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Gender Justice Jihad in Ramadan रमज़ान और लैंगिक न्याय के लिए जिहाद

 

डाक्टर अदिस दुदरीजा, न्यु एज इस्लाम

16 अगस्त, 2010

(अंग्रेजी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

हाल ही में रोज़ा इफ़्तार के सामुदायिक समारोह के मौके पर मैंने कई बातों का अनुभव किया जिसने मुझे इस्लाम में लैंगिक न्याय के संबंध में लोगों के व्यवहार के पीछे वास्तविक समस्याओं के बारे में सोचने के लिए मजबूर किया।

 इससे पहले कि मैं लिखूं, मैं ये बता देना आवश्यक समझता हूँ कि निम्नलिखित में मैं जो कुछ लिखूँगा इसका उद्देश्य खुद की प्रशंसा करना नहीं है, हालांकि अनचाहे ऐसा हो सकता है। जब मेरे अपने घर में लैंगिक न्याय की समस्या आती है तो मैं अपनी कोताहियों से भली भांति अवगत हूँ। मैं इस उम्मीद में ये लिख रहा हूँ कि इससे मेरे सहित मुस्लिम मर्दों में लैंगिक अन्याय के प्रति जागरूकता और चेतना के स्तर में वृद्धि होगी।

 मुझे स्पष्ट करने दें। मैं उस जगह (स्थानीय मुसल्ला) (पश्चिमी देशों में मुसल्ला उस जगह को कहा जाता है जहाँ दीनी क्लासेज़ और नमाज़े पढ़ी जाती हैं) समय से कुछ पहले पहुंचा मैंने इफ़्तार आयोजित करने वाले को सलाम किया और उनको धन्यवाद दिया और उनसे पूछा कि क्या किसी मदद की ज़रूरत है जैसे टेबल लगाने या खाना लगाने आदि में। चेहरे पर मुस्कान के साथ उन्होंने जवाब दिया कि यहां कई औरतें है जो ये काम कर सकती हैं और जो ये कर रही हैं। मैंने उस व्यक्ति के अलावा, एक अन्य व्यक्ति से जो साउण्ड सिस्टम को लगा रहे थे और बाथरूम क खोल रहे थे, बात की .  ये सभी औरतें ही थीं जो इफ्तार तैयार कर रही थीं जबकि पुरुष दूर आपसे में बातचीत कर रहे थे।

कुछ मिनट बाद जब रोज़ा इफ़्तार का समय हो गया मैंने रोज़ा खोलने के बाद महसूस किया कि शर्बत और खजूरें मुसल्ला की उस तरफ थी जिस ओर सभी मर्द थे।

मर्द जब रोज़ा इफ़्तार कर रहे थे तो औरतें मुसल्ला की दूसरी ओर इंतज़ार कर रहीं थीं, जब मैं उनमें से एक के पास पहुंचा, जिसे मैं जानता था, मैंने उससे कहा कि उस तरफ आएं जहां शर्बत रखे हैं तो दूसरी महिलाओं की ही तरह वो भी उस तरफ जाने में झिझक रही थी। मैंने उनकी और अन्य औरतों की तरफ इशारा किया कि ये वास्तव में वही लोग हैं जिन्होंने न सिर्फ खाना पकाया बल्कि यहाँ इन सब चीज़ों को व्यवस्थित की। मैंने ये भी कहा कि ये उचित कदम होगा अगर वो पहले अपना रोज़ा खोलें। कुछ महिलाओं, विशेष रूप से इनमें शामिल युवतियों ने इस तर्क को स्वीकार किया, लेकिन उनमें से कोई भी शर्बत और खजूरों से रोज़ा खोलने के लिए तैयार न थीं जबकि पुरुष अब भी उनका उपयोग कर रहे थे। इस तथ्य के बावजूद कि मुसल्ला छोटा है और कई औरतें बुजुर्ग और कमजोर हैं, फिर भी किसी मर्द ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

 मुझे गलत न समझें ये सभा जिसे उचित हद तक मैं जानता हूँ किसी भी तरह से रूढ़िवादी नहीं हैं और औरतों (या मिसाल के लिए मर्द) में से ​​बहुत कम अपने सार्वजनिक जीवन में पारंपरिक शैली के अनुसार रहती हैं और कठोर धार्मिक नियम और व्यवहार के मानदंड की तो बात ही छोड़ दीजिए।

बिल्कुल ऐसा ही खाने के समय भी हुआ। जबकि मैं इन औरतों में से एक, अन्य मर्दों के के आस पास, को ये बताते हुए विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहा था कि मैं खाना तब तक नहीं खाऊँगा जब तक कि कम से कम एक या कुछ औरतें पहले कुछ नहीं ले लेती हैं। जो कुछ मैंने कहा उसे समुदाय के मर्द नेताओं में से एक ने सुना, लेकिन वो न केवल चुप रहे बल्कि अनुमति दिए बिना सभी महिलाओं के सामने ही कतार में लगी महिलाओं को धक्का दे दिया। (स्वयं नियुक्त) इमाम जो प्रतीकात्मक रूप से भारी पगड़ी और अन्य Paraphiliacs के साथ 'मुसलमान' नज़र आते थे (जो कुरान की तिलावत, इस्लाम का ज्ञान, धूम्रपान की आदत और साथ ही साथ उनका व्यक्तित्व इमामत के लिए स्पष्ट रूप से उचित था उसने इसे सहर्ष स्वीकार किया था कि वो भी महिलाओं के साथ अन्याय और असंवेदना से अंजान थे।

वास्तविक सबूतों के आधार पर मुझे विश्वास है कि जो कुछ मैंने उपरोक्त में कहा वो बहुत सी दूसरी मस्जिदों/ मुसल्लों में भी होता होगा।

 ऐसा क्यों है कि बहुत से मुसलमान मर्द इस हद तक असंवेनशील हैं कि वो कुछ मुसलमान मर्दों और बहुत सी औरतों पर पश्चिमी संस्कृति के एजेंट होने का आरोप लगाते हैं? अत्यधिक चरम मामलों में ये असंवेदनशीलता मुसलमान मर्दों में महिला विरोधी विचारों और दुर्व्यवहार की उपस्थिति को स्पष्ट कर सकता है। ये शादी या माता पिता और बच्चे के बीच संबंधों के संदर्भ में हो सकता है?

रमज़ान के दौरान रोज़े रखने से क्या हासिल होगा अगर हम अपने ही बहनों की जरूरतों के प्रति संवेदनशील (या अंसवेनशील होने का चयन करते हैं) नहीं हैं? हम क्यों बुनियादी बातों के बजाय आसानी से और बगैर सवाल किए हुए ही दिखावों और भेस बदलने को स्वीकार करते हैं और इससे क्या फ़र्क पड़ता है?

मेरा व्यक्तिगत लक्ष्य और इच्छा है कि अन्य लिंग के प्रति इस रमज़ान में अपनी संवेदनशीलता को बेहतर बनाऊँ। उम्मीद है कि आप भी ऐसा करेंगे।

डॉक्टर अदिस दुदरीजा मेलबर्न विश्वविद्यालय के इस्लामिक स्टडीज़ विभाग में रिसर्च एसोसिएट है और न्यु एज इस्लाम के लिए नियमितरूप से कॉलम लिखते हैं।

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