ऐमन रियाज़, न्यु एज इस्लाम
12 दिसम्बर, 2012
(अंग्रेजी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)
हर इंसान अद्वितीय है; हर व्यक्ति के कुछ अपने गुण होते हैं। कुछ लोग छः फीट लम्बे हो जाते हैं जबकि कुछ लोग कम से कम पांच फुट कद पाने की इच्छा रखते हैं, कुछ लोग गोरे होते हैं और कुछ सांवले, कुछ लोग दस साल की उम्र में ही तरुणाई को पहुँच जाते हैं जबकि कुछ लोग तेरह या चौदह साल की उम्र में जवान होते हैं। हमारी शारीरिक विशेषताओं पूरी तरह हमारे जीन और पर्यावरण पर निर्भर करता है जिसमें हमारी परवरिश होती है।
जहां जलवायु गर्म है, वहाँ लोग जल्दी वयस्क होते हैं और जल्दी शादी करते हैं। हर व्यक्ति को ये समझने की जरूरत है कि 1400 सौ साल पहले का ज़माना आज के दौर से बिल्कुल अलग था। अब समय और इंसान दोनों बदल चुके हैं। नौजवान लड़कियों से शादी करना उस समय आम था। दरअसल उन्हें नौजवान लड़की नहीं बल्कि नौजवान महिला समझा जाता था। ये एक ऐतिहासिक तथ्य है कि यूरोप, एशिया और अफ्रीका में लड़कियों की शादी दस से चौदह साल की उम्र में की जाती थी। दरअसल दो सदी पहले अमेरिका में भी लड़कियों की शादी दस साल की उम्र में की जाती थी।
हज़रत आइशा सिद्दीक़ा की शादी पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से छह साल की उम्र में हुई थी लेकिन शादी दस साल की उम्र में मोकम्मल किया गया। जब एक लड़की तरुणाई की प्रक्रिया से गुज़रती हैं तो इस्लाम धर्म में उसे एक औरत और शादी के योग्य समझा जाता है। शायद हज़रत आइशा सिद्दीक़ा आठ साल की उम्र में तरुणाई को पहुंचीं।
मासिक धर्म से पहले के सिंड्रोम परिवर्तनों का एक ऐसा समूह जिसे माहवारी शुरू होने से पहले कोई भी लड़की समझ सकती है और महसूस कर सकती है। मासिक धर्म शुरू होने से पहले लड़कियों को सिर दर्द, चक्कर या पेट में तकलीफ हो सकती है। उन्हें अधिक रोने और कुछ उदासी का एहसास हो सकता है और वो हर चीज़ के बारे में ज़्यादा भावुक हो सकती हैं। मासिक धर्म से पहले के सिंड्रोम (PMS) के कारण लड़कियों का शरीर पानी ज़्यादा अवशोषित कर सकता है। शरीर के ज़रिए ज़्यादा पानी को अवशोषित करने का मतलब ये है कि मासिक धर्म के पहले और इसके दौरान शरीर तरल पदार्थों को बनाये रखने की कोशिश करता है।
सही बुखारी, वाल्यूम 5, किताब 58, नम्बर 234 में है।
हज़रत आइशा रज़ि. रवायत करती हैं :
जब मेरी उम्र छह साल थी तो पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ने मुझसे मंगनी की। हम मदीना गए और हमने बनी अलहारिस बिन ख़ज़रज के घर में ठहरे। इसके बाद मैं बीमार पड़ गई और मेरे बाल झड़ गए, दोबारा मेरे बाल आने पर मैं जब अपनी सहेलियों के साथ खेल रही थी तो मेरी माँ उम्मे रुमान, ने मुझे पुकारा मैं ये जाने बगैर कि वो मेरे लिए क्या करना चाहती हैं उनके साथ चली गई। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे घर के दरवाजे पर खड़ा कर दिया। इस समय में बेदम थी। जब मेरी सांस कुछ थमी तो, उन्होंने थोड़ा पानी लिया और उसे मेरे चेहरे और सिर पर मल दिया। फिर उसके बाद वो मुझे घर में ले गईं। मैंने इस घर में अंसारी औरतों को देखा जिन्होंने मुझे बधाईयाँ दीं। इसके बाद उन्होंने मुझे उनके हवाले कर दिया और उन्होंने मुझे (शादी के लिए) तैयार किया। अप्रत्याशित रूप से दोपहर से पहले, अल्लाह के नबी मेरे पास आये और मेरी माँ ने मुझे उनके हवाले कर दिया, और उस समय मेरी उम्र नौ साल थी।
लेकिन, ऐतिहासिक तथ्य हमें ये बताते हैं कि जब हज़रत आइशा रज़ि. पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के घर में पत्नी के रूप में आई तो उनकी उम्र लगभग उन्नीस साल थी और जो हदीस ऊपर ज़िक्र की गई वह संदिग्ध है, क्योंकि वो कुरान और पैगंबरे इस्लाम की शिक्षाओं के खिलाफ है।
इतिहास की किताब के वाल्यूम चार, पेज नंबर पचास पर इब्ने जज़ीर अलतिबरी लिखते हैं कि जाहिलियत के ज़माने में में हज़रत अबु बकर ने दो औरतों से शादी की थी, पहली पत्नी फ़तीला थी जो अब्दुल अज़ा की बेटी थीं और दूसरी उम्मे रूमान थी जिनसे अब्दुर्रहमान और आयशा रज़ि. का जन्म हुआ था। हज़रत अबु बकर के सभी बच्चों का जन्म जाहिलियत के ज़माने में हुआ था।
अब्दुर्रहमान ने बद्र में मुसलमानों के खिलाफ जंग लड़ी थी। उनकी उम्र इक्कीस या बाइस साल थी और वो आयशा रज़ि. से बड़े थे लेकिन उम्र में इन दोनों के बीच तीन से चार साल से अधिक का अंतर नहीं था।
शेख वहीदुद्दीन अपनी एक मशहूर किताब 'अहमल फी असमाउल रजा' (Ahmal fi Asma al-Rajja ') में लिखते हैं:
'शादी को मुकम्मल करने के वक़्त सैय्यदा आयशा रज़ि. कि उम्र 18-19 साल से कम नहीं थी।''
इस्लाम में शादी से पहले सभी शर्तों कुबूल करना ज़रूरी है। इस्लाम में शादी दो ऐसे लोगों के बीच एक लिखित समझौता है जो अपनी जिम्मेदारी और अपने कर्तव्यों को समझते हैं। एक बच्चा, शादी की जटिलताओं और बच्चों की परवरिश की समस्याओं से परिचित नहीं होते हैं। शादी की सभी तफसीलात (विवरणों) को जानना दोनों पक्षों के लिए ज़रूरी है और छह या नौ साल की उम्र में ज्ञान के इस स्तर को प्राप्त करनै नामुमकिन है कि वो इस तरह के परिपक्व निर्णय ले सके।
निम्नलिखित हदीस उसे पूरी स्पष्टता के साथ साबित कर देगी कि इस्लाम बच्चों की शादी की इजाज़त नहीं देता है:
पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया कि ऐ नौजवानों! तुममें से जो भी शादी के लायक है उसे शादी कर लेनी चाहिए, जो शादी के लायक नहीं है उसे ये सलाह दी जाती है कि वो रोज़े रखे इसलिए कि रोज़े रखने से जिंसी ताक़त (यौन शक्ति) में कमी आती है (अनुवाद सही बुखारी वाल्यूम- 7, किताब 62: [Wedlock (Nikah)] नम्बर- 3)
यहाँ नौजवानों के लिए एक अरबी शब्द (या माशरल शबाब) का इस्तेमाल किया गया है जिसका मतलब नौजवान मर्द और नौजवान औरत है।
सिर्फ नौजवान ही शादी कर सकते हैं, अगर वो मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, भावनात्मक और खासकर शारीरिक रूप से तैय्यार हों।
हाल ही में, अत्गा(Atgaa) (उम्र दस साल) और रीमया (Reemya) (उम्र आठ साल) की एक साठ साल के आदमी से होने जा रही शादी की खबर चैंकाने वाली है। उनका ये अमल न सिर्फ इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ है बल्कि ये मानव गरिमा के भी खिलाफ है।
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