बातचीत की राहों में गुम नहीं होना चाहिए। हम वक्त से पहले राष्ट्रपति चुनाव और गैरक़ानूनी नायब को हटाने की मांग करते हैं। हमारी मांग है कि उस झूठे संविधान को खत्म किया जाए और मार काट के ज़िम्मेदारों पर मुक़दमें चलाएं जाएं जिनमें से सबसे पहले मोहम्मद मुर्सी और उसका जल्लाद गृहमंत्री मोहम्मद इब्राहिम है। ये इंसाफ पसंद इंक़लाब की मांग हैं जिनसे हमें पीछे नहीं हटना है और ना ही किसी प्रकार के बीच के हल को स्वीकार करना है। इंक़लाब फासिज़्म पर जीत और अपने सभी लक्ष्यों को पूरा करने तक जारी रहेगा।

लोकतंत्र ही हल है।

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