आदिल सिद्दीक़ी (उर्दू से हिंदी अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम डाट काम)
दुनिया में इस वक्त हर चौथा आदमी मुसलमान है। हिंदुस्तान में इस्लाम धर्म को मानने वालों की तादाद हिंदुओं के बाद दूसरे नम्बर पर है। इस्लाम एक वैश्विक धर्म है। एक मोटे अंदाज़े के मुताबिक दुनिया में मुसलमानों की तादाद 70 करोड़ से भी ज़्यादा है। दुनिया की कुल आबादी का सातवाँ हिस्सा मुसलमानों का है। सातवीं सदी की शुरूआत में आखरी पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व.) के ज़रिए से इस्लाम दुनिया में आया। इसलिए कुछ लोग इसे मुहम्मदवाद भी कहते हैं। हालांकि ये कहना गलत है। हज़रत ईसा (अलै.) के ज़रिए स्थापित मज़हब को ईसाई धर्म के नाम से जाना जाता है, लेकिन पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) अल्लाह ताला की ओर से भेजे गये नबी थे। वो मज़हब को बनाने वाले नहीं थे बल्कि आपकी ज़ाते गिरामी के तुफैल में भेजा गया मज़हब इस्लाम है, जो कि अल्लाह की तरफ से भेजा गया मज़हब है। इसलिए ये मज़हब इस्लाम के नाम से जाना जाता है।
इस्लाम का अर्थ, सलामती और अमन है। इस्लाम धर्म सातवीं सदी की शुरुआत में अरब की धरती पर आया और सीरिया, फिलिस्तीन, मिस्र समेत उत्तरी अफ्रीका के देशों में फैल गया। इस्लाम पश्चिम में स्पेन तक फैल गया और पूरब में सिंध नदी तक आ गया। हिंदुस्तान में अरब व्यापारियों के ज़रिए दक्षिणी भाग में इस्लाम आया। उस वक्त चीन में भी इस्लाम तेज़ी से फैल रहा था। इस्लाम की शिक्षाओं को समझने के लिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) के जीवन के समझना बहुत ज़रूरी है।
क़ुरान मजीद बेशक एक आसमानी किताब है और इसमें इंसानी जिंदगी के जन्म से लेकर मृत्यु तक के सभी पहलुओं को अपने में शामिल रखा गया है। हमारे नबी हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) का जीवन क़ुरानी तालीमात की अमली तफ्सीर है। पश्चिमी देशों के बुद्धिजीवीयों और चिंतकों ने भले ही इस्लाम पर तरह तरह के ऐतराज़ात किये हों मगर इस बात पर वो भी सहमत है कि क़ुरान मजीद ही वो वाहिद किताब है जिसकी हिफाजत रोज़े अव्वल से जिस तरह की गयी है वो अपनी मिसाल आप है। किसी और तारीखी किताब, दरसी किताब या किसी भी मज़हबी किताब का तहफ़्फ़ुज़ इस अंदाज पर नहीं हुआ है जिस तरह कि कलामे पाक का। एक तरह से सीरते पाक का मुतालेआ कुरानी तालीमात का ही मुतालेआ है।
सीरते पाक का मुतालेआ से सार्वजिनक जीवन के इस्लामी उसूलों का बखूबी पता चलता है। आम ज़िंदगी में झगड़ा, लड़ाई, तकरार लाज़िमी है, इसलिए कि परवरदिगार ने हर इंसान के मिज़ाज़ अलग बनाया है। दुनिया में गंभीर, खुशमिज़ाज लोग भी हैं और ऐसे भी लोग हैं, जो ज़रा सी बात में तू तू मैं मैं करने लग जाते हैं। इसलिए क़ुरान मजीद की तालीम ये है कि जो लोग गुस्सा को पी जाते हैं और लोगों की ज़्यादती को माफ कर देते हैं, तो इस तरह अल्लाह ताला एहसान करने वालों को पसंद फरमाता है। अलबत्ता जो लोग बुराई करने वाले होते हैं और किसी की गलती माफ करने वाले नहीं होते हैं, वो हमेशा घुटन और परेशानी का शिकार रहते हैं। इसलिए झगड़े को तूल न देकर बातचीत न करने को जल्द से जल्द खत्म करने की ज़रूरत है।
इमाम अबु दाऊद (रह.) फरमाते हैं कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स.अ.व.) ने इरशाद फरमायाः “क्या मैं तुम्हें ऐसा अमल बताऊँ जिसका दर्जा नफली रोज़े, सदक़े औऱ नमाज़ से बढ़ कर है?” हमने अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के रसूल ज़रूर बताइए। आप (स.अ.व.) ने फरमायाः “वो है बात चीत न करने वाले लोगों के बीच सुलह करा देना।“ इस तरह से बुराई से दिल को साफ रखने का स्पष्ट निर्देश मौजूद है।
कई पत्नियों पर ऐतराज़ातः
दुर्भावना से ग्रस्त कई पादरी और सरसरी तौर पर मुतालेआ करने वालों ने नबी करीम (स.अ.व.) की सीरते पाक के हवाले से कई पत्नियों को लेकर एतराज़ात किये हैं और जनता में शंका पैदा करने की कोशिश की है।
अगर इस सिलिसले में ग़ौर से देखा जाये तो सच्चाई स्पष्ट होकर सामने आ जायेगी कि रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने 25 बरस की उम्र तक किसी औरत से किसी तरह का कोई सम्बंध स्थापित नहीं किया। हालांकि उम्र का यही वो हिस्सा होता है जिसमें इंसान जोशे जवानी में दीवाना नज़र आता है। पन्द्रह से पच्चीस बरस के दरमियान की नज़ाकतों को सभी मनोवैज्ञानिकों ने स्वीकार किया है। मगर ज़िंदगी के यही दिन नबी करीम (स.अ.व.) ने बड़े एहतियात के साथ गुज़ारे हैं। इस सिलिसले की दूसरी अहम कड़ी ये थी कि हज़रत आयशा सिद्दीक़ा (रज़ि.) के अलावा आपने जिन महिलाओं से शादी की वो सब बेवा (विधवा) औरतें थीं, जबकि सम्भोग के लिए शादी करने वाला कुंवारी और कमसिन लड़कियों को प्राथमिकता देता है, भले ही आदमी 60 बरस का हो। मगर फिर भी उसकी ख्वाहिश कुँवारी लड़की से ही शादी करने की होगी। इसलिए आपने ऐसी औरतों के साथ निकाह किये जो उम्र में आपसे पन्द्रह साल ज़्यादा और एक नहीं बल्कि दो शादियाँ कर चुकी थीं। हज़रत खदीजतुल कुबरा (रज़ि.) आप (स.अ.व.) की पहली बीवी थीं, जिस वक्त आप (स.अ.व.) ने उनसे निकाह किया था उस वक्त आपकी उम्र 25 बरस और उनकी बीवी की उम्र 40 बरस थी। हज़रत खदीजतुल कुबरा (रज़ि.) पहले अबु हाला बिन ज़रारह के निकाह में थीं उनके इंतेकाल के बाद अतीक़ बिन आयेद मख़ज़ूमी से शादी हो गयी और अतीक़ की वफात के बाद आप (स.अ.व.) के निकाह में आईं। हज़रत खदीजतुल कुबरा (रज़ि.) की वफात के बाद आपका निकाह सौदा (रज़ि.) से हुआ जिनकी उम्र पचपन साल थी, ये उनकी दूसरी शादी थी।
हज़रत रसूले पाक (स.अ.व.) के अहम मकसदों में से एक मकसद ये भी था कि लोगों को तालीम देना। तालीम को बच्चों तक पहुँचाने में महिलाओं का अहम रोल होता है। इस कदम से ये सच्चाई भी स्पष्ट हो जाती है कि इस्लाम में महिलाओं को किस तरह की इज्ज़त हासिल है। इस्लाम ने शुरू से ही महिलाओं की इज़्ज़त और अज़मत को पहचाना है और इस्लाम एक तरह से समाज सुधार का बेहतरीन तालीमी इदारा भी है। इन निकाहों के माध्यम से कबीलाई लोगों को इस्लाम से जोड़ा जा सका।
हज़रत रसूले पाक (स.अ.व.) ने क़ुरान करीम की वज़ाहत की रौशनी में जवाब दिया कि जिस तरह बेजान ज़मीन बारिश से पहले सूखी और बेरौनक़ होती है और बारिश आते ही ज़मीन लहलहाने लगती है, उसी तरह मुर्दा जिस्मों के लिए भी एक बारिश होगी जिससे मुर्दों में जान पड़ जायेगी।
संक्षेप में ये कि हज़रत रसूले पाक (स.अ.व.) की ज़िंदगी और तालीमात इसांन के जन्म से लेकर मृत्यु तक उसको राह दिखाती है। मदरसों के तालिबे इल्म इस्लाम के चिंतक बनकर उनकी शिक्षाओं को हर खास और आम तक पहुँचाएं तो इस धरती का नक्शा ही बदल जाए और इस्लाम को लेकर जो गतलफहमियाँ हैं उनको दूर किया जा सके। ऐसी हालत में जबकि कुछ इतिहासकार इसकी छवि बिगाडने की कोशिश कर रहे हैं। इस गलतफहमी को दूर किया जा सकता है कि इस्लाम प्रचार के ज़रिए फैला है न कि तलवार के ज़रिए।
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