सुमित पाल, न्यू एज इस्लाम
उर्दू से अनुवाद न्यू एज इस्लाम
14 मई 2022
ऐसा लगता है कि पुरे देश ने सामूहिक तौर पर मुगलों को बदनाम
करने का इरादा कर लिया है गोया वह बदमाश और लुटेरे थे जिन्होंने भारत को बदनाम किया
है
प्रमुख बिंदु:
1. तमाम मुग़ल शहंशाहों में अकबर को मज़हब में सबे कम दिलचस्पी
थी
2. अकबर ने यहाँ तक कि दीने इलाही के नाम से अपना एक नया
मज़हब भी बनाया था
3. तानसेन को इस्लाम कुबूल करना सरासर बेबुनियाद मालुम
होता है
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Photo:
Brainy.in/ Akbar and Tansen
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ऐसा लगता है कि पुरे देश ने सामूहिक रूप से मुगलों को बदनाम करने का पक्का इरादा कर लिया है जैसे वह बदमाश और लुटेरे थे जिन्होंने भारत को बदनाम किया है। कुछ दिन पहले, इतिहास के एक रिटायर्ड प्रोफेसर (सबसे अधिक हैरान कुन और अफसोसनाक!) जो हिन्दुस्तान के एक नामवर कालिज में शिक्षा देते थे और अब पुणे में रहते हैं, उन्होंने एक निजी महफ़िल में कहा कि अकबर ने एक अज़ीम संगीतकार तानसेन को इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर किया था। जबकि यह एक खुला झूट और सच का गला घोंटना है।
सबसे पहली बात यह है कि तमाम मुग़ल बादशाहों में अकबर को मज़हब में सबसे कम दिलचस्पी थी। असल में, विंसेंट आर्थर स्मिथ ने अपनी अजीमुश्शान किताब, ‘अकबर दी ग्रेट मुग़ल, 1542-1605’ में लिखा है कि, “अकबर और शहजादा दारा शिकोह ने इस्लाम और दुसरे धर्मों को भी जानने की कोशिश की और इस सिलसिले में दोनों अपने समय से काफी आगे थे। हालांकि दारा एक बहुत बड़ा आलिम था जिसने आखिरकार हिन्दू मज़हब को कुबूल कर लिया। अनपढ़ होने के बावजूद, अकबर ने पढ़ना लिखना कभी नहीं सीखा, उसका दिमाग तेज़ था और वह फलसफा और तसव्वुफ़ (रूहानियत) के बारे में मज़ीद जानने का ख्वाहिशमंद था।
अकबर कभी भी इस्लाम का सख्त अनुयायी नहीं रहा, बल्कि उसने दीने इलाही के नाम से अपना एक अलग मज़हब भी बनाया। तानसेन हालांकि बहुत महान था, लेकिन वह अत्यंत मौक़ा परस्त था, जिसने बाद में अकबर के ‘दीने इलाही’ की पैरवी की। लेकिन अकबर उससे भी खुश नहीं था क्योंकि वह तानसेन की चापलूसी से अवगत था। इसलिए, तानसेन को इस्लाम कुबूल करने पर मजबूर करने वाली बात सरासर निराधार है। असल में, ज्ञान कार्लोकालज़ा ने अकबर की अपनी तहकीक शुदा सवानेह उमरी (Akbar: The Great Emperor of India, 1542-1605) में लिखा है कि अकबर ने सूफी हज़रत गौस मोहम्मद गवालियारी के हाथों तानसेन को इस्लाम कुबूल करने से रोकने की कोशिश की।
Akbar
and Tansen visit Haridas/ Exotic India Art
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अब्दुल कादिर बदायूनी जैसे अकबर के सख्त आलोचक ने भी इस बात की तरदीद की और खा है कि अकबर कभी भी मज़हब नहीं बदलवाता था। यहाँ तक कि उसने कुछ अत्यंत काबिले एहतिराम सूफियों की सरज़िंश की और जब वह गरीब हिंदुओं को धोका देकर धर्म परिवर्तन करवाने में लिप्त पाए गए तो उन्हें हलकी फुलकी सज़ा भी दी। अकबर के राजपूत सरदारों ने केवल शहंशाह की खुशनूदी हासिल करने के लिए इस्लाम कुबूल किया था। लेकिन, अकबर ने अपने दोस्त और दरबारी इतिहासकार अबुल फज़ल को बताया था कि मैं राजपूतों के इस्लाम कुबूल करने के पीछे उनके अय्यार मकासिद को देखता हूँ।
जहां तक धर्म परिवर्तन की बात है, किसी हद तक औरंगजेब और जहांगीर के अलावा तमाम मुगल बादशाह इसमें कतई तौर पर शामिल नहीं थे। सर जदूनाथ सरकार ने ‘हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब’ (पांच जिल्द/तीसरी जिल्द) में लिखा है कि ‘हालांकि औरंगजेब धर्म परिवर्तन करवाता था, लेकिन उसका उद्देश्य तमाम हिंदुओं को धर्म परिवर्तन करवाना कभी नहीं था। यह बिलकुल सच है। अगर औरंगजेब का मकसद यही होता तो वह 1658 से 1707 तक अर्थात लगभग पांच दशकों के अपने लम्बे हुकूमत के दौर में तमाम हिंदुओं को मुसलमान बना देता।
इसलिए, अब समय आ चुका है कि हम समस्या को तमाम ज़ावियों से देखें और फिर कोई राय कायम करें। मुग़ल, या एक विस्तृत पृष्ठभूमि में तमाम मुसलमानों ने जितना गुनाह नहीं किया उससे अधिक उनकी तौहीन की जा चुकी है। हमें इस आक्रामक दृष्टिकोण और बुरी फ़िक्र को परिवर्तित करना होगा।
English Article: Akbar Never Forced Tansen to Embrace Islam
Urdu Article: Akbar Never Forced Tansen to Embrace Islam اکبر نے تانسن کو اسلام قبول
کرنے پر کبھی مجبور نہیں کیا
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