अभिजीत, न्यु एज इस्लाम
दुनिया के हर माँ-बाप हमेशा अपनी औलाद के लिये बेहतर से बेहतर जीवनसाथी तलाश करतें हैं और ये कामना करतें हैं कि उनके बच्चे का जीवनसाथी ऐसा हो जो हर हाल में उसका साथ निभाये और उसे खुश रखे. पैगंबरे- इस्लाम और उनकी पहली पत्नी बीबी खदीजा ने भी अपनी बेटी बीबी जैनब के लिये एक बेहतरीन रिश्ता तय किया था और अपनी प्यारी बेटी का निकाह अबुल आस नाम के एक शख्स से किया था।
रोचक बात ये है कि जब रसूल साहब पर पहली वही नाजिल हुई और उन्होंने इस्लाम की तब्लीग आरंभ की तब उनकी बेटी बीबी जैनब ने तो इस्लाम कबूल कर लिया पर इनके दामाद अबुल आस मुसलमान होने के लिये तैयार नहीं हुए. इतना ही नहीं अबुल आस उनलोगों में से थे जो इस्लाम के सख्त मुखालिफ़ थे और जिन्होंने बद्र की जंग में रसूल साहब के खिलाफ जंग किया था. किसी को तलाक देने का मतलब जलील करना हर दौर में समझा जाता रहा है इसलिये मक्का के गैर-मुस्लिम सरदारों ने अबुल आस पर इस बात के लिये दबाब बनाना शुरू किया कि वो नबी की बेटी को तलाक दे दें पर अबुल आस ऐसा करने को तैयार नहीं हुए . जब ये बातें रसूल साहब ने पास पहुँची तो उन्होंने अबुल आस की प्रशंसा करते हुये कहा "अबुल आस ने बेहतरीन दामादी का परिचय दिया है"
बाद में जब बद्र की जंग हुई तब यही अबुल आस जंग के दौरान मुसलमानों के द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये. अबुल आस नबी की कैद में थे, नबी अगर चाहते तो अबुल आस से उनकी रिहाई के एवज में अपनी बेटी को तलाक देने को कह सकते थे पर नबी ने ऐसा नहीं किया क्योंकि वो हर सूरत में तलाक को नापसंद फरमाते थे।
रसूल साहब के सीरत की ये धटना तलाक को लेकर उनकी सोच को प्रतिबिंबित करती है। उनकी बेटी एक काफिर के निकाह में थी और शरीयत के अनुसार मुसलमान की बेटी किसी काफिर के निकाह में नहीं रह सकती तब भी नबी ने अबुल आस से अपनी बेटी को तलाक़ देने को नहीं कहा उल्टा जब उनके दामाद ने भड़काये जाने के बाबजूद बीबी जैनब को तलाक देने से मना कर दिया था तब नबी ने उनके बेहतरीन दामाद होने की बात कही थी। रसूल साहब उन्हें बेहतरीन इंसान भी कह सकते थे पर उन्होंनें दामाद शब्द का इस्तेमाल किया, इसका अर्थ ये है कि किसी भी बाप के लिये इससे दुःखद बात और कुछ नहीं हो सकती कि उसकी बेटी को तलाक देकर जलील किया जाये इसलिये जब अबुल आस ने उनकी बेटी को तलाक न दिया तो नबी के दिल को ठंढ़क पहुँची और उन्होंनें अबुल आस की प्रशंसा की।
अफ़सोस और तकलीफ इस बात पर है कि आज के मौलवी और उलेमा नबी की सीरत की इस घटना को न तो बयान करते हैं और न ही तलाक पर अपने नबी की सोच पर गौरो-फ़िक्र करते हैं. हलाला के लिये खुद को पेश करने की हवस , औरतों को जलील करने और गुलाम बनाये रखने की ओछी सोच वाले मौलानाओं के लिये ही तो रसूल साहब ने फरमाया था कि एक ऐसा बदनसीब जमाना आने वाला है जब इस्लाम सिर्फ नाम का रह जायेगा और कुरान सिर्फ रस्मी तौर पर बाकी रहेगी और उस जमाने के मौलाना आसमान के नीचे की बदतरीन मख्लूक होंगे, उनमें से फितने निकलेंगे और फिर उन्हीं में लौट जाया करेंगे.
अभिजीत मुज़फ्फरपुर (बिहार) में जन्मे और परवरिश पाये और स्थानीय लंगट सिंह महाविद्यालय से गणित विषय में स्नातक हैं। ज्योतिष-शास्त्र, ग़ज़ल, समाज-सेवा और विभिन्न धर्मों के धर्मग्रंथों का अध्ययन, उनकी तुलना तथा उनके विशलेषण में रूचि रखते हैं! कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में ज्योतिष विषयों पर इनके आलेख प्रकाशित और कई ज्योतिष संस्थाओं के द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिन्दू-मुस्लिम एकता की कोशिशों के लिए कटिबद्ध हैं तथा ऐसे विषयों पर आलेख 'कांति' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। इस्लामी समाज के अंदर के तथा भारत में हिन्दू- मुस्लिम रिश्तों के ज्वलंत सवालों का समाधान क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाशने में रूचि रखते हैं।