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Hindi Section ( 11 May 2015, NewAgeIslam.Com)

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Islam, Muslims and Terrorism इस्लाम, मुसलमान और आतंकवाद

 

 

अब्दुल मोईद अज़हरी, न्यु एज इस्लाम

7 मई 2015

मुसलमान वह है जिसकी ज़ुबान और हाथ से दूसरे मुसलमान सुरक्षित रहें, जो पड़ोसी को भूखा न सोने दे, जो वादा को पूरा करे चाहे इसके लिए जान-माल की कुर्बानी ही क्यों ना देनी पड़े।, मुसलमान वह है जिसकी अमान  में सब सुरक्षित रहें जो तीर और तलवार की जगह नैतिकता और चरित्र से फैसला करे जो तलवार तभी उठाए जब दुश्मन हमलावर हो। हमले में महिलाओं, बच्चों, बूढ़ों, गैर मुसल्लेह, घायल और हथियार डाल चुके सैनिकों पर वार न करे । किसी भी धार्मिक नेता और निर्दोष के साथ ज़्यादती न करे, किसी भी धार्मिक पूजा स्थल को ध्वस्त न करे। खेतों, पेड़ों और जानवरों को नुकसान न पहुंचाए। पैगंबर ए इस्लाम ने हदीसों में मुसलमानों की यही पहचान बताई है। कुरान ने भी इस्लाम का यही अर्थ और उद्देश्य बताया है। इतिहास ने भी मुसलमानों के संबंध में इन्हीं गुणों को अपने यहाँ जगह दी है।

जैसे जैसे हम रसूल, आले रसूल और उनके असहाबा के ज़माने से दूर होते गए। कुरानी आयात का पालन करना हमारे लिए मुश्किल होता गया। इस्लामी शिक्षा किताबों में बंद हो गई, किताबें पुस्तकालयों में और उनकी चाबी जाहिलों के हाथों में आ गई। कुरान की शिक्षा और इस्लाम की तालीम आज भी वही है जो पैगम्बर ए आज़म के दौरे अरब में थी! फ़र्क इतना है कि हम ने उस पर अमल करना छोड़ दिया जिसकी वजह से एक विकसित क़ौम आज गिरावट का ऐसा शिकार हुई कि दौरे जाहिलियत से भी बुरा हाल हो गया। यही कारण है कि आज इस्लाम और मुसलमानों में बड़ा अंतर नजर आता है। और मुसलमान पिछड़ेपन और अपमान में डूबता चला जा रहा है।

मुसलमानों के ज़वाल के कई कारण हैं:

मुसलमानों ने अपना  इतिहास भुला दिया. मुसलमानों ने जब अपने अस्लाफ और उनसे मुंसलक आसार की तारीखों को फ़रामोश करना शुरू कर दिया तभी से गिरावट आने लगी. त्याग और बलिदान के घटनाओं से भरी हमारी ज़िंदगी हमारे हौसले बुलंद करते थे और हमारे जीवन का पूरा मार्गदर्शन भी करते थे। हम अपने जीवन में उन्हीं छापों और प्रभाओं पर चलते हुए सफलता हासिल करते थे। जब से अस्लाफ और अकाबरिने इस्लाम का उल्लेख हमारे घरों से समाप्त हो गया, हमारे बच्चों के तालीम में अन्य अनावश्यक और भौतिकवादी कहानियाँ प्रवेश कर गई हैं। हम अपनी ज़िंदगी का रुख उसी नग्नता से त्रस्त सभ्यता को देखकर तय करने लगे। हमारे बच्चे  इस्लाम के इतिहास और अस्लाफ से अपरिचित हो गए, उनकी तर्बियत  बुनियादी और आवश्यक तालीम से खाली हो गई। अस्लाफ ने जिस नैतिकता और चरित्र का प्रदर्शन किया, कुरान की  तालीम पर अमल कर जो जीवन बिताया और हमें इस्लामी शिक्षाओं का पालन करने के लिए जो नमूना दिया, हमने अपने जीवन और तर्बियत से इस नमूने को खारिज कर दिया। सही तालीम न होने की वजह से आमाल के साथ साथ ईमान और यक़ीन  भी कमजोर होने लगा।

दावत व तबलीग़ का जज़्बा ख्त्म हो गया.  तबलीग आज के दौर में एक पेशा बन गया। अपने अपने उद्देशों की प्रार्ती के लिए दावत व तबलीग़ का उपयोग शुरू हो गया। विद्वानों के भाषण, धार्मिक प्रचारकों के उपदेश बेअसर बल्कि बेमानी हो ते जा रहे हैं। खुद उनकी ज़ुबान और अमल में फ़र्क नज़र आ रहा है। एख़लास दिल से निकल चुका है. तक़रीरें राजनीतिक दलों की भ्रष्ट राजनीति का शिकार हो गईं। एक दूसरे के समर्थन और विरोध ने धार्मिक रंग ले लिया। विद्वान, जिनका काम सही को सही और गलत को गलत कहना था, राजनीतिक समर्थन और विरोध में गिरफ्तार हो गए। समर्थन में गुण और विरोध में कमियां निकालना उनका पेशा बन गया। उन्होंने इस काम को भी बड़ी बेदर्दी से धर्म का नाम दे दिया।

सीरत ए रसूल का अध्ययन बंद कर दिया| मुसलमानों के ज़वाल की यह सबसे बड़ी वजह है. क़ुरान ने साफ शब्दों में कहा है कि पैगम्बर ए आज़ाम की ज़िंदगी हमारे लिए नमुन ए हयात है। यह ज़िंदगी के हर शोबा में  हमारा मार्गदर्शन और प्रतिनिधित्व करती है। यह सच है अगर हम सीरत रसूल का अध्ययन करते तो दावत व तबलीग़ को कभी पेशा न बनाते.  उपदेश व नसीहत का कारोबार न होता। मदरसों व मस्जिदों का जीवन व्यापन के लिए इस्तेमाल न होता। आज केवल भारत में हजारों से अधिक दल, संगठन, संस्थान और जमातें हैं जो दावत व तबलीग़  के नाम पर अस्तित्व में आईं लेकिन अफसोस सब अपना अपना व्यापार करने में लगी हैं। मिल्लत की चिंता किसी के व्यावहारिक मंसूबों में शामिल नज़र नहीं आती|  यहां तक ​​कि सजदों की सौदेबाजी और तदबीर के व्यापार से भी परहेज नहीं है।

इस्लाम विरोधी तत्व शुरू से ही इस्लाम विरोधी गतिविधियों में मसरूफ़ रहे हैं। जहां भी जब भी मौका मिला मुसलमानों को नुकसान पहुंचाने की हर संभव कोशिश की है। इस्लाम की सबसे बड़ी शक्ति एकता को तोड़ने के सैकड़ों तदबीरें कीं. मसलमानों के धैर्य का बार बार इम्तेहान लिया। मुसलमानों को इतना तितर बितर कर दिया कि वह अपने आंतरिक समस्याओं को हल करने में सारी ताकत लगाए  हुए हैं.   मसलमान के आपसी बिखराव की सबसे बड़ी वजह यही नज़र आती है कि उसने इस्लाम की शिक्षाओं का पालन करना छोड़ दिया और पैग़म्बर आज़म के जीवन से मार्गदर्शन प्राप्त करना भी बंद कर दिया।

मुसलमान न तो सीरत ए रसूल का अध्ययन करता है और न ही उसे अपने जीवन में अपनाता है। नतीजा यह हुआ कि आपसी रंजिश और मतभेद ने क़त्ल व ग़ारत गिरी का माहौल बना दिया। जो खून बहाने को इस्लाम ने मना किया, आज मुसलमान उसी में तर बतर नजर आता है। उच्च नैतिकता और नरम गुफ्तार 'से बिल्कुल खाली हो गया है। सख़्त कलामी और बद किर्दारि ने उसे घेर लिया है. इस्लाम तो पूरी तरह शांति और सुरक्षा का धर्म है लेकिन मुसलमान उग्रवाद और आतंकवाद का शिकार होते जा रहे हैं।

युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं। मौजूदा दौर में युद्ध संस्कृति आम होती जा रहा है। हथियारों का कारोबार ज़ोरों पर है इंसानियत का खून हो रहा है। अजीब सा माहौल बन गया है जिसमें हर समस्या का समाधान बंदूकें करती हैं। हथियारों का उपयोग धार्मिक होता जा रहा है. जो धर्म, नैतिकता, चरित्र, भाईचारे और भाई चारगी की शिक्षाओं के लिए आया। अब इसका बढ़ावा असलहों के बल पर करने की शर्मनाक कोशिश की जा रही है।

आज मुसलमानों पर दोहरी जिम्मेदारी आन पड़ी है। जहां एक ओर इस्लाम की सही व्याख्या दुनिया के सामने पेश करने की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर यह भी जरूरी हो गया है कि इस्लाम के नाम पर हो रही इस उग्रवाद और आतंकवाद की सख्ती से निंदा की जाए. अपने घर, पास पड़ोस के विचारों का पता लगाया जाए. हर इस्लामी शिक्षा स्थलों पर खुद से नज़र रखी जाए. कहीं इन आतंकवादी आंदोलनों का हमारे युवाओं पर प्रभाव तो नहीं हो रहा है। इस फ़िक्र  में शामिल हर दल और संगठन का पूरी तरह बहिष्कार किया जाए. अपनों के साथ दूसरों को भी इस्लाम की सही शिक्षाओं से परिचित कराया जाए. इस्लाम में अत्याचार का बदला ज़ुल्म  नहीं है। इस शिक्षा को भी आम किया जाए. भारत में मुसलमानों का आठ सौ साल से अधिक पुराना इतिहास है। यहाँ बुजुर्गों और सूफियों के माध्यम से इस्लाम की शिक्षा दी गई। हम पर वाजिब है कि इन सूफियों के जीवन को सब के सामने रखें और खुद भी इस पर नज़र ए सानी करें। चूंकि हम भारत में रहते हैं। हर भारतीय मुसलमान पर यह अनिवार्य होता है कि वह ऐसी फ़िक्र की निंदा करे और खुद से यह जिम्मेदारी महसूस करे कि उसे  आतंकवादी सोच पर पूरी नज़र रखना है. कहीं यह हमारे दामन में तो नहीं परवरिश पा रहा है. या हमारी आस्तीन में छुप कर तो नहीं पनप रहा है.  विचार करें. क्या पता कल समय मिले न मिले।

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