मुजाहिद हुसैन, न्यु एज इस्लाम
31 मई, 2014
गुजराँवाला की एक गर्भवती महिला को लाहौर हाई कोर्ट परिसर में पुलिस की मौजूदगी में उसके नाराज़ अभिभावकों ने साथियों सहित उसे पत्थरों से मार मार कर खत्म कर दिया और भागने में कामयाब हो गए। संयुक्त राष्ट्र से लेकर दुनिया के कई देशों ने इस भयानक घटना पर अफसोस व्यक्त किया है जिसके बाद प्रधानमंत्री ने आरोपियों की शीघ्र गिरफ्तारी के आदेश जारी कर मामले में सरकारी रुचि का सुबूत प्रदान कर दिया है। इसके बाद क्या होगा, पाकिस्तान में पुलिस जांच, राजनीतिक दबाव और अंत में न्यायिक फैसलों के तार्किक परिणाम के बारे में आसानी के साथ राय बनायी जा सकती है। पाकिस्तान में हर साल हज़ारों महिलाओं को सम्मान के नाम पर हत्या कर दी जाती है और सौ फीसद घटनाओं में मृतका के परिजन अपने रिश्तेदार आरोपियों को माफ कर देते हैं। अक्सर मृतका के माँ बाप मामलों में वादी करार पाते हैं जो पुलिस जांच के बाद न्यायिक सुनवाई के पहले चरण में आरोपियों जो आम तौर पर उनके बेटे भांजे होते हैं, उन्हें माफ कर देते हैं और इस तरह एक पीडित औरत न्याय से वंचित रह जाती है।
एक हिंसक रुझान वाले पुरुष प्रधान समाज में औरत की ज़िंदगी उसके परिजनों और रिश्तेदारों पर निर्भर होती है, अगर वो चाहें तो औरत को ज़िंदगी जीने का मौका मिल सकता है, अन्यथा एक भयानक मौत उसके बिल्कुल सामने मौजूद रहती है। मामला बलात्कार से सम्बंधित हो या यौन उत्पीड़न किए जाने के बारे में अंत में झुकना और नुकसान सहना औरत का मुक़द्दर बन चुका है। और अगर वो अपनी इच्छा से धर्म और कानून द्वारा प्रदत्त अधिकारों के मुताबिक वयस्क होने पर अपनी मर्ज़ी से किसी वयस्क पुरुष से शादी करना चाहे तो उसका एक ऐसे वहशी पागलपन से वास्ता पड़ता है कि जिसमें उसकी मौत अपरिहार्य हो जाती है।
हम चूंकि अपने स्थापित सामाजिक व्यवहार में महिलाओं के अधिकारों की बात को अपने खुद से तैयार किये गये सम्मान के सिद्धांतों के खिलाफ समझते हैं इसलिए पाकिस्तान में मानवाधिकार या खासकर महिलाओं के अधिकारों की बात करना एक अपराध का रूप ले चुका है। हमारा राष्ट्रीय संवाद ये है कि जो व्यक्ति या संगठन पाकिस्तान में मानव अधिकारों की बात करे वो निश्चित रूप से इस्लाम दुश्मन, समाज का दुश्मन और देश का दुश्मन है क्योंकि अधिकार और विशेषकर महिलाओं के अधिकारों की बात के अंदर एक विद्रोह छिपा होता है, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के बेहद धार्मिक समाज को तबाह व बर्बाद करना है। पाकिस्तान की महिलाओं को इस बात पर उकसाना है कि वो धर्म और राज्य के प्रदान किये गये अधिकारों को प्राप्त करने के लिए अपना मुंह खोलें और अगर उन्होंने ऐसा कर दिया तो न केवल हमारा धर्म विनाश की ओर अग्रसर हो जाएगा बल्कि हमारे देश और समाज भी नरक बन जाएगा।
मिसाल के तौर पर इस्लाम इस बात की अनुमति देता है कि एक वयस्क महिला शादी के लिए पति के चुनाव का अधिकार रखती है और अगर वो राज़ी न हो तो धर्म के अनुसार शादी अंजाम नहीं पा सकती, लेकिन हम जो समाज की ठेकेदारी अपने सिर ले चुके हैं, हम ये नहीं चाहते कि महिला हमारी इच्छा के बिना अपने जीवन साथी का चुनाव करे और जो फैसला हम करें उससे वो इंकार न करे। अगर वो अल्लाह के प्रदान किये गये अधिकारों का उपयोग करते हुए अपने पति के चुनाव में निजी फैसला करे तो हम उसे सज़ा देंगे क्योंकि उसने हमारा फैसला क्यों स्वीकार नहीं किया। अगर महिला इस्लाम और राज्य के कानूनों में निर्धारित अपने अधिकारों के बारे में आवाज़ उठाए तब भी वो बाग़ी है।
हम महिलाओं को अपनी ज़मीन, मकान और संपत्ति में वो अधिकार भी नहीं देना चाहते जो अधिकार उसे अल्लाह और अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम देते हैं। प्रसिद्ध प्रगतिशील बुद्धिजीवी तारिक़ अली ने अपनी ताज़ा किताब में लिखा है कि देश में पीपुल्स पार्टी जैसी प्रगतिशील राजनीतिक पार्टी जो पाकिस्तान की जनता को उनका हक दिलाने का नारा इस्तेमाल करके वोट लेती है, उसके एक संस्थापक लीडर ने अपनी चार बहनों की शादी इसलिए कुरान से कर दी ताकि उसे अपनी ज़मीन में हिस्सा न अदा करना पड़े जो शरीयत के अंतर्गत महिलाओं का अधिकार है। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हम जिस समाज के वासी हैं वहाँ महिला की हालत क्या है और हम किस कदर मुनाफिकत भरे माहौल में सांस ले रहे हैं।
चूंकि लाहौर हाई कोर्ट में होने वाली इस हत्या की भीषण वारदात के बाद सरकार हरकत में आ चुकी है और निश्चित रूप से सभी आरोपी भी गिरफ्तार हो जाएंगे और कोई शक नही कि इनमें से कुछ किसी पुलिस इंकाउण्टर का शिकार हो जाएं, जिस के बाद सरकारी अधिकारी ये सुनिश्चित कर लेंगे कि न्याय हो चुका है, इसलिए किसी अगली त्रासदी तक इस बारे में चुप्पी साधना बेहतर है। पंजाब के मुख्यमंत्री लगभग हर सप्ताह लाहौर से आपात रूप से यात्रा करके ऐसे क्षेत्रों में पहुंचते हैं जहां इस प्रकार की कोई वारदात होती है और पीड़ित परिवार या महिला को न्याय का आश्वासन देते हैं लेकिन आज तक वो राज्य विधानसभा में ऐसी कोई मुहिम नहीं चला सके कि महिलाओं के साथ इस तरह के अत्याचार का पूरी सफाया हो सके। सरकार ऐसे कानून बनाये कि ऐसी घटनाओं को पूरी तरह से रोका जा सके। मुख्यमंत्री की सारी महंगी और आपात यात्राएं पंजाब में महिलाओं के साथ अत्याचार व बलात्कार की घटनाओं को कम करने में कोई भूमिका अदा नहीं कर सकीं लेकिन ऐसी घटनाएं खुद चलकर मुख्यमंत्री कार्यालय के आसपास सामने आने लगी हैं। इसका मतलब ये है कि ये कोई व्यक्तिगत समस्या नहीं है और न ही इसको चयनित घटनाओं पर त्वरित प्रतिक्रिया से रोका जा सकता है बल्कि इसकी प्रकृति सामूहिक है और इसका सम्बंध सामूहिक सामाजिक दृष्टिकोण के साथ है, जिसके रोकथाम के लिए अधिक व्यापक योजना की ज़रूरत है। वो योजना कौन बनायेगा ये अभी सरकार और उसके अधिकारियों को पता नहीं चल सका।
ये एक ऐसी गंभीर समस्या है जिसके लिए सही दिमाग़ का होना बहुत ज़रूरी है, जहां स्थिति ये हो कि देश की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी के नेता ये सलाह दें कि जिस महिला के साथ बलात्कार हो जाए उसका चुप रहना ही बेहतर है, वहां सोशल मीडिया से राजनीतिक और सामाजिक चेतना की ताकत प्राप्त करने वाले बहुसंख्यकों की मानसिक स्थिति का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं।
समाज भीड़ के रूप में बदला लेने और अपराध के लिए उकसाने की तरफ बढ़ता जा रहा है। जो एक राज्य के सामाजिक मौत के सामन है। जहां पीड़ित के अधिकार की बात करना अपराध हो वहां अपराधियों की शक्ति और समर्थन जैसे कारकों को रोक देना एक मुश्किल काम हो जाता है। यही स्थिति हमारे समाज की है और इसके सुधार की सम्भावनाएं कम से कमतर होती जा रही हैं। हमारे यहाँ फतवा देने वालों की भरमार है लेकिन समाज में न्याय और अधिकारों की प्राप्ति के लिए काम करने वाले व्यावहारिक कार्यकर्ताओं की संख्या न के बराबर है। जो लोग इस बारे में कुछ करते आए हैं हम उन्हें खारिज कर चुके हैं और उन्हें न केवल इस्लाम दुश्मन बल्कि समाज दुश्मन करार देकर बेअसर और असुरक्षित बना चुके हैं।
यही वजह है कि अब हमारे पास केवल हमलावर बाक़ी हैं जो किसी को भी बिना सिद्ध हुए अपमान के आरोप में सरेआम मार देते हैं या सम्मान की अवधारणा के तहत अदालतों के परिसर में पत्थरों से मार मार कर जान ले लेते हैं, कोई उन्हें रोकने वाला नहीं। आश्चर्यजनक बात ये है कि समाज औरत की इज़्ज़त व आबरू के ऊँचे ऊँचे दावे करता है और उसी समाज में महिलाओं की स्थिति दयनीय है। कोई सरे बाज़ार बेरहमी से क़त्ल हो जाती है, किसी को ताक़तवर दुश्मन सरे बाज़ार बे आबरू कर देता है, कोई बलात्कार के बाद न्याय हासिल करने की कोशिश में जल मरती है, किसी को तेज़ाब झेलना पड़ता है और किसी को न्याय के कटहरों के ठीक सामने पत्थरों से मार मार कर आखरी नींद सुला दिया जाता है। जिस सम्मान की अवधारणा के तहत हम अकड़ते फिरते हैं, हवा में फूँके मारते हैं और न जाने क्या बाते करते हैं, वो सम्मान हमारी आंखों के सामने तार तार हो जाता है। एक पीड़ित महिला की मौत मुख्य रूप से पूरे समाज की मौत है, जिसके बारे में सोचने की ज़रूरत है। इससे भी अधिक इस बात से परेशान होने की ज़रूरत है कि हम सामूहिक रूप से मौत को पसंद करने वाले क्यों होते जा रहे हैं?
मुजाहिद हुसैन ब्रसेल्स (Brussels) में न्यु एज इस्लाम के ब्युरो चीफ हैं। वो हाल ही में लिखी "पंजाबी तालिबान" सहित नौ पुस्तकों के लेखक हैं। वो लगभग दो दशकों से इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट के तौर पर मशहूर अखबारों में लिख रहे हैं। उनके लेख पाकिस्तान के राजनीतिक और सामाजिक अस्तित्व, और इसके अपने गठन के फौरन बाद से ही मुश्किल दौर से गुजरने से सम्बंधित क्षेत्रों को व्यापक रुप से शामिल करते हैं। हाल के वर्षों में स्थानीय,क्षेत्रीय और वैश्विक आतंकवाद और सुरक्षा से संबंधित मुद्दे इनके अध्ययन के विशेष क्षेत्र रहे है। मुजाहिद हुसैन के पाकिस्तान और विदेशों के संजीदा हल्कों में काफी पाठक हैं। स्वतंत्र और निष्पक्ष ढंग की सोच में विश्वास रखने वाले लेखक मुजाहिद हुसैन, बड़े पैमाने पर तब्कों, देशों और इंसानियत को पेश चुनौतियों का ईमानदाराना तौर पर विश्लेषण पेश करते हैं।
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