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Hindi Section ( 10 Aug 2012, NewAgeIslam.Com)

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Defending The Hadith And Its Compilers – The Great Imams Who Are Sometimes Misunderstood And Even Reviled हदीस और उनके संकलनकर्त्ताओं का बचाव: आदरणीय इमाम जिनकी हतक की गयी

 

मोहम्मद यूनुस, न्यु एज इस्लाम

सह लेखक (अशफाक अल्लाह सैयद के साथ), इस्लाम का असल पैग़ाम, आमना पब्लिकेशन, यूएसए 2009

23 जुलाई, 2012

(अंग्रेजी से अनुवाद- समीउर रहमान, न्यु एज इस्लाम)

कुछ हदीसों को कमजोर और मन घड़ंत समझा जाता है। साहसी और योग्य समीक्षक डॉ. शब्बीर अहमद इनको "अजीब, भड़काऊ और भयानक बयान" के शब्दों के साथ याद करते हैं [2] अगर ये मौजूदा समय की बात होती तो उन्हें ऐसे ही शब्दों में याद किया जाता। इस दौर में ये  एक बीमारी के कारण की सरल व्याख्या से लेकर बहुत ही बेवकूफी भरे विचार तक हो सकते हैं जो कि सभी इस्लाम विरोधी वेबसाइटों पर बड़ी संख्या में मौजूद है और जो बड़ी सावधानी से डाक्टर शब्बीर अहमद के प्रकाशन इस्लाम के मुजरिम' में दर्ज हैं, जो इस वेबसाइट पर भी उपलब्ध है। लेकिन, सबसे ज़्याद दुर्भाग्यपूर्ण हिस्सा इस तरह की हदीसों के विषयों में नहीं है- चाहे वो नैतिक रूप से सबसे ज़्यादा विरोधी, सबसे ज़्यादा आक्रामक या महिलाओं के लिए अपमानजनक, वैज्ञानिक रूप से जिनका समर्थन न किया जा सके और जो हमारे पैगंबर सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम की सबसे अपमान करने वाली हों, हमारे विश्वास को बुरे रूप में पेश करने वाली हों और जो कुरान के संदेश के परस्पर विरोधी हों बल्कि वास्तविकता ये है कि रूढ़िवादी लोगों ने इस्लामी कैलेंडर के पांचवीं शताब्दी के आसपास हदीस को खुदा की तरफ से आने वाली वही के रूप में फतवा देने के बाद से, इनकी समीक्षा एक हजार साल तक नहीं की। इस्लामी कानून के माध्यमिक ज़रिए के रूप में हदीस, सम्मान के अधिकारी  थे, वास्तविकता ये है कि उनके संकलनकर्त्ताओं ने स्पष्ट रूप से, आने वाली पीढ़ियों को गैर प्रामाणिक और आपत्तिजनक हदीसों की मौजूदगी के बारे में चेतावनी दी थी।

इस तरह हदीस के पहले संकलक, इमाम मोहम्मद इब्ने इस्माइल बुखारी (194-256 हिजरी / 810-870 ईस्वी) ने ऐलान किया:

"लोग क्यों इन शर्तों को थोपते हैं जिनका ज़िक्र अल्लाह की किताब (किताबुल्लाह) में नहीं है? जो ऐसी शर्तें लगाता है जैसा कि अल्लाह के क़ानून में नहीं हैं, फिर ये शर्त बातिल हैं चाहे वो ऐसी सौ शर्तें लागू करे अल्लाह की शर्त (जैसे कि कुरान में बयान किया गया है) हक़ीक़त और  ज़्यादा दुरुस्त हैं"[3]

हदीस के दूसरे महान संकलक, इमाम मुस्लिम इब्ने अलहज्जाज, (202- 261 AH / 817-875 ईसवी), जो इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैहि की तरह ईरान से आए थे, उन्होंने भी कई हदीसों के प्रमाणिक होने पर संदेह जताया था जिसे उन्होंने अपने संकलन में दर्ज किया था। उन्होंने अपने संदेह को अलग अंदाज़ में दर्ज करते हुए एक आलिम की मिसाल दी है जो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के ज़माने के बाद की सात से आठ पीढ़ियों के बाद हदीसों को बयान करने वाले (रावी) और उसे भेजने वाले (ट्रांस्मीटर्स) के बीच निजी मुलाकात के सबूत की मांग का हवाला दिया है। तो वो कहते हैं:

 "अगर हम इन सभी हवालों पर बात करेंगे जो आलिम लोगों के अनुसार प्रमाणिक (सही) थीं और आलोचना करने वाले विद्वान इस पर शक करते हैं तो हम थक जाएंगे (क्योंकि उनकी संख्या बहुत बड़ी है)"। ये तर्क अपनी प्रक्रिया में अनोखा है, और ये गलत है कि प्रारंभिक विद्वानों का इसमें विश्वास नहीं था। जो लोग बाद में आए उनका इससे इनकार न तो इसके रद्द के लिए कोई आधार ह..... और पढ़े लिखे लोगों के धर्म में क्या गलत है इसके लिए खुदा है जो इससे इन्कार करने के लिए है और मेरा इस पर यक़ीन है "[4]

हदीस क्या है और मौजूदा संकलन कैसे तैयार हुआ?

इस्लाम से पहले, अरबों के पास कोई धार्मिक किताब नहीं थी। वो जनजातियों में बँटे हुए थे और हर क़बीले के संस्कार व रिवाज और मूल्य उनके मूल नीति या उनके पूर्वजों के 'रास्ते' पर आधारित थी, जिसे सुन्नत कहा जाता था। यह शब्द एक नैतिक स्तर को दर्शाता है जिसने जनजातीय लोगों के कहानियाँ बनाने वाले हिस्से के रूप में काम किया, इसलिए उसकी अमूर्त प्रकृति के होने के नाते, इसको एक कहानी, एक कहावत या आम लोगों को समझ में आए ऐसी परंपरा की ज़रूरत थी। इस तरह की कहानी, विवरण को हदीस के रूप में जाना जाता था। कुरान ने इस पद को प्राचीन कहानी (12:6, 23:44, 79:15 85:17), एक संदर्भ (4:42, 45: 6), एक सच्चा संदर्भ या भाषण (784:, 4:87), बातचीत या बहस का एक विषय (4:140, 6:68), सामाजिक बातचीत (33:53) और उसकी अपनी चर्चा (45:6 , 52:34,53:59, 44:68) कहा।

हदीस का पहला संकलन (इमाम बुखारी रहमतुल्लाह के द्वारा) नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इंतेकाल के बाद कम से कम दो सदियों या सात से आठ पीढ़ियों के बाद शुरू किया गया। इस अवधि के दौरान हदीस की परिभाषा बहुत बदल गई। इस्लाम की दूसरी शताब्दी के मध्य के आसपास तक हदीस में मानक तरीकों और पांच-छः पीढ़ियों के सभी प्रमुख लोगों की मिसालें शामिल थीं। क्योंकि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के दौर से प्रमुख लोगों- विद्वानों, विशेषज्ञों कानून, प्रशासन से जुड़े विशेषज्ञों, जर्नलों, गवर्नरों आदि की संख्या में पीढ़ी दर पीढ़ी तेजी से वृद्धि हुई, हदीसों की संख्या में भी इसी तरह तेजी से वृद्धि हुई। इसने काफी उलझन पैदा कर दी, ये न सिर्फ उनकी संख्या को लेकर थी बल्कि उनके विभिन्न अवधियों और स्थानों के बारे में भी थी जिसके कारण कई हदीसें आपस में परस्पर विरोधी हो गईं, जैसे किसी ऐतिहासिक काल में कोई मापदण्ड था किसी दूसरे क्षेत्र या इसी काल में गुज़रे ज़माने के साथ मापदण्ड पुराना हो गया। इस्लाम के सबसे बड़े कानून विशेषज्ञ अलशाफ़ई रहमतुल्लाह ने इसका हल ये निकाला कि वो सभी हदीसें जिनका आरम्भ नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के अलावा किसी और से हुई उसको नज़रअंदाज़ कर दिया  जाये। लेकिन जैसे जैसे वक्त गुज़रता गया नए हालात और उभरती हुई वास्तविकता से निपटने के लिए नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के नाम पर हदीसें पेश की गईं। इस तरह अलशाफ़ई रहमतुल्लाह के लगभग पचास साल बाद प्रारंभिक इमामों के द्वारा संकलन के समय कथित तौर पर कई लाख हदीसें लोगों के जबान पर थीं और सबको नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के कथन से जोड़ कर पेश किया जाता था।

हदीसों के बढ़ने पर ऐतिहासिक कारकों के प्रभाव

पीढ़ी दर पीढ़ी हदीसों की संख्या में वृद्धि अपरिहार्य रूप से उस समय के लोकप्रिय ऐतिहासिक कारकों से प्रभावित था, जिसमें निम्नलिखित शामिल थे:

         परिवारिक शासकों, साथ ही साथ व्यक्तिगत हितों वाले लोगों द्वारा जाली हदीस का परिचय कराया जाना ताकि उनके उद्देश्य हल हो सकें और अपने कार्य को वैध साबित कर सकें।

        क़ानून के कई विशेषज्ञों ने अपने क्षेत्र की प्रक्रिया पर आधारित अपनी राय पेश की। इस तरह हदीसें जो उनकी सुन्नतों का प्रतिनिधित्व करती हैं उनमें स्थानीय और व्यक्तिगत कारकों को शामिल किया गया था।

        जब किसी ज़माने में हदीस सामने आई उस समय के ज्ञान की स्थिति और तत्कालीन सामाजिक और राजनीतिक हालात।

        प्रत्येक पीढ़ी में नई हदीसों को लागू कराने वाले की इच्छा उसे नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से जोड़ना था और इसके लिए वह हर पीढ़ी में भेजने वालों (जिसे इस्नाद कहा गया) से जोड़ा जो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के सहाबा इकराम से जा मिलता था जिन्होंने नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम को ऐसा करते देखा या कहते सुना था। ये उनकी चर्चा में सच्चाई पैदा करता था।

        ये एक इंसान होने के नाते किसी भी संकलक के लिए असंभव था कि वो इस लंबे समय के दौरान सभी ऐतिहासिक कारकों जो काम कर रहे थे, उन सभ पर ध्यान दे सके। संकलक भेजने वालों की पीढ़ी दर पीढ़ी पीछे जाता जो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम से जा मिलती और संकलक बताने वालों (राबियों) की अखंडता पर निर्भर कर सकते थे। यही सबसे अच्छा था जो वो कर सकते थे क्योंकि उस ज़माने के ज्ञान की स्थिति सत्यापित करने के लिए उपयुक्त नहीं थीः

        हर पीढ़ी में सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम (हदीसों) की परंपराओं के रावी और भेजने वाले कीi  शायद ही उनकी अपने जीवन में मुलाकात हुई हो।

        एक दी गई परंपरा (हदीस) की सामग्री को उसके बाद नाज़िल हुई आयत से रद्द किया गया जो नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इंतेक़ाल से कुछ महीने पहले तक जारी था।

इन सीमाओं के परिणामस्वरूप जाली, कृत्रिम और मन घड़ंत परंपराओं की बड़ी संख्या समीक्षा की प्रक्रिया से छूट गईं और सही हदीस में शामिल होने का  उनको रास्ता मिल गया। उस ज़माने के कई विद्वान इससे अवगत थे, लेकिन धार्मिक भावना इतनी गंभीर थी कि अगर उसने भेजने वाले विश्वसनीय लोगों का एक सिलसिला पेश किया हो तो सबसे ज़्यादा इल्म रखने वाले और मुत्तक़ी लोग भी 'आपत्तिजनक' चर्चा की वास्तविकता पर सवाल करने से डरते थे।

हदीस के विकास के दौरान की इसकी महिमा और शाखाएं

हदीस विज्ञान व्यावहारिक रूप से सभी वर्गों और धार्मिक ज्ञान की शाखाओं की  सभी गतिविधियों को सम्मिलित करता है। हिदायत की किताब के रूप में कुरान केवल व्यापक निजी, वैवाहिक, वर्गीय/राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानव संबंधों के व्यापक सिद्धांतों का उल्लेख करता  है, और इंसानों को व्यावसायिक नैतिकता, वैश्विक ज्ञान को हासिल करने और उनमें काम करने और शोध का जज़्बा पैदा करने के कई उदाहरण पेश करता है। ये कुछ मौजूदा तरीकों के सतही संदर्भों को छोड़ कर जीवन के किसी भी शारीरिक पैरामीटर पर कोई विवरण प्रदान नहीं करता। विस्तार पा रहे मुस्लिम वर्ग को दैनिक जीवन के लेन देन के मामलों के लिए विस्तृत निर्देश की जरूरत थी। हदीस ने ये  मुहैय्या कराया। इस तरह, इमाम बुखारी रहमतुल्लाह का संकलन [3] 9 जिल् और कुल 93 भागों (या किताबों) और 3981 हिस्सों में बाँटा गया है।

इस दौर के लिए, हदीस में मौजूद ज्ञान ने बढ़ते हुए मुस्लिम समुदाय को शांति, सद्भाव और प्रगतिशील जीवन जीने के योग्य बनाया और इस्लाम की सिविल सोसाइटी को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, और अधिक महत्वपूर्ण बात ये है कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और उनके सहाबा कराम की विरासत को ये सुरक्षित करता है। इसलिए, तारीख़े इस्लाम में हदीस की साझेदारी सर्वोच्च रहती है, और जिस किसी को भी मध्यकाल के ज़माने के प्रतिद्वंद्वी संस्कृतियों की नैतिक कमियों का थोड़ा भी ज्ञान है वो हदीसों के संकलकर्त्ताओं की खूब तारीफ करता है।

निष्कर्ष: इससे इन्कार नहीं किया जा सकता है कि प्रमाणिक (सही) हदीस के संकलन में कुछ विवरण ऐसे हो सकते हैं जो बहुत ज़्यादा अजीब और कामुक, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले,  अंतरर्धार्मिक तनाव को बढ़ावा देने वाले, औरतों से सख्त नफरत करने वाले, वैज्ञानिक दृष्टि से जिनका समर्थन न किया जा सके और जो कुरान से मेल नहीं रखने वाले हों [2] लेकिन इसे हदीस का संकलन करने वाले इमामों के किसी भी बौद्धिक शरारत से जोड़ा नहीं जाना चाहिए। शुरुआती दौर के संकलनकर्त्ताओं ने लोगों की ज़बान पर चढ़े लाखों तज़करों (विवरणों) का सामना किया और इस्नाद पर आधारित लोकप्रिय (भेजने वालों की कड़ी में रावियों की अखंडता) समीक्षा की प्रक्रिया अपने काम के लिए अपनाया। मानव चेतना अपनी प्रारंभिक अवस्था में थी आज जो सबसे अजीब और हास्यास्पद लगता है वो इस्लाम की प्रारंभिक शताब्दियों के आम लोगों के मन में इस रूप में दर्ज नहीं हुआ, क्योंकि वो किस्सों और परी कथाओं में विश्वास करने के आदी थे। विद्वान इमाम हज़रात जो अपने दौर में सबसे अधिक ज्ञान रखने वालों में शामिल थे और अपने संकलन में जाली और मन घड़ंत हदीसों से अवगत थे, लेकिन वो इस वक्त संदिग्ध हदीसों को हटाने की स्थिति में नहीं थे जब तक कि वो उनकी स्क्रीनिंग के गुणवत्ता तक नहीं पहुंच जायें। उसी के अनुसार उन्होंने ने वर्ग और आने वाली पीढ़ियों को चेतावनी दी है। ये नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के इंतेकाल के दो सदिंयों से थोड़ा अधिक के बाद हुआ। दो और सदियों बाद ये हुआ कि हदीस को अप्रत्यक्ष वही (Revelation) और सभी दुनियावी ज्ञान के भंडार के रूप में बताया जाने लगा।

 इस तरह समस्या दकियानूसी लोगों की नाकामी है जो पिछले एक हजार साल में इन हदीसों की और ज़्यादा छानबीन नहीं कर सके। समस्या कुछ विद्वानों, धर्मनिरपेक्ष विचार रखने वाले इस्लाम के विरोधी मुसलमान और गैर मुसलमानों के साथ है, जिन्होंने बहुत हास्यास्पद और कुरान विरोधी हदीसों को चुन कर फतवा जारी करना शुरू किया और इस्लाम को बुरा भला कहने लगे और प्रारंभिक संकलकर्त्ताओं को बेइज्ज़त करने के लिए बयान देने लगे।

 इसके अलावा, जैसा कि साहित्यिक शैली, संकलन, मिसाले और हदीस साहित्य मध्यकाल के प्रारंभ काल से संबंध रखते हैं, "इनका लगातार पारंपरिक धार्मिक स्कूलों (मदरसों) में शिक्षण और प्रचार छात्रों के मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, उनकी तर्क शक्ति को सीमित करता है और व्यावहारिक रूप से उनकी बुद्धि को मध्यकाल के प्रारंभिक काल में स्थिर कर सकती है "[1] इसलिए, जैसा कि संबंधित लेख में प्रस्ताव है कि," लंबे समय से ये जरूरत है कि हदीसों के संग्रह को उसके ऐतिहासिक, क्षेत्रीय और सांस्कृतिक संदर्भ में एक बंद डोमेन के रूप में लिया  जाना चाहिए और पारंपरिक धार्मिक स्कूलों (मदरसों) के पाठ्यक्रम को पुनर्गठन की आवश्यकता है जिसमें हदीस और धार्मिक ज्ञान की दूसरी शाखाओं को कुरान के संदेश पर केंद्रित अध्ययन और विश्व ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से बदलने की ज़रूरूत है"[5] लेकिन हदीस इस्लाम के एक महत्वपूर्ण भाग के रूप में उतना है कि नबी सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम और उनके सहाबा हज़रात की विरासत को ये सुरक्षित करता है। इसे प्रबुद्ध विशेषज्ञों के लिए सुरक्षित रखना चाहिए जो कमजोर और विश्वसनीय हदीसों के बीच अंतर करने और उन्हें खुदा के शब्द- कुरान के समानांतर न मानने के लिए उचित परिपक्वता, ज्ञान और प्रशिक्षण हासिल करें। ये विद्वान इमाम हज़रात को आने वाली पीढ़ियों के लिए अत्यंत आपत्तिजनक सामग्री छोड़ने के हास्यास्पद आरोप से बरी करेगा, हदीस के विरोधी आधुनिकतावादी मुसलमानों और धर्मनिरपेक्ष लोगों का मुंह बंद करेगा जो समय की गणना करने में त्रुटि करने वाले तत्व को नज़रअंदाज़ कर हदीस का मज़ाक उड़ाते हैं। ये  बहुत से शिक्षित मुसलमानों के संदेह और अविश्वास और निराशा को दूर करेगा जिनके इंटरनेट और मोबाइल फोन्स पर हदीसों में जो सबसे ज़्यादा भयानक है, उनसे हमले किए जाते हैं।

नोट्स

1.  मोहम्मद यूनुस और अशफाक अल्लाह सैयद, इसेंशिएल मेसेज ऑफ इस्लाम, आमना पब्लिकेशन, यूएसए 2009, पृष्ठ 342

2.  डॉक्टर शब्बीर अहमद की क्रिमिनल्स ऑफ इस्लाम, इस वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है

3.  सही बुखारी, अंग्रेजी अनुवाद मोहसिन खान, नई दिल्ली 1984, एक्सेशन 364, 735, वाल्यूम 3

4.  सही मुस्लिम, उर्दू अनुवाद वहीदुज़्ज़माँ, एतेकाद पब्लिशिंग हाउस, नई दिल्ली (प्रकाशन वर्ष का उल्लेख नहीं है) मोकद्दमा से उद्धरण।

5.  "The evolution of the Hadith sciences and the Prophet's Sunna and the need for a Major Paradigm Shift regarding the role of the Hadith Corpus and the scope of Madrassa education." Sec. 10

http://newageislam.com/islamic-sharia-laws/evolution-of-hadith-sciences-and-need-for-major-paradigm-shift-in-role-of-hadith-corpus-and-scope-of-madrasa-education/d/6581

मोहम्मद यूनुस ने आईआईटी से केमिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा हासिल की है और कार्पोरेट इक्ज़ीक्युटिव के पद से रिटायर हो चुके हैं और 90 के दशक से क़ुरान का गहराई से अध्ययन और उसके वास्तविक संदेश को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इनकी किताब इस्लाम का असल पैग़ामको साल 2000 में अलअज़हर अलशरीफ, काहिरा की मंज़ूरी प्राप्त हो गयी थी और इसे यूसीएलए के डॉ. खालिद अबुल फ़ज़ल का समर्थन भी हासिल है। मोहम्मद यूनुस की किताब इस्लाम का असल पैग़ामको आमना पब्लिकेशन मेरीलैण्ड, अमेरिका ने साल 2009 में प्रकाशित किया।

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