ऐमन रियाज़ , न्यु एज इस्लाम
17 जनवरी, 2014
हज़रत मख़दूम कमालुद्दीन यह्या मनेरी 13वीं सदी के एक भारतीय सूफी संत थे, उनका आस्ताना पटना (बिहार) से 29 किमी दूर मनेर में एक मस्जिद के आंगन में है।
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सूफीवाद शब्द का स्रोत अरबी शब्द 'सफा' है जिसका अर्थ 'पवित्रता' है। इसका एक और अर्थ जो 'सुफ' शब्द से लिया गया उसका अर्थ है 'ऊन’, जो फिज़ूलखर्ची से परहेज़ और सादगी को महत्व देने की ओर इशरा करता है। संक्षेप में एक सूफी सादा जीवन व्यतीत करता है और विश्वास में पवित्रता रखता है।
'सूफ़ियाए बिहार’ एक किताब है जिसे ''जागरण प्रकाशन लिमिटेड' ने प्रकाशित किया है। और ये किताब क़ाफी टेबल बुक की श्रेणी में आती है जो पूजा स्थलों पर आधारित है। इस लेख में बिहार की उन खानक़ाहों, दरगाहों और मज़ारों को शामिल किया गया है जिसका वर्णन इस किताब में किया गया है। 'सूफ़ियाए बिहार’ में बिहार के 52 से आध्यात्मिक केन्द्रों का वर्णन किया गया है।
इमारते शरिया (बिहार, उड़ीसा और झारखंड) के जनरल सेक्रेटरी अनीसुर्रहमान क़ास्मी कहते हैं: ''लगभग पिछले 1000 सालों से बिहार महान सूफियों के वंश का केंद्र रहा है। बिहार की आभा ने सभी सूफियों की शैक्षिक और अनन्त प्यास को बुझाने में मदद की है। सूफ़ी संतों के प्रभाव को स्पष्ट रूप से समाज, शिक्षा, व्यवहार और बिहार के आतिथ्य में देखा जा सकता है।
हज़रत शाह कमालुद्दीन यह्या मनेरी रहमतुल्लाह अलैहि की खानक़ाह और दरगाहः ये मनेर शरीफ में स्थित है। खानकाह मनेर शरीफ के प्रवक्ता जावेद इकबाल कहते हैं कि ''ये खानकाह हिंदुस्तान में सभी खानकाहों की जननी है।'' 1180 ई. में इस खानक़ाह की बुनियाद हज़रत इमाम मोहम्मद ताज फक़ीह के हाथों से रखी गई थी। इस खानक़ाह का सबसे प्रमुख हिस्सा बड़ी दरगाह और छोटी दरगाह है।
मनेर के सूफी की दरगाह पूरी दुनिया के श्रद्धालुओं और सभी धर्मों के लोगों के लिए आज भी महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। दरगाह के प्रवक्ता जावेद इकबाल के अनुसार अगर कोई व्यक्ति पहले ही प्रयास में पत्थर के ब्लाक को अपने सीने तक उठा लेता है तो उसकी मुरादें पूरी हो जाती हैं।
हज़रत मख़दूम शेख़ शरीफुद्दीन यह्या मनेरी रहमतुल्लाह अलैहि का आस्ताना बिहार शरीफ में स्थित है। यहाँ नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम का मूए मुबारक (दाढ़ी के बाल), अंगूठी और पैगम्बर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के रौज़े की मिट्टी भी मौजूद है। ये मक़बरा मुगलों के ज़माने में बना था।
हज़रत मख़दूम सैयद शाह अलाउद्दीन बुखारी शुत्तारी रहमतुल्लाह अलैहि का मज़ार बेगूसराय में स्थित है। 1526 ई. में अपनी मृत्यु से पहले हज़रत मख़दूम सैयद शाह अलाउद्दीन बुखारी शुत्तारी रहमतुल्लाह अलैहि ने लाखों लोगों के दिलों को अपनी धार्मिक शिक्षाओं और व्यवहार से प्रबुद्ध किया। 1291 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा बनवाई गयी सात सौ साल पुरानी मस्जिद की ओर इशारा करते हुए सैयद शाह इफ्तिखारुल हक़ कहते हैं कि, ''ये मध्यकाल में बनी दुर्लभ मस्जिद के अवशेष हैं।' खानक़ाह से लगी मस्जिद जो कभी वास्तुकला का एक बेजोड़ नमूना थी, आज जीर्ण शीर्ण हालत में है।
मौलाना मज़हरूल हक़ रहमतुल्लाह अलैहि का मज़ार सीवान में है। दि ग्रेट ट्रायल के नाम से 1921 में लिखी गई मौलाना की किताब में 1917- 18 के दौरान जब गाँधी जी चंपारण जेल में कैद थे, उस समय गांधी जी के मुक़दमें की विस्तृत कार्यवाही का विवरण इसमें दर्ज है। मौलाना के पोते वारिस अली फारूक़ी कहते हैं कि, ''आम तौर पर लोग मौलाना के राजनीतिक जीवन के बारे में जानते हैं लेकिन लोग उनके सेकुलर और धार्मिक चरित्र और साथ ही सांप्रदायिक सद्भाव कायम करने में मौलाना की भूमिका से अनभिज्ञ हैं। मौलाना ने हिंदुओं और मुसलमानों का वर्णन एक नाव की तरह किया है। अगर ये नाव डूबती है तो केवल एक समुदाय को नुकसान नहीं होगा बल्कि दोनों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ेगा। उन्हीं की याद में 1988 में मौलाना मज़हरूल हक़ अरबी फारसी युनिवर्सिटी की स्थापना की हुई थी।
बाबा आशिक शाह का मज़ार दगभंगा में है। लगभग 200 साल पहले की बात है कि समरकंद से कुछ बुज़ुर्ग दरभंगा लोगों को आशीर्वाद देने और लाभ पहुँचाने के लिए आए। शहाबुद्दीन क़ादरी के मुताबिक इनमें से कुछ लोग दिग्गी में बस गये जबकि उनमें से कुछ मिर्ज़ा खान के तालाब के पास रहने लगे। इन दोनों जगहों पर स्थित मज़ार आज बेसहारा और गरीब लोगों के लिए उम्मीदों का केंद्र है। कई लोग नियमित रूप से मिर्ज़ा खान के तालाब की ज़ियारत के लिए आते हैं। इन बुज़ुर्गों के प्रति आस्था व प्रेम के कारण दूरदराज़ के गाँवो, शहरों और यहां तक कि नेपाल से भी लोग खिंचे चले आते हैं। मज़ार शहर में सांप्रदायिक भाईचारे व सौहार्द के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग इस मज़ार के प्रति श्रद्धा व प्रेम रखते हैं।
नोट: इस लेख में केवल कुछ केन्द्रों का उल्लेख इस उम्मीद के साथ किया गया है कि पाठकों के अंदर उन सभी केन्द्रों के बारे में जानने की भावना जागृत होगी जिनका वर्णन किताब में किया गया है। मैं बिहार टूरिज़्मः ब्लिसफुल बिहार और साथ ही साथ जागरण कॉफी टेबल बुक (JCTB) का भी आभारी हूँ। अधिक जानकारी के लिए www.jagran.com पर जाएं।
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