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Hindi Section ( 29 Dec 2012, NewAgeIslam.Com)

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Muslims and Their Conspiracy Theories मुसलमान और उनकी साज़िशी थ्योरी

 

ऐमन रियाज़, न्यु एज इस्लाम

30 जुलाई, 2012

(अंग्रेजी से अनुवाद- समीउर, न्यु एज इस्लाम)

क्या आप जानते हैं कि 2004 में सूनामी ने इंडोनेशिया और उसके पड़ोसी देशों को इसलिए तबाह कर दिया था, क्योंकि वहां के मुसलमान अनैतिक हो गए थे, और वो लोग बुराई के केंद्र पश्चिम की नक़ल कर रहे थे, इसलिए खुदा ने उन्हें सज़ा देने का फैसला किया?

क्या आप ये भी जानते हैं कि ये यहूदी ही थे जिन्होंने अफ्रीका में मुसलमानों के बीच एड्स (AIDS) को फैलाया, यहूदी डाक्टरों ने पोलियो (polio) की खुराक को दूषित कर दिया ताकि मुसलमानों के बीच एड्स और बांझपन की बीमारी फैल सके और मुसलमानों की आबादी कम हो जाये?

 यहां तक ​​कि अगर आप ये नहीं जानते हैं तो आपको ये ज़रूर मालूम होगा कि इसराइल की खुफिया एजेंसी, मोसाद ने राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के इशारे पर 9/11 के हमले किए, और ये कि यहूदी लोगों को उस दिन ट्विन टॉवर न जाने के लिए पहले से ही खबरदार कर दिया गया था?

साजिश थ्योरी के धोखे से भरी दुनिया में आपका स्वागत है, खुद से बनाई ऐसी अतार्किक काल्पनिक दुनिया जहाँ गप शप  खबर है और अफवाह ज्ञान पर आधारित जानकारी है, जहाँ चीजें इसलिए नहीं होती है कि उन्हें होना होता है बल्कि इसलिए होती हैं कि उनके बारे में पहले से ही वो जानते हैं कि उसे होना है।

आक्सफोर्ड एडवांस्ड लर्नर्स डिक्शनरी के अनुसार साजिश नज़रिये का मतलब ये है कि, ये मानना ​​कि एक समूह के लोगों के द्वारा कुछ नुक्सानदेह या गैरकानूनी काम की खुफिया योजना एक विशेष घटना के लिए जिम्मेदार है।

अभी कुछ दिनों पहले ही मुस्लिम उम्मत में एक विशेष प्रकार की प्रवृत्ति पैदा हुई और वो ये है कि अगर कहीं भी मुसलमानों के साथ कोई गलत घटना पेश आती है तो वो ज़रूर अमेरिका या यहूदियों की करतूत होगी। मनगढंत बातों की शुरुआत मजहबी नेताओं और उलमा के द्वारा होती है, और उसका प्रचार प्रसार मुस्लिम समाचार पत्रों के नेटवर्क, रेडियो, टीवी चैनलों और इंटरनेट साइटों के द्वारा होता है।

मिसाल के लिए सुनामी ने हजारों गैर मुस्लिमों की भी जानें ले ली, उनका ध्यान इस बात की ओर कम ही जाता है। जिस तरह अफ्रीका में एड्स ने लोगों की जानें ली है। लेकिन कोई भी साज़िशी थ्योरी के बजाये अक़्ल का इस्तेमाल नहीं करता है।

इसी तरह जब कुछ साल पहले डेनमार्क के अखबार जेलैण्ड पोस्टेन (Jyllands Posten) में मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के (नऊजोबिल्लाह) कार्टून प्रकाशित होने के बारे में भी यही कहा गया कि ये भी यहूदी साजिश का एक हिस्सा हैं। यहां तक ​​कि ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी ने दावा किया कि फ़िलिस्तीन के चुनाव में हमास की जीत पर इस्राइली गुस्से से ही ये कार्टून प्रेरित था।

 एक दूसरी साजिशी थ्योरी से पता चलता है कि पेप्सी और कोका कोला में सुअर के मांस का अर्क मिलाया गया है। अलरियाज़ अखबार में 20 अगस्त 2006 को प्रकाशित एक लेख में ये बात कही गई है: 'वैज्ञानिक और चिकित्सकीय अनुसंधान ये कहता है कि पेप्सी और कोका कोला पीने से कैंसर हो सकता है क्योंकि इसके मूल तत्व सुअर के मांस से बनाए जाते हैं। आस्मानी किताबें कुरान, बाइबिल और तौरेत ने सुअर का गोश्त खाने से मना किया है, क्योंकि यही एक ऐसा जानवर है जो पेशाब, मूत्र और गोबर खाता है, जिससे घातक कीटाणु और रोगाणु पैदा होते हैं।

एक विशेष रूप से हास्यास्पद थ्योरी, वो भी इन्हीं मानकों के अनुसार, मुसलमानों को कोका कोला न पीने का आग्रह करती है, क्योंकि जब इसके लोगो को उलटा किया जाता है तो ये अरबी में 'न मोहम्मद, न मक्का' लिखा होता है।

ये समझना बहुत आसान है कि मुसलमान साजिशी थ्योरी में क्यों इतना ध्यनमग्न हो गये हैं। सांस्कृतिक संघर्ष और युद्ध के इस दौर में डर उनके लिए एक प्रेरक भावना बन गयी है। हर इंसान के अंदर डर की भावना होती है। यहाँ तक कि ये कभी कभी आवश्यक होती है और हमारी प्रजाति के अस्तित्व में मददगार रही है। लेकिन जिसे हम आज महसूस करते हैं वो भावना आज खौफ पैदा करने वाली हो गयी है।

  हम भी अपनी कमियों के लिए खुद को जिम्मेदार ठहराना नहीं चाहते, या उन नृशंस कामों की जिम्मेदारी कुबूल नहीं करना चाहते जिसे हमारे बीच रहने वाले लोग कर रहे हैं। हम ये यक़ीन नहीं करना चाहते हैं कि हम सही नहीं हैं, हम गलत भी हो सकते हैं। इसलिए हम आसानी से अपनी गलतियों के लिए 'दुश्मन' को जिम्मेदार ठहराते हैं जैसा कि 9/11 की घटना में हुआ, और कभी कभी ऐसे मामलों में हम ऐसा करते हैं जिसमें दूसरों पर आरोप लगाने की स्थिति ही नहीं होती जैसा कि सुनामी की घटना में हुआ।

साजिशी थ्योरी कभी कुछ मुसलमानों में इस्लाम सर्वश्रेष्ठता की भावना को प्रदर्शित करता है। वो इस बात का दावा करते हैं कि पश्चिम की विख्यात एतिहासिक शख्सियतें जैसे विलियम शेक्सपियर, अब्राहम लिंकन और ल्युनार्डो डा विंची, सभी मुस्लिम थे। और 2011 में चर्च के एक सर्वेक्षण के अनुसार 10 फीसद अमेरिकी मुसलमानों को ये यक़ीन है कि बराक ओबामा मुसलमान हैं।

बेशक, सिर्फ मुसलमान ही साजिशी थ्योरी नहीं जानते। पश्चिम के बहुत से लोग किसी भी प्रकोप के लिए दूसरी दुनिया के एलियंस को जिम्मेदार ठहराया करते हैं, लेकिन इससे पहले वो कम्युनिस्टों और बाद में मुसमानों को ज़िम्मेदार ठहराते थे। ये दुश्मनों पर आरोपी ठहराने के वही बीमारी है जो मुस्लिमों की साजिशी थ्योरी को बल प्रदान करती है।

जब तक हम दूसरों से नफ़रत करते और डरते रहेंगे, तब तक साजिशी थ्योरी के कारण झगड़े होते रहेंगे। हमें इनसे ज़रूर होशियार रहना चाहिए, इसलिए कि वो सिर्फ अपने द्वारा पैदा किए गए डर को बल प्रदान करेंगे। जबकि कुछ लोग जानबूझकर दुश्मनी की बुनियाद पर इस थ्योरी को बढ़ावा देते हैं, और बहुत से मुसलमान आसानी से उनका शिकार हो जाते हैं। कुरान का फरमान है,'' जब भी कोई बात तुम तक पहुँचे तो उसे दूसरों को बताने से पहले उसकी अच्छी तरह तफ्तीश (जाँच) कर लो। और यही हमारा पथ प्रदर्शक होना चाहिए।

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