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Hindi Section ( 7 March 2014, NewAgeIslam.Com)

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What Is Sharia? And What Are Its Objectives? (Part 2) शरीयत क्या है? और इसके मकसद क्या हैं ? (भाग 2)

 

 

 

 

ऐमन रियाज़, न्यु एज इस्लाम

29 जनवरी, 2014

शरीयत के सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्यों में से एक लोगों के जीवन की रक्षा करना है। इस सम्बंध में कुरान का बहुत स्पष्ट ऐलान है, ''जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इंसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इंसानों को जीवन दान किया।'' (5: 32)

कुरान ने पैदा होते ही बच्चों की हत्या करने और विशेष रूप से बच्चियों की हत्या को प्रतिबंधित करार देकर इस अमानवीय प्रथा को बंद कर दिया।

''और जब जीवित गाड़ी गई लड़की से पूछा जाएगा, कि उसकी हत्या किस गुनाह के कारण की गई? (81: 8- 9)

''और निर्धनता के कारण अपनी सन्तान की हत्या न करो; हम तुम्हें भी रोज़ी देते है और उन्हें भी'' (6: 151)

'और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है'' (17: 31)

कई मुस्लिम फ़ुक़्हा (धर्मशास्त्रियों) ने शरीयत के इस उद्देश्य को सिर्फ जीवन की सुरक्षा तक ही सामित नहीं रखा है बल्कि अगर आप किसी खतरे में हैं तो आपको सुरक्षा का अधिकार, अगर आप बीमार हैं तो आपको इलाज का अधिकार, और अगर आपके पास खाना और रहने के लिए मकान नहीं है तो आपको खाने और रहने के लिए मकान के अधिकार को इस उद्देश्य में शामिल किया है।

जीवन रक्षा के अधिकार को पूरी तरह संरक्षण प्रदान करने के लिए ऐसे लोगों के लिए सज़ा का प्रावधान होना चाहिए जो  दूसरों के जीवन के अधिकारों का अनादर करते हैं।

शरीयत का एक और उद्देश्य मन मस्तिष्क की रक्षा करना है। हम कुरान और सुन्नते रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम में पाते हैं कि दिमाग को पोषण प्रदान करने के लिए प्रोत्साहन और ब्रह्मांड की रचना के बारे में चिंतन और सोच विचार के लिए प्रोत्साहित किया गया है। कुरान और सुन्नते रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और रचनात्मक तरीके से उन मामलों पर बहस और चर्चा को प्रोत्साहन दिया गया है जो समाज के लिए फायदेमंद हैं।

एक बार फिर ये तब तक सैद्धांतिक ही रहेगा जब तक कि इसे लागू करने के लिए कोई उचित तंत्र न हो। कुरान शराब पर पूरी तरह से पाबंदी लगाता है, क्योंकि ये इंसान की चेतना और उसकी तर्कशक्ति को खत्म कर देती है। कुरान का फरमान है:

''ऐ ईमान लाने वालों! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो। शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे? (5: 90- 91)

''तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, "उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।" (2: 219)

शरीयत का एक और उद्देश्य सम्मान की रक्षा करना है, यहाँ तक कि अगर हम इस शब्द के संकीर्ण अर्थ को लें यानि परिवार और संतान की रक्षा, क्योंकि परिवार किसी भी समाज की आधारशिला है। सकारात्मक पहलू की बात करें तो हम पाते हैं कि कुरान उन नौजवानों को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करता है अगर वो साधन सम्पन्न हैं। अगर नकारात्मक पहलू की बात करें तो हम पाते हैं कि जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे के सम्मान और गरिमा पर गलत और निराधार तरीके से आरोप लगाता है तो ऐसे में शरीयत अपने दृष्टिकोण में बहुत सख्त है। कुरान महिलाओं के शील की रक्षा पर बहुत ज़ोर देता है।

शरीयत का पांचवां और अंतिम उद्देश्य लोगों के धन की रक्षा करना है। शरीयत सकारात्मक रुख पर निवेश को प्रोत्साहित करती है। शरीयत में अनाथ और पागल आदि लोगों को संरक्षण प्रदान किया गया है। और इसके नकारात्मक पहलू ये हैं कि इसमें ज़कात की भी व्यवस्था है जो धन के वितरण में मदद करती है और धन के लेन देन को सिर्फ अमीर लोगों तक ही सीमित होने से रोकती है।

शरीयत के सम्बंध में एक और व्यापक गलतफ़हमी ये पाई जाती है कि शरीयत प्रतिशोधी है और इसमें माफी के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। सबसे पहले शरीयत में 'ताज़ीर' की कल्पना है और जिसका मतलब विवेकाधीन सज़ा है। जब किसी विशेष अपराध के सम्बंध में कुरान और सुन्नते रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम में कोई स्पष्ट सज़ा निर्दिष्ट नहीं होती है तो इस अपराध की सज़ा का निर्धारण न्यायाधीश या शासक के विवेक पर छोड़ दिया जाता है। अपराध की गंभीरता, अपराध का रिकॉर्ड और वो परिस्थितियाँ जिसमें ये अपराध किया गया है आदि कई कारणों के आधार पर शासक या जज को ये विवेकाधिकार होता है कि वो माफ कर देने के विकल्प को चुन सके।

विशेष रूप से चोट या हत्या के मामले में शरीयत में एक दूसरी अवधारणा पाई जाती है उसे 'क़िसास' या प्रतिशोध के नाम से जाना जाता है। और यहाँ पर हम फिर तर्क के भ्रम को पाते हैं कि शरीयत में माफी की कोई गुंजाइश नहीं है। मिसाल के तौर पर अगर अमेरिका में किसी पर हत्या का आरोप है और पीड़ित के घर वालों ने हत्यारे को माफ कर दिया तो क्या ऐसे में हत्यारे को सज़ा दी जाएगी? तो इसका जवाब हाँ है। क्योंकि उसने अपराध किया है। इस्लामी कानून में अगर पीड़ित के परिजनों ने हत्यारे को माफ कर दिया तो इस व्यक्ति को माफ किया जा सकता है।

तीसरी अवधारणा 'हुदूद' के नाम से जानी जाती है जिसका मतलब सज़ा है और जो कुछ अपराधों के लिए निश्चित विवरण है। इसमें व्यभिचार, लोगों और विशेष रूप से महिलाओं की यौन पवित्रता पर आरोप लगाना और चोरी आदि शामिल हैं। क़ुरान में इन सभी अपराधों के लिए गंभीर सज़ा दी गयी है लेकिन इसके बावजूद इसमें माफी की सम्भावना है और यहाँ तक कि पुनर्वास के लिए प्रोत्साहन की भी गुंजाइश है। कुरान का फरमान है:

''जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते हैं और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाएं या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। ये अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है।'' (5: 33)

लेकिन अगली आयत में वर्णित है:

''किन्तु जो लोग, इससे पहले कि तुम्हें उन पर अधिकार प्राप्त हो, पलट आएँ (अर्थात तौबा कर लें) तो ऐसी दशा में तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है'' (5: 34)

पुनर्वास का ये सबसे अच्छा तरीका है। अपराध से प्रतिशोधी तरीके से लड़ने के बजाए ये अपराध को खत्म करने का  सकारात्मक तरीका है। बेहतर समाज के निर्माण के लिए ये लोगों को खुद को शुद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

शरीयत के बारे में पाई जाने वाली व्यापक नकारात्मक धारणा सिर्फ मीडिया के ही कारण नहीं है बल्कि तथाकथित ''मुस्लिम'' देश किस तरह इसका इस्तेमाल करते हैं, ये भी इसकी एक वजह है। इन देशों ने शरीयत को प्रतिशोधी और अमानवीय नज़र आने वाला बना दिया है, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है।

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